देहरादून

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सैन्य या कोई व्यक्ति यदि किसी एक ही स्थान पर लम्बे समय तक वास्तव्य करता है, तब ‘उसने डेरा जमा लिया है’ ऐसे हम कहते हैं। इसी ‘डेरा’ शब्द से ‘डेहराडून’ (देहरादून) यह शहर जाना जाता है।

डेहराडून (देहरादून) इस शहर का नाम ही ‘डेरा (डेहरा)’ और ‘डून’ इन दो शब्दों से बना हुआ है। इनमें से ‘डेरा’ शब्द तो हमने देख लिया और ‘डून’ कहते ही याद आता है, ‘डून स्कूल’।

‘डेरा’ का अर्थ है, किसी एक जगह पर किया जानेवाला वास्तव्य या जमाया जानेवाला डेरा। वहीं प्रादेशिक भाषा के अनुसार ‘डून’ शब्द का वास्तविक अर्थ है, शिवालिक पर्बतों की पंक्तियॉं और पर्बताधिराज हिमालय इनके बीच होनेवाली नदी की घाटी। जहॉं पर मनुष्यों ने वास्तव्य किया, ऐसी शिवालिक पर्बत और हिमालय के बीच की नदी की घाटी, ऐसा ‘डेहराडून’ का अर्थ है।

उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण होने के पूर्व देहरादून का समावेश उत्तर प्रदेश में होता था। लेकिन उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण के बाद देहरादून का समावेश उत्तराखण्ड राज्य में किया गया।

देहरादून का निर्देश वेदकाल से ही प्राप्त होता है। वेदकाल में देहरादून का समावेश गढवाल मण्डल इस प्रदेश में किया गया था और यह गढवाल मण्डल ‘केदारखण्ड’ नाम से जाना जाता था।

रामायणकाल में श्रीराम-लक्ष्मणजी ने रावण के नाश के लिए यहॉं पर तपश्चर्या की थी, ऐसा मत है।

एक आख्यायिका के अनुसार, महाभारतकाल में पाण्डव-कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का आश्रम यहॉं था, इसीलिए इस स्थान को ‘द्रोणपुरी’ कहते थें।

इसके बाद इस स्थान का निर्देश इसापूर्व ३०० में मिलता है। इस शहर की उत्तरी दिशा में सम्राट अशोक से सम्बन्धित शिलालेख पाये गए हैं, जिनकी खोज इसवी १८६० में की गई। इस शिलालेख में १४ आज्ञापत्र अंकित किये गए हैं। इन शिलालेखों के स्थान के नजदीक ही वृषेरी राजवंश के राजा शिलवर्मा ने इसापूर्व तीसरी सदी में अश्वमेध यज्ञ किया था, ऐसा मानना है।

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उसके बात काफ़ी समय तक इतिहास में देहरादून का निर्देश प्राप्त नहीं होता। ऊपर किये गए निर्देश के बाद अगला निर्देश प्राप्त होता है, वह देहरादून पर गढ़वाल के कत्यूरी राजाओं की हुकुमत का। इस राजवंश का देहरादून पर कईं सदियों तक अच्छाखासा कब़्जा था। लेकिन बाद में उनके हाथ से यह शहर सिखों और मुघलों के कब़्जे में गया। उनके बाद यहॉं पर अंग्रे़जों की हुकुमत स्थापित होने तक नेपाल के गोरखाओं ने राज किया। उनका राज तकरीबन दो दशकों तक चला। अप्रैल १८१५ में अंग्रे़जों ने गोरखाओं से इस शहर को छीन लिया और देहरादून जिले को सहारनपुर जिले से जोड़ा गया। इसवी १८१६ में अंग्रे़ज और नेपाल के बीच हुई सुगौली की सुलह के अनुसार देहरादून के साथ-साथ कुमाऊ और गढ़वाल प्रान्तों पर ब्रिटिशों की हुकुमत क़ायम हो गई। इसवी १८२५ में देहरादून का समावेश कुमाऊ विभाग में किया गया और इसवी १८२८ में फिर से देहरादून और जौनसरभाबर इन प्रान्तों का कार्यभार एक स्वतन्त्र डेप्युटी कमिशनर के हाथों सौंपा गया। इसवी १८२९ में देहरादून जिले को कुमाऊ प्रान्त से निकालकर मीरत प्रान्त के साथ जोड़ा गया। इसवी १८४२ में देहरादून को फिर से सहारनपुर जिले में शामिल कर उसके अधिकार जिला कलेक्टर से भी कम दर्जे के एक अधिकारी को सौंपे गये। इसवी १९६८ में इस जिले को मीरत प्रान्त से अलग कर वापस गढ़वाल प्रान्त के साथ जोड़ा गया। अंग्रे़जों के जमाने में गर्मी के मौसम में व्हॉइसरॉय के सुरक्षारक्षकों का निवास इस शहर में होता था। इस प्रकार से अलग-अलग प्रान्तों का हिस्सा होते-होते, अन्ततः ९ नवम्बर २००० को उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण तक यह शहर उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। उत्तराखण्ड राज्य, जो इसवी २००० से लेकर २००६ तक ‘उत्तरांचल राज्य’ के नाम से जाना जाता था और अब उत्तराखण्ड राज्य के नाम से पहचाना जाता है, इस राज्य की देहरादून यह राजधानी है।

देहरादून वहॉं के खुशहाल मौसम के लिए मशहूर था। लेकिन वैश्‍विक तापमानवृद्धि का झटका इस शहर को भी लगा है। इसी कारण देहरादून के खुशहाल मौसम में अब बदलाव आ चुका है। कुछ साल पहले तक देहरादून में पंखों तक की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन अब ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण इस स्थिति में बदलाव आ चुका है।

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शिवालिक और हिमालय इन पर्बतों के नजदीक होने के कारण इस ​जिले को अच्छीखासी वनसम्पदा एवं प्राणिसम्पदा का वरदान प्राप्त हुआ है। लेकिन यहॉं की बढ़ती हुई जंगलकटाई के कारण यहॉं की वनस्पतियों और प्राणियों की कईं प्रजातियॉं अब नामशेष हो जाने का भय है।

इस प्रान्त में कईं घने जंगल हैं तथा ये जंगल शहद, बाम्बू, गम, वनौषधि का निर्माण करते हैं। इन जंगलों में उत्तम दर्जे की लकड़ी के लिए मशहूर होनेवाले साल के वृक्ष प्रचुर मात्रा में हैं। इस पूरे जिले में भिन्न-भिन्न स्थानों पर पाया जानेवाला भिन्न-भिन्न मौसम तथा जमीन, इनके कारण यहॉं पर इन जंगलों के विभिन्न प्रकार पाये जाते हैं।

भारतीयों के लिए पवित्र ऐसीं गंगा-जमुना इन नदियों की तथा हिमालय पर्बत की सन्निधता देहरादून को मिली है। इस ​​जिले के उत्तरी ओर हिमालय, दक्षिणी ओर शिवालिक पर्बत, पूर्व में गंगा तथा पश्चिम में जमुना नदी हैं।

देहरादून का ​जिक्र होते ही कईं लोगों को दो बातें याद आती हैं। एक है, देहरादून का बासमती चावल और दूसरी है, डून स्कूल।

देहरादून यह उत्तरी भारत का एक मुख्य शिक्षाकेन्द्र है। डून स्कूल यह पुरानी नामांकित शिक्षासंस्था है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के कईं नामचीन व्यक्तियों ने यहीं से शिक्षा प्राप्त की है। यहॉं के नामचीन छात्रों में, भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री से लेकर कईं आन्तरराष्ट्रीय ख्यातकीर्त लेखक, अभिनेता तथा पत्रकार इनका भी समावेश है। भारत के बाहरी देशों से भी छात्र यहॉं पर शिक्षा प्राप्त करने आते हैं।

अपने देश की रक्षा करनेवाले सैनिकों को प्रशिक्षण देनेवालीं संस्थाएँ यहॉं पर हैं। अंग्रे़जों ने भारत में विभिन्न स्थानों पर कईं सुविधाओं का निर्माण किया, ताकि उनके प्रशासन में मदद मिलें। इन सुविधाओं के निर्माण में, भारतीयों को शिक्षा मिलें ऐसा अंग्रे़जों का उदात्त हेतु बिल्कुल ही नहीं था, बल्कि इसमें उनका ही मुख्य फायदा था।

इसवी १९२२ में ‘द रॉयल इंडियन मिलिटरी कॉलेज’ की स्थापना की गई। यहॉं पर ट्रेनिंग ले चुके छात्रों को अगली शिक्षा के लिए इंग्लंड भेजकर, बाद में उन्हें इंडियन ऑफिसर के तौर पर ब्रिटीश इंडियन आर्मी में प्रवेश दिया जाता था। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज’ रखा गया। यहॉं पर आठवी से लेकर बारहवी कक्षा तक के छात्रों के सैनिकी प्रशिक्षण की नींव रखी जाती है। इस संस्था के भूतपूर्व छात्रों में जनरल के.एस. थिमय्या, मेजर सोमनाथ शर्मा आदि हैं।

सेना के अधिकारियों को प्रारम्भिक प्रशिक्षण देने के लिए ‘इंडियन मिलिटरी ऍकॅडमी’ की शुरुआत हुई। इसका कार्य १ अक्तूबर १९३२ को शुरू हुआ। इस संस्था के उद्घाटनसमारोह में उद्घाटक द्वारा दिये गए भाषण के कुछ हिस्से को संस्था ने अपने मार्गदर्शक तत्त्वों में समाविष्ट किया है। वह कुछ इस प्रकार है –

‘‘आपके देश की रक्षा, देश का सम्मान और देश का विकास इन बातों को आपके जीवन में हमेशा ही अहमियत होनी चाहिए। उसके बाद आती है, आपके अधिकार में कार्य करनेवालों की सुरक्षा तथा उनका विकास और सबसे अन्त में अहमियत अपने आप को दी जानी चाहिए।’’

‘फॉरेस्ट रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ यह संस्था वनसंशोधन के साथ जुड़ी हुई है। इसकी स्थापना इसवी १९०६ में की गई। केवल अपने देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फॉरेस्ट रिसर्च करनेवाली यह उत्तम संस्था है। वनों के संशोधन के लिए यहॉं पर लायब्ररी, लॅबोरेटरी तथा उत्तम हार्बेरियम का संग्रह किया गया है। इस संस्था का संग्रहालय वनों के भिन्न-भिन्न पहलुओं को दर्शाता है। भारत के वनविभाग के अधिकारियों को यहॉं पर ट्रेनिंग दी जाती है। यहॉं ‘ओएनजीसी’ का मुख्यालय भी है।

देहरादून में ‘टपकेश्वर’ यह शंकरजी का स्थान है। यहॉं पर गुँफा में स्थित शिवलिंग पर उसके ऊपरी शिलाओं में से निरन्तर पानी का अभिषेक होता रहता है और इसी कारण इसे ‘टपकेश्वर’ कहा जाता है।

यहॉं पर अंग्रे़जों ने उनके शत्रुओं के स्मरणार्थ एक अनूठे युद्धस्मारक का निर्माण किया है।

यहॉं की वनसम्पदा तथा पर्बतों के कारण यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही सुन्दर है और हिमालय की सन्निधता का प्रभाव भी इस शहर पर साफ़ दिखाई देता है। यहॉं की प्रकृति में हिमालय की सुन्दरता है, तो यहॉं दी जानेवाली सैनिकी प्रशिक्षण में है, हिमालय की म़जबूती।

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