‘जी७’ परिषद में भारत की महत्वपूर्ण चर्चा

लंडन – जी७ परिषद में सहभागी हुए भारतीय पथक के कुछ सदस्यों को कोरोना का संक्रमण हुआ। इस कारण इस परिषद में विदेश मंत्री जयशंकर और उनके सहकर्मियों ने वर्चुअल माध्यम द्वारा सहभाग लिया। अमरीका, केनेडा , ब्रिटेन, फ्रान्स, जर्मनी, इटली और जापान इन जी७ के सदस्य देशों के साथ ही, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया के प्रतिनिधि इस परिषद में उपस्थित थे। इस परिषद में भारत के विदेश मंत्री ने द्विपक्षीय तथा त्रिपक्षीय चर्चा की। इनमें भारत, फ्रान्स और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुई त्रिपक्षीय चर्चा का समावेश है। इस चर्चा में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की नीति का प्रमुख रूप में समावेश था।

‘जी७’

विदेश मंत्री जयशंकर ने इस परिषद में, कोरोना की महामारी के विरोध में भारत लड़ रहे जंग की जानकारी दी। उसी समय द्विपक्षीय तथा त्रिपक्षीय सहयोग के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा इस समय संपन्न हुई। एक ही दिन पहले भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय सहयोग नई ऊंचाई पर ले जाने पर एकमत हुआ है। उसी समय कोमा अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकन के साथ विदेश मंत्री जयशंकर की चर्चा संपन्न हुई। इसमें कोरोना की महामारी के कारण उद्भवित परिस्थिति का प्रायः समावेश था। साथ ही, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की गतिविधियों पर भी दोनों नेताओं ने चर्चा की होने की खबर है।

भारत, फ्रान्स और ऑस्ट्रेलिया की इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के बारे में हुई चर्चा गौरतलब मानी जाती है। इन दिनों ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंधों में तनाव पैदा हुआ होकर, ऑस्ट्रेलिया भारत तथा जापान इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर चीन के आक्रामक दांवपेंचों को प्रत्युत्तर दे रहा है। ऐसी परिस्थिति में भारत और फ्रांस के साथ ऑस्ट्रेलिया की त्रिपक्षीय चर्चा और इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाने का ऑस्ट्रेलिया का फैसला, चीन की चिंता बढ़ानेवाला साबित हो सकता है। इसी बीच कोमा कोरोना की महामारी के दौर में भारत को दुनिया भर के प्रमुख देशों से बड़े पैमाने पर सामग्री और उपकरण तथा दवाइयों की सप्लाई की जा रही है। इसका हवाला देकर, क्या भारत ने आपत्ती के दौर में विदेशी सहायता ना लेने की नीति में बदलाव किया है, ऐसा सवाल विदेश मंत्री जयशंकर से पूछा गया।

उसके जवाब में जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत को की जानेवाली यह सप्लाई यानी सहायता नहीं, बल्कि वह इन देशों के साथ भारत के मित्रतापूर्ण सहयोग का भाग है। कोरोना की महामारी यह जागतिक समस्या है। इस चुनौती का सामना भी अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से ही किया जा सकता है। उसी दृष्टिकोण से भारत को की जानेवाली इस सप्लाई की ओर देखना पड़ेगा, ऐसा विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा। एक ही दिन पहले अमरीका के विदेश मंत्री ब्लिंकन में भी, हमारे देश में जब कोरोना की महामारी ज़ोरों पर थी, तब भारत ने की सहायता को अमरीका नहीं भूल सकती, ऐसा कहा था। इसलिए अब अमरीका द्वारा भारत को आवश्यक चीजों की की जानेवाली सप्लाई यानी सहायता नहीं, बल्कि वह अदायगी साबित होती है। विदेश मंत्री जयशंकर यही बात राजनीतिक शब्दों में प्रस्तुत कर रहे हैं।

इसी बीच, जी७ परिषद के उपलक्ष्य में भारत के विदेश मंत्री की युरोपीय महासंघ के उपाध्यक्ष जोसेफ बोरेल के साथ चर्चा हुई। अफगानिस्तान में फौरन, कायम स्वरूपी और व्यापक संघर्ष बंदी होनी चाहिए, इस पर भारत और युरोपीय महासंघ का एकमत हुआ है। अफगानियों का ही समावेश होनेवाली और अफगानियों द्वारा ही संचालित किए जानेवाली शांति प्रक्रिया को भारत और युरोपीय महासंघ का समर्थन होगा, ऐसा समय स्पष्ट किया गया। पाकिस्तान जैसे विघ्नसंतोषी देश का अफगानिस्तान में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, यह भारत तथा युरोपीय महासंघ बता रहे हैं।

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