स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व की क्षमता बढ़ाने के लिए भारत के प्रयत्न

नई दिल्ली – युद्ध जैसे आपातकालीन समय में उपयोग के लिए ईंधन के धारणात्मक भंडार में दुगनी बढ़ोतरी करने के लिए भारत ने गतिविधियां शुरू की है। स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व की क्षमता १० दिनों से २२ दिनों तक ले जाने का प्रयत्न सरकार कर रही है। इस बारे में प्रकल्प में निवेश के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक का बुधवार को आयोजन हुआ। इस बैठक के दौरान उड़ीसा में चांदीखोल और कर्नाटक के पाडूर में भूमिगत स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व्स निर्माण करने पर विचार हुआ। इस निर्माण के लिये निजी निवेशकारों को निवेश के लिए आवाहन किया गया है। इस प्रकल्प में लगभग ११ हजार करोड़ का निवेश अपेक्षित है।

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चार दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेल उत्पादक देशों के प्रतिनिधि और अग्रगण्य उत्पादक कंपनियों के सीईओ के साथ बैठक की थी। जिसमें इन तेल उत्पादक कंपनियों को भारत में निवेश करने का आवाहन किया गया था। सऊदी अरेबिया एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने भारत की ईंधन विषयक जरूरतें एवं प्रश्न ध्यान में लेते हुए भारत में निवेश के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी। उसके बाद पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इनकी अध्यक्षता में स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व्स में निवेश के लिए हुई इस बैठक का महत्व बढ़ रहा है।

भारत को देश के अंतर्गत मांग में से ८३ प्रतिशत इंधन आयात करना पड़ रहा है। इसके लिए तेल उत्पादक देशों पर भारत निर्भर है। पर ईंधन के लिए अन्य देशों पर निर्भर होनेवाले भारत के पास आपातकालीन परिस्थिति में कुछ दिन की जरुरत पुरी करने के लिये पर्याप्त ईंधन भंडार होना चाहिए इसके लिए प्रयत्न शुरू हुए है। इसी दौरान पिछले ३ वर्षों में इस दृष्टि से गतिमान काम हो रहा है। पहले स्तर में १० दिन के लिये पर्याप्त स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व्स का निर्माण करने के लिये भारत ने कदम बढाये है।

इसके अंतर्गत विशाखापट्टनम, मंगलूर और कर्नाटक के पाडूर में ५० लाख ३३ हजार टन ईंधन भंडार की क्षमता की भूमिगत विशाल टंकियों का निर्माण हो रहा है। यह भंडार भारत को १० दिन के लिए पर्याप्त है। तथा दूसरे स्तर में चांदीखोल और पाडूर में प्रकल्प निर्माण किया जा रहा है। इस प्रकल्प की क्षमता ६५ लाख टन होगी और इसकी वजह से भारत की स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व की क्षमता २२ दिनों तक पहुंचेगी।

जून महीने में केंद्र सरकार ने स्ट्रैटेजिक ऑयल रिजर्व संदर्भ में दूसरे स्तर की प्रकल्प को मंजूरी दी थी। बुधवार को संपन्न हुए बैठक में निवेश के लिए चर्चा की जा रही थी। यह दोनों प्रकल्प सरकारी एवं निजी कंपनियों के साझेदारी द्वारा (पीपीपी) निर्माण होने वाले हैं। इस प्रकल्प में निवेश करने वालो को भूमिगत टंकियों का निर्माण करना होगा। इसके लिए भंडार करने की एवं संचालन की जिम्मेदारी इन निवेशकार कंपनी पर होगी। जल्द ही भारत सिंगापुर और लंडन में भी निवेशकारों के साथ इस संदर्भ में बैठक करने की संभावना है, ऐसी जानकारी सामने आ रही है।

पर इस प्रकल्प में निवेश करनेवालों के सामने कई शर्तें भी रखी जाने वाली है। जिसमें आपातकालीन परिस्थिति में इस प्रकार से ईंधन खरीदारी करने का अथवा उसे नकार ने का अधिकार भारत सरकार के पास होगा। ईंधन सुरक्षा के लिए भारत ने उठाये यह कदमों में इस धारणात्मक ईंधन भंडार प्रकल्प का भी समावेश हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थिति में गतिमान रूप से बदलाव हो रहे है और अनिश्चित वातावरण सभी देशों को तकलीफ में ला रहा हैं। विशेष रूप से ईंधन उत्पादक देशों में अराजक एवं इन देशों में शुरू स्पर्धा देखते हुए ईंधन का अव्याहत प्रदाय सुनिश्चित करना भारत जैसे देश के लिए अत्यंत आवश्यक है। ईरान यह भारत को ईंधन प्रदाय करने वाला प्रमुख देश होकर अमरिका ईरान पर प्रतिबंध जारी करने की तैयारी में है। उसमें इस्राइल और अमरिका किसी भी क्षण ईरान पर हमला कर सकता है, ऐसे संकेत सामने आ रहे है।

सऊदी अरेबिया ईरान तथा ईंधन उत्पादन करने वाले खाड़ी क्षेत्र के अन्य देशों में वर्चस्व के लिए घनघोर संघर्ष शुरू हुआ है और उसके परिणाम ईंधन के दामों पर होने लगे हैं। ऐसे अनिश्चित समय में ईंधन की सुरक्षा एवं उसका धारणात्मक भंडार यह समय की आवश्यकता बन रही है। इस अग्रणी पर भारत ने शुरू किए प्रयत्न उसकी गवाही दे रही है।

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