सात सालों में भारत की अर्थव्यवस्था ७ ट्रिलियन डॉलर्स होगी – प्रमुख आर्थिक सलाहकार नागेस्वरन का दावा

कोलकाता – वित्तीय वर्ष २०२२-२३ में भारत तीन ट्रिलियन डॉलर्स की अर्थव्यवस्था बन रहा हैं। अगले सात सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़कर ७ ट्रिलियन डॉलर्स की हो जाएगी, ऐसा विश्वास देश के प्रमुख आर्थिक सलाहकार व्ही.अनंत नागेस्वरन ने व्यक्त किया है। ‘मर्चंट चेंबर्स ऑफ कॉमर्स ॲण्ड इंडस्ट्री’ (एमसीसीआई) के ‘इकॉनॉमिक फोरम’ में बोलते हुए नागेस्वरन ने यह दावा किया हैं। साल २०२५ में भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर्स की होने का उद्देश्य प्राप्त करेगी, यह ऐलान केंद्र सरकार ने किया था। इसके आगे जाकर प्रमुख आर्थिक सलाहकार ने सात सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़कर दोगुनी होगी, यह विश्वास व्यक्त किया है।

७ ट्रिलियन डॉलर्स फिलहाल विश्व को सता रही समस्याओं का दाखिला भी नागेस्वरन ने अपने भाषण में दिया। साल २०२३ की शुरूआत होने के बावजूद यूक्रेन युद्ध खत्म नहीं हुआ हैं। इस वजह से भू-राजनीतिक एवं आर्थिक स्तर पर अनिश्चितता बढ़ रही हैं। इसी बीच कोरोना की महामारी के कारण स्वयं को प्रतिबंधों के बंदिशों में बंद करने वाला चीन अब खुल रहा हैं और चीन से हो रही ईंधन और अन्य सामान की मांग बढ़ेगी औ इसका असर कीमत पर होगा। साथ ही अमरीका और यूरोप की अर्थव्यवस्थाओं के विकास पर भी इसका असर होगा, ऐसा नागेस्वरन ने कहा हैं।

ऐसी स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष २०२२-२३ खत्म होने से पहले तीन ट्रिलियन डॉलर्स की हो रही हैं और अगले सात सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था भारी बढ़ोतरी के साथ सात ट्रिलियिन डॉलर्स की हो सकती हैं, यह दावा नागेस्वरन ने किया। इसी बीच ब्रिटेन स्थित ‘सेंटर फॉर इकॉनॉमिक्स ॲण्ड बिझनेस रिसर्च’ (सीईबीआर) नामक अध्ययन गुट ने दिसंबर महीने में जारी की हुई अपनी रपट में साल २०३५ तक भारतीय अर्थव्यवस्था १० ट्रिलियन डॉलर्स की होगी, यह अनुमान दर्ज़ किया था। इस वजह से सीर्फ भारतीय आर्थिक विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि विदेशी विश्लेषक भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा दिखाते सामने आ रहे हैं।

ऐसा होने के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाली उथल-पुथल का असर कुछ हद तक भारत को भी भुगतना होगा, ऐसें इशारें आर्थिक विशेषज्ञ दे रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल खतरनाक ढ़ंग से मंदी के करीब जाएगी, ऐसी चेतावनी वैश्विक बैंक ने दी है। अमरीका, यूरोपिय देश और चीन इन सबकी अर्थव्यवस्थाओं का रूख नकारात्मक हैं, इसका अहसास दिलाकर वैश्विक बैंक ने इस साल मंदी का खतरा अधिक बढ़ने के संकेत दिए हैं। विश्व पर यदि मंदी का संकट टूटता हैं तो भारतीय अर्थव्यवस्था को भी इस संकट का मुकाबला करना होगा, इससे भारतीय निर्यात प्रभावित होगी, इसपर आर्थिक विशेषज्ञ ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

इसी बीच विशाल जनसंख्या की वजह से प्रचंड़ मात्रा में होने वाली खपत और जनसंख्या में मौजूद युवा वर्ग का बड़ा हिस्सा भारत के बलस्थान बनते हैं। इसी के बलबुते पर भारतीय अर्थव्यवस्था मज़बूती से खड़ी रहेगी, यह विश्वास व्यक्त किया जा रहा हैं। इसके अलवा वैश्विक अर्थव्यवस्था को आधार देने की क्षमता भारत रखता हैं, ऐसे दावे भी कई लोगों ने किए हैं। इसी कारण से अंतरराष्ट्रीय निवेशक एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियां और विश्व के प्रमुख देश भी भारत के साथ अधिक से अधिक सहयोग विकसित करने के लिए पहल करते दिख रहे हैं। वैश्विक स्तर के अनिश्चितता के दौर में भारत को अंतरराष्ट्रीय निवेशक, वैश्विक उद्योग क्षेत्र और प्रमुख देशों के आर्थिक स्तर के सहयोग का बड़ा लाभ प्राप्त हो सकता है। इससे भारत की आर्थिक और राजनीतिक अहमियत अधिक बढ़ेगी, यह दिखाई देने लगा है।

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