भारत के कोवैक्सीन को ‘डब्ल्यूएचओ’ की मान्यता

चार दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 परिषद को संबोधित करते समय डब्ल्यूएचओ को कोवैक्सीन की मंजूरी के मुद्दे पर फटकार लगाई थी। डब्ल्यूएचओ ने अगर कोवैक्सीन को मंजुरी दी, तो भारत टीके की सप्लाई को लेकर दुनियाभर में होनेवाली असमानता दूर करने में अहम भूमिका निभाएगा। सन २०२२ के अंत तक भारत विकासशील और गरीब देशों को ५ अरब टीकों की सप्लाई कर सकेगा, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा था।

नई दिल्ली – भारत बायोटेक ने तैयार किए, कोरोना के कोवैक्सीन इस टीके को जागतिक स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आपत्कालीन इस्तेमाल के लिए मंजुरी देने के कारण इस टीके को जागतिक मान्यता मिली है। इसके बहुत बड़े फायदे कंपनी और भारत को मिलनेवाले हैं। पिछले कुछ महीनों से ‘डब्ल्यूएचओ’ द्वारा कोवैक्सीन को मंजुरी दी जाने की प्रतीक्षा की जा रही थी । लेकिन हाल ही में जी-20 बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह अधोरेखांकित किया था कि अगर डब्ल्यूएचओ ने भारत के कोवैक्सीन को मंजुरी दी, तो भारत विकासशील देशों को ५ अरब टीकों की सप्लाई कर सकता है। उसके बाद चंद चार दिनों में डब्ल्यूएचओ द्वारा दी गई मान्यता गौरतलब साबित हो रही है।

कोवैक्सीनभारत में कोविशिल्ड और कोवैक्सीन इन दो टीकों द्वारा जनवरी महीने से टीकाकरण जारी है। इनमें से कोवैक्सीन यह पूरी तरह भारत में विकसित हुआ पहला टीका है। हैदराबाद की भारत बायोटेक कंपनी ने विकसित किए इस टीके को डब्ल्यूएचओ कब मान्यता देगा, इसकी सभी को प्रतीक्षा थी। क्योंकि भारत में कोवैक्सीन टीका लगानेवाले लोगों को विदेश प्रवास में अड़चनें आ रहीं थीं। डब्ल्यूएचओ की मान्यता ना होने के कारण कई देशों ने अभी तक कोवैक्सीन को मंजुरी नहीं दी है। साथ ही, यह मंजुरी ना होने के कारण कई देश कोवैक्सीन टीकों की आयात भी नहीं कर रहे हैं। दुनिया के चुनिंदा देशों ने ही कोरोना पर टीका विकसित करने में कामयाबी प्राप्त की है। इस कारण अन्य देश टीकों की सप्लाई के लिए इन देशों पर निर्भर हैं। कोरोना की नई-नई लहरें जब आ रहीं थीं, तो टीका तैयार करने में कामयाबी प्राप्त किए अधिकांश देशों ने पहले खुद के देश की टीकाकरण की ज़रूरत को पूरी करके, उसके बाद ही टीका निर्यात करने की नीति अपनाई थी। इस कारण दुनिया भर में टीकों की सप्लाई को लेकर एक प्रकार का असंतुलन तैयार हुआ है।

भारतीय टीका सस्ता होकर, भारत दुनिया का टीका उत्पादन का केंद्र है। भारत के पास बड़े पैमाने पर टीका उत्पादन करने की क्षमता और अनुभव है। जिस कारण भारत में बने इस टीके को अगर डब्ल्यूएचओ की मंजुरी मिली, तो भारत इस टीके का बड़े पैमाने पर उत्पादन करके अन्य देशों को इस टीके की सप्लाई कर सकता है। इसलिए कोवैक्सीन को मिली मंजुरी का महत्व बढ़ता है।

डब्ल्यूएचओ के पास भारत बायोटेक ने को वैक्सीन की दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण की रिपोर्ट्स तथा अन्य आवश्यक जानकारी मंजुरी के लिए तीन महीने पहले ही प्रस्तुत की थी। कोवैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण इस जून में ही पूरे हुए थे। उसके बाद डब्ल्यूएचओ की मान्यता के लिए प्रयास शुरू हुए। तब से इस टीके को डब्ल्यूएचओ कब मंजूरी देगा, इसकी प्रतीक्षा थी। सितंबर के अंत तक यह मंजुरी मिलेगी ऐसी उम्मीद थी। लेकिन उसे देर हुई। दो हफ्ते पहले ही, डब्ल्यूएचओ ने अपने विशेषज्ञ समिति की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में यह फैसला होगा, ऐसी खबर थी। लेकिन फ़ैसला नहीं हुआ था। डब्ल्यूएचओ के टीके से संबंधित टेक्निकल अ‍ॅडव्हायझरी ग्रुप के विशेषज्ञों ने कोवैक्सीन के बारे में सभी परीक्षणों की रिपोर्ट्स की जाँच करके और उसका मूल्यांकन करके इस टीके को मान्यता देने की सिफारिश की। साथ ही, टीएजी-ईयूएल इस स्वतंत्र अ‍ॅडव्हायझरी ग्रुप ने भी ऐसी ही सिफारिश की। इसके आधार पर आखिर अब इस संदर्भ में फैसला डब्ल्यूएचओ ने किया है।

डब्ल्यूएचओ ने कोवैक्सीन को मान्यता देते समय, यह टीका १८ साल के ऊपर के नागरिकों को देने के लिए सुरक्षित है और उसके कुछ खास दुष्परिणाम नहीं हैं, ऐसा कहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने डब्ल्यूएचओ के इस फ़ैसले का स्वागत किया है। डब्ल्यूएचओ ने मान्यता देने से पहले कुछ देशों ने कोवैक्सीन को अपने देश में मंजुरी दी है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने कोवैक्सीन को मान्यता दी। उससे पहले नेपाल, मेक्सिको, ईरान, ओमान, मॉरिशस, फिलीपींस इन देशों ने इस टीके को मान्यता दी थी। इससे इन देशों में प्रवास करने के लिए कोवैक्सीन के टीकाकरण का सर्टिफिकेट ग्राह्य माना जा रहा था। डब्ल्यूएचओ की मंजुरी के बाद अन्य देश भी अब कोवैक्सीन को जल्द ही मंजुरी देने की संभावना है।

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