‘डीप टेक’ के मोर्चे पर अमरीका का सहयोग करे भारत – अमरिकी विश्लेषकों की गुहार

वॉशिंग्टन – ‘पांच से छह वर्ष पहले भारत का आर्थिक प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था। विश्व के अन्य हिस्सों में भारत से ज्यादा आसानी से कारोबार करना काफी आसान दिख रहा था। लेकिन, अब स्थित पुरी तरह से बदल चुकी है और भारत दुनिया भर के निवेशकों के आकर्षण का केंद्र बना हैं। भारत इस तरह से अपनी ओर निवेश आकर्षित करता रहा तो भारत का युग शुरू हुआ है, यह कहा जा सकता है’, ऐसा दावा वैश्विक बैंक के प्रमुख सलाहकार इंदरमित गिल ने किया। इसका अमरीका के अन्य विश्लेषक समर्थन कर रहे हैं और भारत की ‘डीप टेक’ की क्षमता पर गौर करे तो अमरीका रणनीतिक स्तर पर भारत के साथ जारी सहयोग व्यापक कर रही हैं, ऐसा इन विश्लेषकों ने कहा है।

‘डीप टेक’बीग डाटा, नैनो टेक्नॉलॉजी, ब्लॉकचेन, एडवान्स मटेरियल सायन्स, फोटोनिक्स ॲण्ड इलेक्ट्रॉनिक्स, बायटोकेट, विजन ॲण्ड स्पीच अल्गोरिदम्‌, आर्टिफिशल इंटेलिजन्स और मशिन लर्निंग का ‘डीप टेक’ में समावेश होता है। यह प्रौद्योगिकी आनेवाले समय में काफी अहम साबित होगी और ‘डीप टेक’ ही भविष्य होने के दावे किए जा रहे हैं। इस मोर्चे पर भारत बढ़ा रहे कदमों का संज्ञान विश्व ने लिया है और महाशक्ति अमरीका भी इस मोर्चे पर भारत से सहयोग करने के लिए उत्सुकता दिखा रही हैं।

‘यूएस ॲण्ड फॉरिन कमर्शिअल सर्विस’ (यूएसएफसीएस) के पूर्व असिस्टंट सेक्रेटरी अरुण कुमार ने भी यह दावा किया है कि, भारत की क्षमता हमने काफी पहले से देखी है। किफायती कीमत पर सॉफ्टवेअर्स उपलब्ध करा रहे देश से उत्पादन का केंद्र बनने के लिए तैयार हुआ भारत प्रचंड़ क्षमता रखता हैं, ऐसा अरुण कुमार ने कहा। साथ ही भारत अमरीका का काफी अहम रणनीतिक भागीदार देश बन रहा हैं, यह भी अरुण कुमार ने स्पष्ट किया।

भारत और अमरीका की ‘क्रिटिकल ॲण्ड इमर्जिंग टेक्नॉलॉजी’ (आईसीईटी) की हाल ही में बैठक हुई। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस बैठक का हिस्सा थे। इसमें आर्टिफिशल इंटेलिजन्स, अतिप्रगत क्षमता के कॉम्प्युटर्स, रक्षा एवं अंतरिक्ष क्षेत्र और अगली पीढ़ी की दूरसंचार सेवा एवं सेमीकंडक्टर क्षेत्र के सहयोग पर ‘आईसीईटी’ का सहयोग अहम होगा, यह दावा अरुण कुमार ने किया।

अमरीका के स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी के पूर्व प्राध्यापक आरोग्यस्वामी पॉलराज ने भारत के ‘डीप टेक’ यानी अतिप्रगत तकनीक और अनुसंधान पर आधारित नए उद्योग सेमीकंडक्टर, ऊर्जा, ग्रीन हायड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों पर आधारित हैं। फिलहाल अमरीका के ‘जीडीपी’ में ‘डीप टेक’ का हिस्सा २.५ प्रतिशत हैं और इसका मुल्य ५५० अरब डॉलर्स तक पहुंचा है। इस वजह से भारत के डीप टेक क्षेत्र के लिए अमरीका काफी बड़े सहयोग के साथ इस क्षेत्र में बड़ा निवेश भी कर सकेगी, ऐसा दावा पॉलराज ने किया।

डीप टेक एक ग्लोबल तकनीक हैं और इसकी सप्लाइल चेन दुनिया भर में फैली हैं। इसी वजह से इन देशों के गुट का हिस्सा होने का उचित निर्णय भारत करें, ऐसा सुझाव पॉलराज ने दिया है। आनेवाले दशक में इसी ‘डीप टेक’ का वैश्विक अर्थव्यवस्था में पांच प्रतिशत इतना काफी बड़ा योगदान होगा, इसपर भी पॉलराज ने ध्यान आकर्षित किया है।

इसी बीच, भारत ने सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए सेमीकंडक्टर मिशन हाथ लिया हैं। इस मोर्चे पर चीन जैसे ताकतवर देश को भी ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई हैं। लेकिन, मौजूदा भारत सेमीकंडक्टर के निर्माण क्षेत्र में कामयाब होगा। क्यों कि, इस क्षेत्र में काम कर रही २० प्रतिशत कुशल जनशक्ति भारतीय हैं, ऐसा भारत के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था। साथ ही भारत की सेमीकंडक्टर की मांग अगले कुछ सालों में बढ़कर १०० अरब डॉलर्स तक पहुंचेगी और इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना ही देश के हितसंबंधों के लिए आवश्यक बना हैं। ऐसी स्थिति में भारत ने हाथ लिए इस अभियान का हिस्सा होने के लिए अमरीका के साथ अन्य विकसित देश भी उत्सुकता दिखा रहे हैं। अमरिकी विश्लेषकों ने इस मुद्दे पर किए इसी की साक्ष दे रहे हैं।

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