वर्ष २०२४ तक भारत पांच ट्रिलियन डॉलर्स की अर्थव्यवस्था होना मुमकिन – प्रधानमंत्री का भरोसा

नई दिल्ली: वर्ष २०२४ तक भारतीय वित्त व्यवस्था को ५ ट्रिलियन डॉलर्स की वित्त व्यवस्था बनाने का उद्देश्य चुनौती से भरा है| पर राज्यों ने सहयोग किया तो यह उद्देश्य प्राप्त हो सकता है, ऐसा विश्वास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्त किया है| नीति आयोग की पांचवीं बैठक में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार की योजना कार्यान्वित करने के लिए तथा निर्यात बढ़ाने के लिए राज्यों द्वारा पहल की जाए, ऐसा आवाहन किया है|

नीति आयोग की इस बैठक में पश्चिम बंगाल, पंजाब एवं तेलंगाना के सिवा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए| भारतीय वित्त व्यवस्था मार्च महीने तक लगभग २.७५ ट्रिलियन डॉलर्स पर गई है| इस वर्ष में ब्रिटेन को पीछे करते हुए भारत दुनिया के पांचवें क्रमांक की वित्त व्यवस्था बनेगी, ऐसा कहा जा रहा है| ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री ने नीति आयोग की बैठक में वर्ष २०२४ तक ५ ट्रिलियन डॉलर्स का उद्देश्य प्राप्त होगा, ऐसा विश्वास व्यक्त किया है|

राज्यों ने पहल करके केंद्र सरकार की योजना प्रभावी रूप से कार्यान्वित करनी होगी और निर्यात को प्रोत्साहन दिया जाए, कृषि उत्पादन की प्रक्रिया की गति अधिक बढ़ाना महत्वपूर्ण है| ऐसा होने पर वर्ष २०२२ तक देश के किसानों की आमदनी बढाकर दुगनी करना संभव होगा ऐसा दावा प्रधानमंत्री ने किया है| कृषिक्षेत्र में रचनात्मक सुधार के साथ उद्योग क्षेत्र में निवेश को बढावा एवं बुनियादी सुविधाओं के विकास को भी गति देना आवश्यक होने की बात प्रधानमंत्री ने कही है|

नक्सलवाद की चुनौती का सामना करने के लिए गतिमान पर संतुलन रखनेवाले विकास की प्रक्रिया अपेक्षित होने की बात प्रधानमंत्री ने कही है| दौरान भारतीय वित्त व्यवस्था का विकास दर गिरा है और रोजगार निर्माण की प्रक्रिया कम होने की चिंता व्यक्त की जा रही है| प्रधानमंत्री के भूतपूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने विकास दर की गिनती में बड़े दोष होने की बात कहकर भारत का विकास दर लगभग जितना है, उससे अधिक होने की बात दर्ज करने का दावा किया है|

वर्ष २०१२ से २०१६-१७ के दौरान भारत का आर्थिक विकास दर लगभग २.५ प्रतिशत से अधिक दर्ज होने की बात सुब्रमण्यम ने कही है| इस कारण विकास दर अधिक होते हुए बेरोजगारी बढ़ी है एवं वित्त व्यवस्था के अन्य मानक भी समाधान जनक प्रगति नहीं कर रहे हैं, ऐसा दावा सुब्रमण्यम ने किया है| उनके इस दावे के बाद देशभर में वित्त विशेषज्ञों ने इस विषय पर जोरदार चर्चा शुरू की है| कुछ लोगों ने सुब्रमण्यम के दावे झूठे साबित करनेवाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं|

भारत जैसे देश में संगठित क्षेत्र से अधिक असंगठित क्षेत्र में अधिक तादाद में रोजगार हैं| इस वजह से केवल असंगठित क्षेत्र में नौकरियों की स्थिति को लेकर देश के वित्तकारण की चर्चा नहीं की जा सकती, ऐसा वित्त विशेषज्ञों ने सूचित किया है| इस संदर्भ में अधिक संशोधन की आवश्यकता है, इसपर अधिकतम वित्त विशेषज्ञों की सहमति है|

Leave a Reply

Your email address will not be published.