युरोपिय महासंघ द्वारा चीन को झटका, भारत से सहयोग

नई दिल्ली/ब्रुसेल्स – चीन के साथ ‘कॉम्प्रिहेन्सिव्ह ऍग्रीमेंट ऑन इन्व्हेस्टमेंट’ (सीएआय) समझौता स्थगित करके, युरोपीय महासंघ ने चीन को फटकार लगाई। यह फैसला घोषित करने के कुछ ही घंटों में, युरोपीय महासंघ ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के संकेत दिए हैं। शनिवार को भारत और युरोपिय महासंघ के मुक्त व्यापारी समझौते की घोषणा की जाएगी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और युरोपीय महासंघ के प्रमुख नेताओं की वर्चुअल परिषद में इस बारे में फैसला होगा, ऐसी जानकारी महासंघ के कुछ अधिकारियों ने दी। युरोपीय महासंघ ने चीन को दिया यह बहुत बड़ा झटका है।

पिछले सात सालों से ‘सीएआय’ पर युरोपीय महासंघ और चीन के बीच चर्चा जारी थी। सन २०२० के दिसंबर महीने में इस समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर हुए। लेकिन उसके बाद के दौर में फ्रान्स ने, चीन में जारी बेगारी का मुद्दा उपस्थित किया। अगर इस मसले का हल नहीं निकला, तो यह समझौता रोकने की धमकी दी थी। चीन के झिंजिआंग प्रांत के उइगरवंशीय इस्लामधर्मियों द्वारा चीन सख़्ती से काम करवा रहा है। यहाँ के उइगरवंशियों से सख़्ती से भारी मेहनत करवाकर चीन उन्हें तनखा तो क्या, कम से कम स्तर का सम्मान और सुविधाएँ देने के लिए भी तैयार नहीं है। फ्रान्स ने उपस्थित किए इस मुद्दे को नज़रअंदाज करना युरोपीय महासंघ के लिए नामुमकिन बना था।

युरोपिय महासंघ ने, चीन उइगरवंशियों पर कर रहे नाइन्साफी और अत्याचारों की दखल लेकर, मार्च महीने में चीन पर प्रतिबंध लगाए थे। इस पर गुस्सा हुए चीन ने युरोपीय महासंघ के सांसदों पर प्रतिबंध लगाए। इससे महासंघ के साथ चीन के संबंधों में तनाव आया है। इसका असर सीएआय पर हुआ है। यह समझौता फिलहाल स्थगित किया गया है, ऐसा युरोपिय महासंघ के उपाध्यक्ष और व्यापारप्रमुख ‘वाल्दिस डोम्ब्रोस्किस्’ ने कुछ दिन पहले घोषित किया था। फिलहाल इस समझौते के लिए अनुकूल वातावरण नहीं है, ऐसा बताकर डोम्ब्रोस्किस् ने यह घोषणा की।

‘सीएआय’ के कारण युरोपीय महासंघ की कंपनियों को चीन में और चीन को युरोपीय महासंघ में बड़े पैमाने पर निवेश करना मुमकिन होता था। चीन ने इसका ज़बरदस्त फ़ायदा उठाया होता। उसी समय युरोपीय महासंघ की कंपनियाँ भी चीन के बड़े मार्केट का फ़ायदा उठाने के लिए उत्सुक थीं। लेकिन महासंघ की संसद में इस समझौते को विरोध हुआ था। अब तो यह समझौता स्थगित होने की घोषणा करके महासंघ ने चीन को तीखा संदेश दिया है। डोम्ब्रोस्किस् ने यह घोषणा करने के बाद, चन्द कुछ घंटों में ही युरोपीय महासंघ ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के संकेत देकर चीन के जख्मों पर नमक छिड़का है।

सन २००७ से भारत और युरोपिय महासंघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चाएँ शुरू थीं। सन २०१३ में उत्पन्न हुए मतभेद का हल ना मिलने के कारण, इस बारे में चर्चा आगे नहीं बढ़ी थी। लेकिन अब इसपर चर्चा से मार्ग निकल सकेगा, ऐसा विश्वास भारत और युरोपीय महासंघ के सूत्रों द्वारा व्यक्त किया जा रहा है। इसपर चर्चा शुरू की जाएगी, ऐसा युरोपीय महासंघ के अधिकारियों ने कहा है। आनेवाले शनिवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और युरोपीय संघ के नेताओं के बीच वर्चुअल चर्चा संपन्न होगी। उस समय इस मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा शुरू होने की घोषणा की जा सकेगी।

सन २०१८ में भारत और युरोपीय महासंघ के सदस्य देशों के बीच का व्यापार ११५.६ अरब डॉलर तक पहुँचा था। अगर मुक्त व्यापारी समझौता हुआ, तो इस व्यापार में भारी मात्रा में वृद्धि हो सकेगी। इतना ही नहीं, बल्कि युरोपीय महासंघ भारत के साथ बुनियादी सुविधाओं की विकास परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए उत्सुक है। शनिवार को होनेवाली वर्चुअल चर्चा में इसे भी प्राथमिकता दी जाएगी। भारत और युरोपीय महासंघ के बीच बुनियादी सुविधाएँ और कनेक्टिविटी बढ़ानेवालीं परियोजनाओं में सहयोग यानी चीन की ‘बेल्ट अँड रोड इनिशिएटीव्ह-बीआरआय’ परियोजना को जवाब होने की बात कही जाती है। चीन ने बीआरआय का इस्तेमाल करके, कुछ देशों को अपने कर्जे के चंगुल में फँसाया है। उन देशों को उससे छुड़ाकर, उनके सामने वैध, पारदर्शी परियोजनाओं का विकल्प रखने के प्रयास, भारत और युरोपीय महासंघ करेंगे, ऐसे संकेत मिल रहे हैं।

इन प्रयासों में यदि भारत और महासंघ को सफलता मिली, तो बीआरआय का इस्तेमाल करके, अपने राजनीतिक और सामरिक हेतु हासिल करने की चीन की साजिश ध्वस्त की जाएगी। इसका झटका चीन को लगेगा और इसके लिए ही ये कदम उठाए जा रहे हैं। अपनी आर्थिक ताकत का नाजायज़ इस्तेमाल राजनीतिक और सामरिक हेतुओं को पूरा करने के लिए कर रहा है और चीन ने कर्जे के चंगुल में फ़ँसाकर इन गरीब देशों को चूसना शुरु किया है। इसी कारण इस मोरचे पर भारत और युरोपीय महासंघ के सहयोग को सामरिक महत्व आया है।

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