शांति और समृद्धता के लिए भारत के साथ सहयोग करेंगे – श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे

कोलंबो – श्रीलंका के प्रधानमंत्रीपद की शपथ लेरहे महिंदा राजपक्षे ने अपना अभिनंदन कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया है| शांति और समृद्धता के लिए भारत के साथ सहयोग करने की इच्छा प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने व्यक्त की है| राष्ट्राध्यक्ष होते हुए श्रीलंका की विदेश नीति पूरी तरह से चीन समर्थक करनेवाले राजपक्षे ने अपनाई भूमिका में बदलाव होने के संकेत इससे प्राप्त हो रहे है| फिर भी भारत ने राजपक्षे को लेकर सावधानी बरतना अच्चा होगा, यह सलाह विश्‍लेषक दे रहे है|

श्रीलंका के चुनावों में महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई गाताबाया राजपक्षे ने जीत हासिल की है और वह श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष बने है| इसके बाद महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली| इससे पहले भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने श्रीलंका पहुंचकर राष्ट्राध्यक्ष गाताबाया राजपक्षे से बातचीत की| गातोबाया राजपक्षे ने अपनी पहली विदेशयात्रा के लिए भारत का चयन किया है और वह २९ नवंबर से दो दिन की भारत यात्रा करेंगे| इस वजह से राजपक्षे भाईयों ने पहले चीन के समर्थन में अपनाई भूमिका में बदलाव करने का चतुरता के साथ निर्णय किया होगा, यह संकेत प्राप्त हो रहे है| इससे पहले भारत का विरोध करने के लिए जाने जा रहे महिंदा राजपक्षे की भूमिका में हुआ यह बदलाव भारत के लिए स्वागतार्ह साबित हो सकता है|

वर्ष २००५ से २०१५ के दौरान श्रीलंका का नेतृत्व करनेवाले राजपक्षे ने चीन के समर्थन में भूमिका रखकर भारत की सुरक्षा को चुनौती दी थी| इसका पूरा लाभ उठाकर चीन ने श्रीलंका को अपना सामरिक ठिकाना बनाया था| साथ ही श्रीलंका को चीन ने कर्ज के फंदे में फंसाया था| इस वजह से श्रीलंका को अपना हंबंटोटा बंदरगाह ९९ वर्षों के लिए चीन के हाथ सौपना पडा था| इसका काफी बडा झटका राजपक्षे को लगा है और वर्ष २०१५ में हुए चुनावों में उन्हें बडी हार का सामना करना पडा|

इस हार के लिए राजपक्षे ने भारत को जिम्मेदार कहा था| पर, अब फिर से सत्ता प्राप्त करने पर राजपक्षे को चीन के समर्थन में अपनी नीति रखना मुमकिन नही होगा, ऐसा राजनयिक निरीक्षकों का कहना है| चीन के शिकारी अर्थकारण की अब सभीयों को जानकारी हुई है और चीन अपने कर्ज के फंदे में छोटे देशों को फंसाता है, यह बात अब साबित हुई है| इसी वजह से राजपक्षे अब चीन से नही, बल्कि भारत के साथ सहयोग बढाएंगे, यह दावा विश्‍लेषक कर रहे है| ऐसा होते हुए भी भारत ने राजपक्षे के साथ सहयोग करते समय सावधानी बरतना अच्छा होगा, यह सलाह विश्‍लेषक दे रहे है|

 

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