ब्रह्मपुत्रा नदी के नीचे से सुरंगी मार्ग के लिए केंद्र की मंज़ुरी

गुवाहाटी – असम में ब्रह्मपुत्रा नदी के नीचे सामरिक रूप से बहुत ही महत्त्वपूर्ण सुरंगी मार्ग का निर्माण शुरू करने के लिए केंद्र सरकार ने मंज़ुरी दी है। नदी के नीचे बनने वाला यह भारत का पहला सुरंगी मार्ग है। इसकी वजह से असम और अरुणाचल प्रदेश साल के १२ महीने एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे। तथा इस सुरंगी मार्ग के द्वारा चीन सीमा पर रक्षा उपकरण और सेना के लिए रसद की आपूर्ति तेज़ी से की जा सकती है। इससे यह पता चलता है कि भारत चीन से सटे सीमाक्षेत्र की सुरक्षा की ओर बहुत गंभीरता से देख रहा है।

ब्रह्मपुत्रा नदी

असम के गोहपुर और नुमालीगढ़ इन दो इलाकों को यह सुरंगी मार्ग जोड़ेगा। चीन अपने जियांगसू इलाके में तायहू झील के नीचे एक सुरंगी मार्ग का निर्माण कर रहा है। असम में ब्रह्मपुत्रा नदी के नीचे बनने वाला यह सुरंगी मार्ग उससे भी लंबा होगा, ऐसा दावा किया जा रहा है। ‘नेशनल हाईवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (एनएचआयडीसीएल) के एक अधिकारी के अनुसार, इस सुरंगी मार्ग की लंबाई १४.५ किलोमीटर होगी। मार्च महीने में ही केंद्र सरकार ने इस परियोजना को मंज़ुरी दी थी। वहीं, अब इस परियोजना का निर्माणकार्य शुरू करने को मंज़ुरी दी गई है।

इस सुरंगी मार्ग के निर्माण के लिए ‘एनएचआयडीसीएल’ अमरीका की लुईस बर्जर कंपनी की मदद लेनेवाला है और दिसंबर तक सुरंगी मार्ग के निर्माण का काम शुरू हो जायेगा। यह काम तीन चरणों में पूरा किया जाएगा, ऐसा ‘एनएचआयडीसीएल’ के अधिकारी ने कहा है। ब्रिटेन और फ्रान्स के बीच बसी इंग्लिश खाड़ी स्थित टनेल की तरह, ब्रह्मपुत्रा नदी के नीचे एक सुरंगी मार्ग का निर्माण करने का प्रस्ताव सेना ने केंद्र सरकार को दिया था। क्योंकि असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाला पुल दुश्मन की सेना द्वारा आसानी से लक्ष्य किया जा सकता है। ऐसे में, यह सुरंगी मार्ग अरुणाचल प्रदेश की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, ऐसा सेना का सुझाव था। उसके बाद सरकार ने इस परियोजना को मंज़ुरी दी थी।

ब्रह्मपुत्रा नदी

भारत द्वारा सीमाक्षेत्र में तेज़ी से हो रहे बुनियादी सुविधाओं के निर्माण से चीन बेचैन है। लद्दाख में चीन ने की हुई ख़ुराफ़ात के पीछे यह एक मुख्य कारण था, ऐसा विश्लेषकों का कहना है। अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम इन राज्यों के साथ असम में भी भारत द्वारा बुनियादी सुविधाएँ, सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सड़कों, पुलों, रेलवे परियोजनाओं के निर्माण में तेजी लायी गई है। इस वजह से भारतीय रक्षा बलों की क्षमता में भी वृद्धि हुई है। अगर संघर्ष हुआ, तो इन बुनियादी सुविधाओं की वजह से, भारत बहुत कम समय में चीन को प्रत्युत्तर दे सकता है इस बात का एहसास हो चुका चीन बेचैन हुआ है, ऐसा दावा किया जा रहा है।

गलवान में चीन ने किए हुए विश्वासघात के बाद, कभी भी संघर्ष भड़क सकता है ऐसी परिस्थिति होने के बावजूद, सीमा क्षेत्र में पुलों और सड़कों का निर्माण रोका नहीं गया था। वहीं, कुछ पुलों का काम तो रिकार्ड़ समय में पूरा किया गया है। गलवान के संघर्ष के बाद ये काम अधिक ही तेज़ किये गए हैं। इसी बीच, लद्दाख में चीन सीमा तक ब्रॉड गेज रेलवे लाइन का निर्माण किया जा रहा है। बिलासपुर-मनाली-लेह ऐसा यह रेलवे मार्ग होकर, कुछ ही दिन पहले इस मार्ग पर भागों को समतल बनाने का काम पूरा किया गया था। उसके बाद अब बिलासपुर से ब्रॉड गेज रेल की पटरियाँ बिछाने का काम शुरू होने की ख़बर आयी है।

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