चिनी कंपनियों का प्रभाव रोकने के लिए ब्रिटन लायेगा नया क़ानून

लंडन – विदेशी कंपनियों ने यदि ब्रिटिश कंपनियों पर ज़बरदस्ती से कब्ज़ा करके राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़्तरा निर्माण किया, तो उन कंपनियों के ख़िलाफ़ अपराधिक स्वरूप की कार्रवाई की जायेगी, ऐसे संकेत ब्रिटन द्वारा दिये गए हैं। उसके लिए जल्द ही ब्रिटन की संसद में एक विधेयक रखा जानेवाला होकर, प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने इस मामले में आग्रही भूमिका अपनायी होने की जानकारी ब्रिटिश माध्यमों ने दी है। ब्रिटन की अर्थव्यवस्था में चिनी कंपनियों के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है, ऐसा बताया जाता है। कुछ ही दिन पहले, ब्रिटन ने ‘५जी’ क्षेत्र में चिनी कंपनियों के प्रभाव को कम करने के लिए स्वतंत्र मोरचा स्थापन करने का प्रस्ताव रखा दिया था।

कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर, जागतिक व्यापार तथा उद्योग क्षेत्र की कई कंपनियों को भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान सहन करना पड़ा। हज़ारों कंपनियाँ आर्थिक दृष्टि से पूरी तरह ढ़ह गयीं होकर, फिर से खड़ीं होकर व्यवहार शुरू करने के लिए उन्हें बड़े निवेश की आवश्यकता है। इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए चीन की कंपनियों ने दुनिया की विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियों में तेज़ी से निवेश शुरू किया है। अमरीका के साथ युरोप एवं एशियाई देशों में यह निवेश शुरू होकर, कंपनियों पर कब्ज़ा करके उस उस क्षेत्र पर वर्चस्व प्राप्त करने के चीन के ईरादे हैं। इस मामले में विभिन्न दावें भी प्रसारमाध्यमों मे सामने आये हैं।

चीन के ईरादों को नाक़ाम बनाने के लिए अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत जैसे देशों ने कदम उठाना शुरू किया होकर, ब्रिटन द्वारा दिये गए नये क़ानून के संकेत भी उसीका भाग साबित होते हैं। ब्रिटन के ‘द टाइम्स’ इस दैनिक ने इस संदर्भ में ख़बर दी होकर, प्रधानमंत्री जॉन्सन तथा उनके सलाहकार डॉमिनिक कमिंग्ज इस विधेयक को लेकर आग्रही हैं, ऐसा बताया गया है। किसी विदेशी कंपनी ने यदि ब्रिटिश कंपनी पर कब्ज़ा करने की कोशिश की और उसके कारण देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा होने के संकेत मिलें, तो उस कंपनी पर कार्रवाई करने का प्रावधान नये विधेयक में होनेवाला है। यह कार्रवाई, अपराधिक स्वरूप की सज़ा और निर्बंध इस रूप में होगी, ऐसी जानकारी ‘द टाइम्स’ इस अख़बार ने दी।

यदि किसी विदेशी कंपनी ने ब्रिटिश कंपनी के २५ प्रतिशत या उससे अधिक शेअर्स ख़रीदें, कंपनी की मालमत्ता अथवा तंत्रज्ञान की ख़रीद की, तो यह सारी जानकारी ब्रिटिश सरकार को बताना बंधनकारक होगा। वहीं, विदेशी कंपनी ने कब्ज़ा करने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने जारी कीं शर्तों का पालन भी कंपनी को करना होगा। यदि उनका पालन ना हुआ, तो कंपनी के निदेशकों को निष्कासन, जेल और आर्थिक जुर्माना ऐसी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा, इसका प्रावधान नये विधेयक में है, ऐसा ब्रिटिश अख़बार ने कहा है।

विधेयक का स्वरूप हालाँकि विदेशी कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई ऐसा है, फिर भी उसका मुख्य लक्ष्य चीन ही होने की बात स्पष्ट हुई है। कोरोना की महामारी, ‘५जी’ और हाँगकाँग इन मुद्दों को लेकर ब्रिटन की जॉन्सन सरकार ने चीन के ख़िलाफ़ खुलेआम राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत की है। पिछले कुछ हफ़्तों में ब्रिटिश सरकार ने किये निर्णय इस बात की पुष्टि करनेवाले हैं। इनमें कोरोना महामारी के मामले में चीन की तहकिक़ात के लिए अपनायी आग्रही भूमिका, हाँगकाँग की जनता को ब्रिटिश नागरिकता देने के संकेत और ‘५जी’ क्षेत्र में चिनी कंपनियों के विरोध में मोरचा खोलने के लिए रखा प्रस्ताव, इनका समावेश है।

ब्रिटिश सरकार चिनी कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की तैयारी कर रही है कि तभी दूरसंचार क्षेत्र की अग्रसर चिनी कंपनी होनेवाली ‘हुवेई’ ने ब्रिटन में नयी मुहिम छेड़ी है। कंपनी को ब्रिटन में दो दशक पूरे हुए होकर, उस पृष्ठभूमि पर यह मुहिम हाथ में ली होने का खुलासा कंपनी द्वारा किया गया। वास्तव में यह मुहिम यानी ‘५जी’ मुद्दे पर जॉन्सन सरकार पर दबाव डालने की कोशिश कर रही है, ऐसा बताया जाता है। इस मुहिम के संदर्भ में जारी किये गए एक निवेदन में हुवेई ने, ब्रिटन में अपना नेटवर्क और अपनी कंपनी को यदि ‘५जी’ में अवसर ना दिया, तो ब्रिटन के विभिन्न क्षेत्रों पर होनेवाला परिणाम, इसका उल्लेख भी किया है। इस कारण अब आनेवाले समय में यह मुद्दा ब्रिटन और चीन के बीच के राजनीतिक संबंधों की परीक्षा लेनेवाला साबित होगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं।

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