‘आईएनएस विक्रांत’ के लिए फ्रान्स के ‘रफायल-एम’ का परीक्षण शुरू

नई दिल्ली – देश का दूसरा विमान वाहक युद्धपोत ‘आईएनएस विक्रांत’ इसी वर्ष नौसेना के बेड़े में शामिल होगा। इस युद्धपोत के लिए फ्रान्स के रफायल विमानों के संस्करण का परीक्षण गुरूवार को शुरू हो रहा है। इसके बाद अन्य देशों के विमानों का भी परीक्षण किया जाएगा। लेकिन, रफायल विमान इस स्पर्धा में सबसे आगे होने के दावे किए जा रहे हैं। ‘आईएनएस विक्रांत’ का समावेश होने से भारतीय नौसेना का सामर्थ्य प्रचंड़ मात्रा में बढ़ेगा, यह विश्‍वास नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.हरिकुमार ने व्यक्त किया।

‘आईएनएस विक्रांत’अमरीका, ब्रिटेन, फ्रान्स, इटली और चीन की नौसेनाएं विमान वाहक युद्धपोतों का इस्तेमाल करती हैं। नौसेना के सामर्थ्य का प्रदर्शन विमान वाहक युद्धपोत के ज़रिये किया जाता है। नौसेना अड्डों पर तैनात युद्धपोत गहरे समुद्र में जाकर हमला नहीं कर सकते, इसकी काफी मर्यादा होती है। इसके अलावा नौसेना के अड्डे पर तैनात लड़ाकू विमानों की गतिविधियों के लिए भी काफी मर्यादा होती है। लेकिन, विमान वाहक युद्धपोत के ज़रिये गहरे समुद्री क्षेत्र में मुहिम सफल करना मुमकिन होता है। इस वजह से देश के समुद्री क्षेत्र के हितों की सुरक्षा तय होती है, ऐसा कहकर एडमिरल आर.हरिकुमार ने विमान वाहक युद्धपोत की अहमियत रेखांकित की।

अब तक विमान वाहक युद्धपोतों पर रशियन ‘मिग-२९ के’ विमानों की तैनाती होती थी। लेकिन, यह विमान अब निवृत्ति के करीब हैं। नए विमान वाहक युद्धपोत के लिए प्रगत लड़ाकू विमानों की खरीदारी ज़रूरी है। इसके अपने ‘रफायल मरिन’ यानी ‘रफायल-एम’ का प्रस्ताव फ्रान्स ने भारत को दिया है। साथ ही अमरीका की बोर्इंग कंपनी ने अपने ‘एफ-१८ हॉर्नेट’ विमानों की आपूर्ति करने का प्रस्ताव भी भारत के सामने रखा है। इसके अलावा अमरीका भारतीय नौसेना के लिए लड़ाकू ‘एफ-३५’ विमानों का स्वतंत्र संस्करण विकसित करने में जुटी होने की खबरें प्राप्त हो रही हैं।

मौजूदा स्थिति में लड़ाकू विमानों की खरीद भारत के विदेशी ताल्लुकातों पर असर करनेवाला विषय हो गया है। लड़ाकू विमानों की इस स्पर्धा में रफायल-एम सफल होने की कड़ी संभावना है, ऐसे दावे विश्‍लेषक कर रहे हैं। लेकिन, भारत ने ऐसा निर्णय किया तो इस पर अमरीका प्रतिक्रिया दर्ज़ कर सकती है। भारत ने रशिया से ‘एस-४००’ खरीदकर अमरीका को पहले ही दुखाया था। लेकिन, रक्षा सामान खरीदने का निर्णय करते समय भारत किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा और इस मुद्दे पर किसी का दबाव नहीं सहेगा, यह इशारा भारत ने पहले ही दिया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published.