नेपाल के प्रधानमंत्री की विपक्षद्वारा घेराबंदी

काठमांडू – चीन का समर्थन करनेवाले नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली के इस्तीफे के मुद्दे पर, शासक कम्युनिस्ट पार्टी में दरार पड़ना अब तय हुआ है। रविवार के दिन प्रधानमंत्री ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल (प्रचंड) ने मतभेद दूर करने के लिए एक बैठक की। लेकिन, दोनों नेताओं की इस बैठक से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है। इसके बाद नेपाल के प्रधानमंत्री ने नेपाल के सेनाप्रमुख जनरल पूर्ण चंद्र से चर्चा की। इससे नेपाल के प्रधानमंत्री अब सेना के सहयोग से अपनी सरकार बचाने की कोशिश में होने की चर्चा शुरू हुई है।

Nepalचीन के समर्थन पर भारतविरोधी निर्णय करनवाले प्रधानमंत्री ओली का भविष्य कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिती की बैठक में तय होगा। लेकिन, उससे पहले ओली अपना स्वतंत्र दल स्थापित करके विरोधकों के साथ हाथ मिलाकर सत्ता स्थापित करने की कोशिश में जुटे हैं। इसके लिए उन्होंने विपक्ष के कुछ नेताओं से भेंट करने की ख़बरें आ रहीं हैं। साथ ही, पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड भी ओली को हटाकर सरकार स्थापित करने की कोशिश में होने की बात कही जा रही है।

प्रधानमंत्री ओली को पार्टी से बड़ा विरोध हो रहा है और पार्टी के अध्यक्षपद या प्रधानमंत्रीपद का इस्तीफा यह अब उनके लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बना है और वे किसी भी पद से इस्तीफा नहीं देंगे, ऐसे संकेत ओली ने पहले ही दिए थे। शासक कम्युनिस्ट पार्टी के लगभग सभी वरिष्ठ नेता ओली के विरोध में हैं। बुधवार के दिन पार्टी की स्थायी समिती की बैठक हुई। इस दौरान बैठक में शामिल ४५ में से ३३ सदस्यों ने प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की माँग की थी। अब तो अधिकांश नेता ओली से प्रधानमंत्री पद के साथ, पार्टी के अध्यक्षपद का भी इस्तीफा देने की माँग कर रहे हैं।

ओली प्रधानमंत्री होने के बाद निरंकुश हुए थे। पार्टी का अध्यक्षपद भी वे ही संभाल रहे थे और इसकी वज़ह से पार्टी के अन्य नेताओं के विचारों को अहमियत देना भी उन्होंने छोड़ा था। प्रचंड और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ सलाह-मशवरा किये बिना निर्णय लेना उनके लिए महँगा साबित हुआ है। इसी बीच, उन्होंने अपने अधिकारों में बढ़ोतरी करने के लिए दो विधेयक रखने की कोशिश की। लेकिन, इसके बाद पार्टी में उनके विरोध का माहौल बना और उनकी मान्यता भी कम हुई, यह बात नेपाल के कुछ विश्‍लेषक और माध्यमों ने कही है।

तीन महीनें पहले की इन घटनाओं के बाद, अपने विरोध में माहौल बन रहा है, यह मद्देनज़र रखते हुए उन्होंने भारत के साथ सीमाविवाद निर्माण करने की हरकत की। इससे प्रधानमंत्री ओली के साथ, उनकी पार्टी और विपक्षी दलों के नेताओं को भी खड़ा रहना पड़ा। लेकिन, अब इस विवादास्पद नक्शे से संबंधित विधेयक मंज़ूर होने के बाद, ओली को उन्हीं की पार्टी में बड़ा विरोध होना शुरू हुआ है और अब इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए उनके हाथ में अन्य विकल्प ना होने का दावा किया जा रहा है।

इसी बीच भारत के और अपने ही दल के नेताओं के विरोध में रखें आरोपों के कारण, ओली को हो रहे विरोध में बढ़ोतरी हुई है। विदेश नीति के मुद्दे पर उन्हें लक्ष्य किया जा रहा है। कुछ भ्रष्टाचार के आरोप भी ओली सरकार पर लगे हैं और इसमें चीन ने नेपाल के क्षेत्र पर कब्ज़ा करने का मुद्दा कम्युनिस्ट पार्टी की प्रतिमा मलीन कर रहा है; और इस वज़ह से, ओली के इस्तीफे के अलावा या फिर सत्ता बरक़रार रखने के लिए पार्टी में फ़ूट निर्माण करने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा है, ऐसा कहा जा रहा है।

शनिवार की रात प्रधानमंत्री ओली ने राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी से भेंट करने के बाद मंत्रिमंडल की बैठक भी बुलाई थी। इस बैठक में प्रधानमंत्री ओली ने, पार्टी की एकता के लिए खतरा बना है और अब कुछ भी हो सकता है, ऐसी चिंता जताई। साथ ही, उनके समर्थन में कौन कौन हैं, यह सीधा सवाल उन्होंने अपने मंत्रियों से करने की ख़बर भी प्रकाशित हुई है।

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