नेपाल के प्रधानमंत्री पद पर के.पी. शर्मा ओली विराजमान

काठमांडू: नेपाल के ४१ में प्रधानमंत्री के तौर पर के.पी.शर्मा ओली विराजमान हुए हैं। चीन समर्थक धारणाओं के लिए प्रसिद्ध होनेवाले ओली के कार्यकाल में भारत के सामने चुनौतियां अधिक बढ़ेंगी, ऐसा दिखाई देने लगा है। प्रधानमंत्री ओली भारत एवं चीन में संतुलन रखने वाले विदेश धारणा स्वीकारेंगे, ऐसे सूचक शब्दों में नेपाल के माध्यम उनकी धारणाएं स्पष्ट कर रहे हैं।

के.पी.शर्मा ओली

२ महीनों पहले नेपाल में संपन्न हुए चुनाव में के.पी.ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनाइटेड मार्क्सिस्ट एंड लेनेनिस्ट) पक्ष को बड़ी तादाद में बहुमत मिला है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) इस पक्ष के साथ संगठन कर के के.पी.ओली ने चुनाव में भाग लिया था।

इन दोनों पक्षों के संगठन को २७४ जगहों में से १७४ जगह मिले हैं। इस में के.पी.ओली इन के पक्ष में १२१ जगह प्राप्त किए हैं। तथा सर्वोच्च सभागृह में भी इन दोनों पक्षों के संगठन को ५९ में से ३९ जगहों प्राप्त हुए हैं। उस समय के.पी.ओली यह नेपाल के आनेवाले प्रधानमंत्री होंगे, ऐसा स्पष्ट हुआ था।

इस से पहले नेपाल में सभी पक्षों के संगठन की एक संयुक्त सरकार थी। इस के अनुसार संगठन में प्रत्येक पक्ष के नेतृत्व को देश के थोड़े समय के लिए नेतृत्व देने का निर्णय लिया गया था। उस के अनुसार के.पी. ओली अक्टूबर २०१५ से अगस्त २०१६ तक नेपाल के प्रधानमंत्री थे।

इसी समय में मधसी के आंदोलन की पृष्ठभूमि पर भारत की नेपाल में ईंधन प्रदान करने की एकाधिकार तोड़कर चीनी ईंधन कंपनियों को नेपाल में ईंधन प्रदान करने की अनुमति दी थी। तथा चीन के ओबीओआर प्रकल्प में शामिल होने के साथ अन्य महत्वपूर्ण करार किए थे। इस में रेलवे, इंटरनेट एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं के बारे में करार का समावेश था।

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