हंबंटोटा बंदरगाह चीन को देकर श्रीलंका ने गलती की – श्रीलंका के विदेश सचिव ने किया कबूल

कोलंबो – श्रीलंका ने हंबंटोटा बंदरगाह चीन को देकर काफी बड़ी गलती की है, यह बात श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोंलबेज ने स्वीकारी है। लेकिन, इसके आगे श्रीलंका की विदेश नीति भारत केंद्रित रहेगी, यह भरोसा भी विदेश सचिव कोंलबेज ने दिया। साथ ही भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बने ऐसी कोई भी कृति श्रीलंका से नहीं होगी, यह आश्‍वासन भी कोंलबेज ने दिया। श्रीलंकन वृत्तसंस्था से हुई मुलाकात के दौरान उन्होंने भारत को आश्‍वस्त किया। श्रीलंका में सरकार स्थापित करने के बाद महिंदा राजपक्षे की सरकार ने बीते महीने से चीन के खिलाफ़ की हुई यह दूसरी बड़ी आलोचना है।

हंबंटोटा बंदरगाह

श्रीलंका की विदेश नीति में भारत के लिए प्राथमिकता रहेगी। श्रीलंका इसके आगे भारत के लिए खतरा नहीं होगा। श्रीलंका की संपत्ति का अन्य किसी भी देश को इस्तेमाल करने नहीं दिया जाएगा, यह आश्‍वासन भी श्रीलंका के विदेश सचिव ने दिया। राष्ट्राध्यक्ष के आदेश पर ही भारत के साथ संबंधों के लिए प्राथमिकता दी जा रही है। आर्थिक विकास के लिए एक देश पर निर्भर रहना संभव नहीं है। भारत की हमें जरूरत है, यह बात भी उन्होंने आगे कही।

कोंलबेज वर्ष २०१२ से २०१४ के दौरान श्रीलंका के नौसेनाप्रमुख थे। साथ ही वह श्रीलंका की विदेश नीति के अभ्यासक समझे जाते हैं। हंबंटोटा बंदरगाह चीन को प्रदान करके श्रीलंका ने काफी बड़ी गलती की है, यह बात उन्होंने स्वीकार की। वर्ष २०१७ में श्रीलंका ने अपना हंबंटोटा बंदरगाह चीन को ९९ वर्षों के लिए भाड़े पर दिया था। भारत ने इस पर चिंता व्यक्त की थी। इस बंदरगाह का इस्तेमाल करके वहां पर अपने लष्करी अड्डे का निर्माण करने की मंशा चीन ने रखी थी। लेकिन, चीन के कर्ज का फंदा अधिक कसने के बाद श्रीलंका ने चीन से संबंधित नीति में बदलाव किए हैं। वर्तमान में चीनी कंपनी इस बंदरगाह के ८५% शेअर्स रखती है। साथ ही इस बंदरगाह का इस्तेमाल सिर्फ व्यावसायिक कारणों के लिए ही करने के आदेश भी श्रीलंका ने चीन को दिए हैं। इस बंदरगाह का इस्तेमाल लष्करी कार्रवाई के लिए नहीं होना चाहिए, यह बात भी श्रीलंका ने चीन को ड़टकर समझायी है। अन्य शब्दों में इस बंदरगाह का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होगा, यही बात श्रीलंका भारत से कह रहा है।

हंबंटोटा बंदरगाह

इससे पहले महिंदा राजपक्षे ने अपने श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष पक दे कार्यकाल के दौरान अपनी नीति चीन समर्थक रखी थी। भारत का द्वेष करनेवाला नेता के तौर पर उनकी पहचान बनी थी। लेकिन, चीन के कर्ज का फंदा श्रीलंका पर कसते ही और अर्थ व्यवस्था की गिरावट होते ही राजपक्षे की नीति में बदलाव होने की बात कही जा रही है। इसके अलावा श्रीलंका पर हुए आतंकी हमलों के खिलाफ राजपक्षे को भारत की ज़रूरत का एहसास होने लगा। इसी वजह से श्रीलंका में दुबारा सरकार बनाते ही महिंदा राजपक्षे ने भारत को अहमियत दी है।

श्रीलंका का नियंत्रण हाथ में लेने के बाद राजपक्षे ने भारत के प्रधानमंत्री को ही पहला फोन करके दोनों देशों के बीच सहयोग की अहमियत रेखांकित की। इसके अलावा गोताबाय राजपक्षे ने शपथ ग्रहण करने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत का चयन करके श्रीलंका की विदेश नीति में भारत की पहली प्राथमिकता रहेगी, यही संकेत दिए थे। भारत के पड़ोसी देशों को अपने जाल में खींचने की कोशिश चीन कर रहा है और तभी श्रीलंका और भारत का बढ़ रहा सहयोग काफी अहम साबित होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.