‘आयएनएस कलवरी’ भारतीय नौदल के बेड़े मे शामिल – प्रधानमंत्री मोदी के हाथों राष्ट्रार्पण

मुंबई: शत्रु की रडार यंत्रणा को पता न चलते हुए लक्ष्य भेदने वाली ‘कलवरी’ पनडुब्बी भारतीय नौदल के बेड़े में दाखिल हुई है। ‘प्रोजेक्ट ७५’ के अंतर्गत फ्रांस के सहयोग से भारतीय नौदल के लिए निर्माण होनेवाले ‘स्कोर्पीन’ श्रेणी के छह पनडुब्बियों में यह पहली पनडुब्बी है। आयएनएस ‘कलवरी’ के समावेश से भारतीय नौदल की क्षमता में बड़ी तादाद में बढ़त हुई है। यह पनडुब्बी मतलब भारत और फ्रांस इनमें गतिमान रूप से विकसित हो रहे धारणा की साझेदारी का उत्तम उदाहरण है ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने कही है।

पिछले वर्ष कलवरी का जलावतरण हुआ था। उसके बाद १२० दिन इस पनडुब्बी को विविध सागरी परीक्षण से गुजरना पड़ा। उसमें इस पनडुब्बी पर लगाए गए विभिन्न उपकरणों तथा उसपर तैनात होने वाले तोंफ एवं मिसाइल के परीक्षण का समावेश था। यह सारे परीक्षण सफल हुए हैं। ‘सबमरीन टैक्टिकल इंटीग्रेटेड कॉम्बैक्ट सिस्टम’ से यह पनडुब्बी सुसज्ज हुई है। इसमें अत्याधुनिक सेंसर्स लगाए गए हैं। तथा लो लाइट लेवल कैमरा और लेजर रेंज फाइंडर जैसे तंत्रज्ञान भी इस पनडुब्बी पर होकर बैटरी गतिमान रूप से चार्ज करने के लिए १२५० किलोवैट के दो डीजल इंजन भी लगाए गए हैं।

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यह पनडुब्बी दीर्घकाल के लिए गहरे समंदर में रह सकती है और ३०० मीटर सागरी गहराई से यात्रा करने में सक्षम है। इसकी वजह से आयएनएस कलवरी को ढूंढना कठिन होगा। कलवरी पर १८ टोरपेड़ो एवं ट्यूब लॉन्च एंटीशिप मिसाइल होकर इस द्वारा पानी से पानी में और पानी से जमीन पर हमला किया जा सकता है। स्टेल्थ बनावट और अचूक लक्ष्य का भेद करनेवाली यंत्रणा यह आयएनएस कलवरी का सामर्थ्य है। इस पनडुब्बी के स्टेल्थ क्षमता की वजह से पानी में रहकर भी गोपनीय जानकारी जमा करना और शत्रु पर हमला करना आसान होगा।

इस पनडुब्बी का निर्माण माजगाव गोदी में किया गया है और स्कॉर्पीन श्रेणी में और पांच पनडुब्बियों का निर्माण हो रहा है। फ्रांस के सहयोग से जारी किए ‘प्रोजेक्ट ७५’ के अंतर्गत इस पनडुब्बी का निर्माण किया गया है। फ्रांस की नौदल रक्षा और ऊर्जा कंपनी डीसीएनएस ने इस पनडुब्बी की रचना की है। पिछले वर्ष सबमरीन डाटा लीक मामले की वजह से आयएनएस कलवरी नौदल के बेड़े में शामिल होने के लिए विलंब हुआ था।

गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों इस पनडुब्बी का राष्ट्रार्पण हुआ है। उस समय रक्षामंत्री निर्मला सीतारामन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और नौदल प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा जैसे अनेक वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। आयएनएस कलवरी यह मेक इन इंडिया का उत्तम उदाहरण होने की बात प्रधानमंत्री ने कही है। २१वी सदी में विकास का मार्ग यह हिंद महासागर द्वारा ही प्रस्थापित होगा ऐसा दावा करते हुए प्रधानमंत्री मोदीने सरकार के धारणा में हिंद महासागर को विशेष स्थान होने के बात स्पष्ट की है। इस पनडुब्बी के निर्माण के लिए योगदान देने वाले सभी का प्रधानमंत्री मोदी ने अभिनंदन किया है।

आधुनिक तंत्रज्ञान से युक्त पनडुब्बियां अपनी सुरक्षा के लिए एवं शत्रु पर नियंत्रण रखने के लिए आवश्यक है, ऐसा उस समय रक्षामंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा है। कलवरी यह नाम एक गहरे समंदर में छुप कर बैठे हुए और अचानक हमला करने वाले कलवरी नामक शार्क मछली से रखा गया है। १९६७ मैं भारतीय नौदल में शामिल हुए रशियन बनावट के पहले पनडुब्बी का नाम भी कलवरी था। २० वर्षों पहले यह पनडुब्बी निवृत्त तो हुई थी।

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