चंद्रकांत पाठक

भारत को कृषिप्रधान देश कहा जाता है। ‘उत्तम कृषि’! कृषिक्षेत्र के संदर्भ में उत्तम यह दर्जा हमारे देश के इस व्यवसाय को प्राचीनकाल से ही प्राप्त है। अत एव कृषि से संबंधित समस्या यह स्वाभाविक है कि सामाजिक प्रश्न बन जाता है। कृषि के लिए ऊर्जा अर्थात विद्युत् की समस्या सुलझाने के लिए प्रदूषण को दूर करना, पर्यावरण की स्थिति अनुकूल बनाये रखने के लिए इंधन विरहित विद्युत् जैसे अपारंपरिक ऊर्जा उपकरण के प्रति संशोधन एवं निर्मिति करनेवाले चंद्रकांत पाठक समान तकनीशन, संशोधनकर्ता का कार्य काफी महत्त्वपूर्ण साबित होता है।

सातारा में जन्मे चंद्रकांत पाठक के पिता अध्यापक होने के कारण अनुशासन वृत्ति बनाये रखनेवाले पाठक ने सातारा एवं पूना से मेकॅनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा पूर्ण की। राजकोट में मित्र के कारखाने में उन्होंने अपने कार्य एवं तकनीकी प्रयोगों की शुरूआत कर दी। इसके पश्चात् पूना में ‘मॉर्डन टेक्निकल सेंटर’ नामक प्रशिक्षण संस्था शुरू करके १९६४ से १९९२ के दौरान हजारों विद्यार्थियों को प्रशिक्षण के माध्यम से व्यावसायिक दिशा प्रदान कर उनके उदरनिर्वाह की समस्या का समाधान करते हुए औद्योगिक उपनिवेशकों को प्रशिक्षित कारीगर प्रदान करना इससे इस प्रकार का दोहरा हेतु साध्य हुआ।

१९८२ से रिलीफ फंड कार्य निमित्त से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के साथ इनका काफी करीब से परिचय होता रहा और यहीं से चंद्रकांत पाठक के अंदर का संशोधक कार्यक्षम होता गया। ज़रूरत के अनुसार बिजली समय पर उपलब्ध न रहना यह समस्या तो थी ही, इसके लिए पवन, सौर, जलऊर्जा इन सभी का पर्याय होता है परन्तु यह अपारंपरिक पर्याय अपनी क्षमता से परे रहता हैं। इस समस्या का समाधान करते समय कृषकों (किसानों) के पास जो भी साधन हैं उनका उपयोग करते हुए उन्हें सबल कैसे बनाया जा सकता है इस बात की खोज वे करते रहे। कृषकों के पास होनेवाली बैलगाड़ी, बैल, सायकिल, झूला एवं उनकी स्वयं की शारीरिक ऊर्जा आदि का उपयोग करके पाठक को ऊर्जानिर्मिति करने में सफलता मिली।

सायकिल के पहिए की सहायता से चाकू-छूरियों में धार लगानेवाला व्यक्ति उनके लिए मार्गदर्शक साबित हुआ। ‘वनराई जलपंप’ नाम से इस यंत्र का निर्माण हुआ। इस पंप की सहायता से एक मिनिट में ४० लीटर पानी की प्राप्ति होती है इस बात का उन्हें पता चला और इसी की सहायता से बांधकाम पर पानी मारना, गौशाला साफ करना, कुओं एवं सूख चूके जलाशयों आदि का पुन:पूरण करना ऐसे काम होने लगे।

इसके पश्चात उन्होंने मॉर्डर्न पिस्टन पंप, मॉर्डन सिंगल पिस्टन पॉवर फव्वारा पंप, माल एवं कूड़ा-कचरा उठाकर ले जाने के लिए बायसिकल, रिक्षा,. व्हेजिटेबल कटर इस प्रकार की सायकल पर आधारित यंत्र तैयार किए। यंत्र द्वारा टिश्युकल्चर पोधौं पर, हरि सब्जियों पर फव्वारा किया जा सकता है। खुले गटर, नालों आदि स्थानों पर औषधि फव्वारा, कलमों को ठिबक सिंचन किया जा सकता है। ग्रामस्वच्छता हेतु भी यह यंत्र उपयोगी साबित होता है। इस पंप के पश्चात पाठक ने मॉर्डन सिंगल पिस्टन पॉवर फव्वारे का पंप तैयार किया, उसका पहले पंप की अपेक्षा निरालापन अर्थात फव्वारे हेतु अधिक दाब निर्माण होता है। सायकिल के सीट पर बैठकर ५० मीटर दूर तक के फसलों पर यह फव्वारा काम करता है, ७ मीटर की गहराई तक के पानी को ३० मीटर की ऊंचाई तक चढ़ाया जाता है। छोटी आग बुझाने के लिए गांवों में यह पंप उपयुक्त साबित होता है।

माल की यातायात सुविधा हेतु बायसिकल, रिक्षा आदि चंद्रकांत पाठक ने विकसित किए। इन गाड़ियों द्वारा कृषि उत्पादन, कचरा, साथ ही १०० लीटर पानी का पीपा बिठा देने से जलसंवहन करना और भी अधिक सुविधाजनक हो गया है। पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में सिर पर, कमर पर गागर रखकर दूर से पानी ले आनेवाली स्त्रियों की दौड़-धूप एवं कष्ट इसी कारण बच जाते हैं।

इसके पश्चात उन्होंने बैलशक्ति एवं बैलगाड़ी इस विषय की ओर अपने संशोधन कार्य को मोड़ दिया। बैलगाड़ी के पहिए में पुली बिठाकर उसका उपयोग बॅटरी चार्ज करने हेतु, फसलों को पानी देने हेतु साथ ही रात्रि के समय बैलगाड़ी के पीछे प्रकाश हेतु भूरे रंग की एवं आगे की ओर प्रकाश हेतु लाईट लगाई जाती है। इस बैल गाड़ी को एक ही स्थान पर खड़ी रखकर हाथ से गाड़ी के पहिए को गति देने पर उस पर पिस्टन पंप भी चलाना संभव हो गया है। तेल निकालने की घानी की बजाय बैलों को जोड़कर आधुनिक ऊर्जायंत्र का उपयोग किया। इसके द्वारा पानी मिल सकता है। साथ ही आटे की चक्की, मूँगफली फोड़ने का यंत्र एवं एक किलो वॅट, पॉवर का जनरेटर भी इस यंत्र पर चलाया जा सकता है।

झूले पर बैठकर झूला झूलो एवं ठिंबक सिंचन रिती से खेतों को पानी भी दो यह कल्पना काफी मजेदार लगती है। झूले के ऊपर होने वाले पंप का पिस्टन आगे-पिछे होता रहता है तथा ९ मीटर तक की गहराई का पानी हर मिनट में २० लीटर साथ ही ३० मीटर तक की ऊंचाई तक चढ़ाया जा सकता है। सायकल एवं स्कूटर में भी इस झूले को पंप लगाकर हवा भरी जा सकती है। इससे पैरों का भी व्यायाम हो जाता है।

सायकिल छाननी यंत्र के द्वारा ज्वारी, बाजरी, सोयाबीन आदि की इसके अंतर्गत छटाई, बीजप्रक्रिया, साथ ही अलगाव भी किया जा सकता है। आज हजारों कृषक इस तकनीक का प्रयोग करते हैं। महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में साथ ही देश के अन्य राज्यों में भी ये यंत्र पहुंच रहे हैं। गर्मीयों में गहराई तक जा चुके पानी के स्तर को ऊपर खींचने के लिए आधुनिक ऊर्जायंत्र पर एक बोअर पंप की तकनीक विकसित करने में वे व्यस्त हैं। कृषि, बैल, कृषक, व्यवसाय, तकनीकी ज्ञान एवं संशोधन इन सबका उत्तम मेल-जोल करने वाले चंद्रकांत पाठक को महाराष्ट्र शासन की ओर से ‘कृषि मित्र’, साथ ही ‘मराठा चेंबर्स ऑफ कॉमर्स ऍंड ऍग्रीकल्चर (पूना)’ इस संस्था की ओर से पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया है। निराश होकर अन्य किसी को दोष देने की अपेक्षा अपने स्वयं के कौशल्य का, परिश्रम का, सृजनशीलता का हमें ही उचित उपयोग करना चाहिए इसका एक सुंदर उदाहरण है चंद्रकांत पाठक द्वारा किया गया कार्य।

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