जेम्स हटन (1726-1797)

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पृथ्वि के उत्पत्तिविषयक धर्मग्रंथ में से तथा परंपरागत कथाएँ पहले ही हर तरफ रूढ हो चुकी थीं। किसी को प्रचलित सोच से भिन्न सोच सूझी, मगर धर्मग्रंथ से निराली होने पर भी उसे समाज को समझाना मुश्किल था। यह घटनाएँ प्राकृतिक कारणों की वजह से घटती हैं यह बात समझ में आना ही उस दौर की उन्नति थी। धर्मपंडित जो जो ग्रंथ पढकर सुनाते थे उसी को सच माना जाता था। स्कॉटिश संशोधक डॉ.जेम्स हटन ने जिज्ञासा से यह अध्ययन किया और भूशास्त्र, खनिजशास्त्र, पुरासात्त्विकी की नींव डाली।

डॉ. जेम्स हटन का जन्म 3 जून 1926 को एडिनबर्ग में एक अमीर किसान के घर हुआ। वहीं उन्होंने स्कूल और युनिव्हर्सिटी में शिक्षा पायी। लैटिन, ग्रीक और अंकगणित का उन्होंने अध्ययन किया। नवम्बर 1740 में अर्थात 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने एडिनबर्ग विद्यापीठ में प्रवेश पाया। वे एक वकील के पास आधे दिन के लिए कार्य करने लगे, मगर वैद्यकीय विषयों की अधिक चाह होने की वजह से उन्होंने पैरिस में वैद्यकीय शिक्षा पायी और सन 1749 में वैद्यकीय डिग्री हासिल की।

वार्विकशायर में उनकी बहुत खेतीबाडी थी। उन्होंने अपना जीवन खेती के व्यवसाय बिताने की ठानी। खेती में उन्होंने बहुत सुधार किए। वे खेती तथा उस से संबंधित कई विषयों की शिक्षा पाने नॉरफॉल्क गए। हॉलंड, बेल्जियम, उत्तर फ्रान्स में घूमे। आधुनिक औजारों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने तकरीबन 14 साल उत्तम तरीके से खेती की। सन 1754 के बाद वे रसायनशास्त्र व खनिजशास्त्र का अध्ययन करने लगे। वहीं वे अपनी तीन बहनों के साथ रहे।

उन दिनों भूशास्त्र अध्ययन की उचित दिशा, शुरुआत नहीं थी। भूशास्त्र का वैज्ञानिक स्वरूप नहीं था। हटन ने अपने घर में ही प्रयोगशाला बनायी। केवल धर्मग्रंथ में से जवाब ढूंढने के बजाए वे चट्टानों का निरिक्षण करने लगे। मगर वे कितने पुराने हैं इसके बारे में वे नहीं बता पाते थे। इसी दौरान अब्राहम वेर्नर नामक खनिजशास्त्र के प्राध्यापक का सिद्धांत थोडी बहुत लोकप्रियता पा रहा था। उनका मानना था कि यह सभी चट्टानें एक बडे सागर के तल में तैयार हुई होंगी। तथा उनका दावा था कि धरती पर कहीं भी एक जात की चट्टान की उम्र एकसी है। वेर्नर का कहना था कि धरती की उम्र विशाल है और मानव की कल्पना से परे है। धरती बहुत सारे उत्पातों, आपत्तियों से गुजर चुकी है। यह उत्पात बडी मात्रा में होने की वजह से इसे महाउत्पात कहा जाएगा। वेर्नर का यह दावा भूशास्त्र में माना जाने लगा।

जेम्स हटन का कहना था कि ग्रॅनाइट धरती की सब से पुरानी, प्राथमिक स्वरूप की चट्टान है। ठंडे शिलारस से यह बडा स्फटिक चट्टान बना होगा। एडिनबरो के ग्रैपियन हिल्स पहाडियों पर हटन को प्रमाण मिला। भूरे ग्रॅनाइट पर उन्हें कुछ परतें मिली। जिस से वे इस निष्कर्श पर पहुंचे कि ग्रॅनाइट सब से पुरानी चट्टान तल में ही होनी चाहिए। उन्हें यह प्रमाण मिला कि, ग्रॅनाइट वहां की चट्टानों से घडनीनुसार उम्र में कम है और यह द्रव स्वरूप में ऊपर आया होगा।

इस के बाद भी हटन का अध्ययन जारी था। स्कॉटलैंड में पहाड, दरियां, भूमि, चट्टानों के निरिक्षण करते हुए ही धूप, हवा, बारिश, लहरें, बर इन सब के चट्टानों पर क्या परिणाम होते हैं यह निहारने में वे दंग रहते। उन्होंने जाना कि, इन सभी तत्त्वों का परिणाम यह होता है कि भूभाग निरंतर घिसता जाता है। इस घिसने की क्रिया की वजह से बालू, पथरी, मट्टी, कीचड समन्दर में बह जाता है। इस तरह उन्होंने जाना कि अनेक बरसों तक यह क्रिया भूभाग में बदल गई होगी।

धरती की पृष्ठभूमि के बारे में हटन के ध्यान में जो महत्वपूर्ण बातें आयी वे हैं,

  1. प्राकृतिक शक्ति की वजह से भू-भाग घिसता है और उस से बना हुआ गाद, बालू पानी के प्रवाह के साथ बहता हुआ समन्दर में जा मिलता है; इस के बाद इसका बदलाव होता है।
  2. अस्तित्व में से बहुतसारी चट्टानें पुरानी चट्टानों के गूदे से बनती रहती हैं।
  3. ऐसी सभी चट्टानें सागर के तल में बने होंगे। अब का भू-भाग एक समय सागर का तल रहा होगा।

प्रकृति का यह चक्र चलता ही रहता है। सर्वप्रथम हटन ने यह सोच दुनिया के समक्ष रखी। ऐसे चक्रों के अनेक फेरे इस धरती पर हुए हैं। धरती पर आज घटनेवाली प्राकृतिक प्रक्रियाएँ कुछ गूढ चमत्कार, असाधारण घटनाएँ घटी होना असम्भव है, ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत करना हटन का महत्वपूर्ण कार्य था। यह सिद्धांत प्रस्तुत करनेवाला उनका ग्रंथ ‘थिअरी ऑ द अर्थ विद प्रूफ्स ऐंड इलस्ट्रेशन’ सन १७९५ में प्रकाशित किया गया। भूवैज्ञानिक विचार श्रेणी में जो क्रांति घटी उसे वैज्ञानिक इतिहास में शायद ही कोई तोड होगा। आज की घटनाएँ ही धरती के इतिहास की ‘मास्टर की’ है, यह आधुनिक भूविज्ञान के भौतिक तत्वों में से एक तत्व उन्होंने प्रथम प्रस्तुत किया।

१९वीं शताब्दी की शुरुआत हुई, औद्योगिक क्रांति आई, इनसान का रहनसहन सुधरा, खनिजशास्त्र की क्रांति के लिए होनेवाला उपयोग लोगों के ध्यान में आया। मगर उस से पहले ही सन 1797 में डॉ. हटन का एडिनबरो में निधन हो गया।

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