बद्रीनारायण बारवले

उचित परिवर्तन किसी भी क्षेत्र में गति एवं स्वाभाविक तौर पर स्थिरता अर्थात स्थिति प्राप्त करवाते रहता है। लकीर के फकीर बनकर कृषि-व्यवसाय के संबंध में यदि चलते रहे तो कृषि संबंधी उसका अनुमान गलत साबित होता है और कृषक वर्ग बेहाल हो जाता है। इसके लिए कृषि की ओर व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाने की हिम्मत करनी चाहिए। इस व्यावसायिक दृष्टिकोण को प्रयोगशील वृत्ति का साथ देने वाले संशोधक हैं, बी.आर. बारवाले।

१९३०-४८ के दौरान हैद्राबाद के निजाम के हुकूमत के आधीन रहने वाले मराठवाड़ा प्रदेश का समावेश सन १९४८ में महाराष्ट्र राज्य में हो गया। स्वतंत्रता का सपन पूर्ण हो जाने पर बारवाले ने अपनी पारिवारिक कृषि पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू किया और साथ ही अपने कृषि का उत्पाद अधिक होना चाहिए इस दृष्टिकोण से भी उन्होंने कृषि की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया। कृषि में जर्मिनेशन किये गए बीजों का प्रत्यक्ष उत्पादन शुरू हो गया। बारिश पानी आदि कम होने पर भी उनके खेत में खेती के लिए पानी की सुविधा उपलब्ध रहती थी, इन सभी बातों का फायदा उठाते हुए तैयार किए गए बीजों से अपने खेत में अधिक उत्पादन के साथ-साथ फसलों का स्तर भी काफी अच्छा होता है यह बात अन्य कृषकों के मन में स्थापित कर दी। कृषि का व्यवस्थापन आधुनिक पद्धति से विकसित होकर वहीं से बीजों के व्यापार का केन्द्र शुरु हो गया।

गेहूं एवं मकई इन फसलों के संबंध में दुनिया भर में क्या नयी खोजें की जा रही हैं, इस ओर बारवाले का ध्यान बना रहा। मराठवाड़ा के पिछड़े हुए इलाके में खेती एवं संशोधन करने वाले बद्रीनारायण बारवाले की ख्याति इंडियन ऍग्रीकल्चरल रिसर्च इन्स्टिट्युट तक पहुंच चुकी थी। १९६२ में मकई के साथ साथ जवार के संकरित बीजों का भारत में निर्माण हो गया। इससे पहले बारवाले ने अपने स्वयं के खेत में भिंडी की प्रजाति विकसित की थी। (OKRA SEEDS)

इस कालावधि के दौरान विकसनशील देशों में हरितक्रांति की बस शुरूआत ही हुई थी। स्वातंत्र्योत्तर काल में अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा था। ऐसी परिस्थिति में जालना में १९६४ में ‘महाराष्ट्र हायब्रिड सीडस्‌ कंपनी’ की स्थापना की, जो आज ‘महिको’ नाम से प्रसिद्ध है। किसी भी संस्था के लिए भी करना मुश्किल प्रतीत हो ऐसी सेवा अकेले बारवाले ने खेतों-खेतों में जाकर उपलब्ध करवायी। किसानों को सामूहिक प्रयोग करके दिखलाये, किसानों के पास साक्षरता का प्रमाण कम होने के कारण तैयार बीजों के पैदावार के लिए लिखित सूचना पढ़ना किसानों के लिए संभव नही था। इसके उपाय हेतु उन्होंने कुछ स्थानों पर छोटे परदे वाले प्रोजेक्ट का उपयोग करके बीजों की जानकारी दी। उस वक्त भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार नही आया था और ना ही कृषि संबंधित कोई योजना ही बनाई गई थी। अभी कुछ वर्षों में ही देश के सौ से अधिक अनाजों के जनुकीय बीज निर्माण करने वाली यह कंपनी होगी स्वाभाविक है कि बारवाले को इस बात की समझ थी।

बारवाले के प्रयोगों एवं कोशिशों के कारण जालना बीजों के क्रय-विक्रय का एक बड़ा केन्द्र बन गया है। जालना पीपल्स-को ऑपरेटिव बैंक (खेती के लिए कर्ज़ देने वाली बैंक) के वे अध्यक्ष भी बन गए। महिको सीड कंपनी के संशोधन विभाग को उन्होंने और भी अधिक कार्यक्षम बना दिया। शुद्ध बीजों का दर्जा ध्यान में रखकर उनमें सुधार के प्रयोग हुए। रुई के सुधार में लाए गए बीज, एवं बीटी कॉटन बाजार में लाए जाने के कारण बारवाले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए। तीन सौ से अधिक संकरित बीजों की निर्मिति करनेवाली महिको कंपनी विश्व की महत्त्वपूर्ण कंपनी के रूप में अपनी पहचान रखती है।

नॉरमन, बोरलॉग, स्वामीनाथन के समान जगप्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञों ने बारवाले के कार्य की प्रशंसा की है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण माना जाने वाला, अनाज के क्षेत्र में प्रतिष्ठित माना जानेवाला ‘वर्ल्ड फुड प्राईज़’ पुरस्कार बारवाले को प्राप्त हुआ है।

बद्रीनारायण बारवाले द्वारा कृषिक्षेत्र को दिए हुए योगदान से, उनके कार्य से प्रेरणा लेने वाले भी महाराष्ट्र में अनेकों है।

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