‘तेहरीक’ एवं ‘आयएस’ का ताज़िकिस्तान में प्रवेश

काबुल – सोविएट रशिया से निकले हुए मध्य एशियाई देश ताज़िकिस्तान में ‘तेहरीक-ए-तालिबान’ और ‘आयएस’ इन दोनों आतंकी संगठनों ने प्रवेश किया है। पिछले चार दिनों की घटनाओं से यह गंभीर बात पता चली है। अमेरिका द्वारा गैरज़िम्मेदारी से अफगानिस्तान से सेना को वापस बुलाने के कारण मध्यएशियाई देशों की सुरक्षा के लिए चुनौती निर्माण होगी। अपने पडोसी देशों में आतंकी संगठनाएं घुसपैठ करेंगे, ऐसी चिंता रशिया ने कुछ महीनों पूर्व व्यक्त की थी। ताज़िकिस्तान में इन घटनाओं की वजह से रशिया की चिंता सच साबित होती दिखाई दे रही है।

पिछले वर्ष तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी हुकूमत प्रस्थापित करने के बाद भिन्न-भिन्न प्रांतों के लिए अपने कमांडर गवर्नर के तौर पर नियुक्त किए थे। अफगानिस्तान की उत्तर की ओर वाले बडाखशान प्रांत के गवर्नर के तौर पर ताज़िक वंश का कमांडर ‘महदी अरसलान’ को नियुक्त किया था। पिछले कुछ महीनों में अरसलान ने ताज़िक वंश के 250 आतंकियों को इकठ्ठा करके ‘तेहरिक-ए-तालिबान ताजिकिस्तान’ (टीटीटी) की घोषणा की। 

पिछले वर्ष अरसलान के गुट के आतंकियों ने ताज़िकिस्तान में घुसकर सेना पर हमले करने की धमकी दी थी। तत्पश्चात ताज़िकिस्तान के माध्यमों में अरसलान के बारे में जानकारी प्रसिद्ध हुई थी। ताज़िकिस्तान के ‘जमात अन्सरुल्ला’ नाकम आतंकी संगठना के साथ महदी अरसलान के संबंध हैं। ताज़िक सरकार ने अन्सरुल्ला पर की हुई कार्यवाई के बाद ‘जमात अन्सरुल्ला’ के आतंकियों ने अरसलान के साथ हाथ मिलाया। इसलिए अरसलान के ‘टीटीटी’ में भी अन्सरुल्ला के आतंकियों का समावेश होने का दावा किया जाता है।

ताज़िकिस्तान की सुरक्षा को अरसलान के आतंकियों के अलावा ‘आयएस’ से भी खतरा होने की बात सामने आई है। पिछल कुछ दिनों से ताज़िकिस्तान और उज़बेकिस्तान की सीमा पर तैनात सेना पर रॉकेट हमले किए जा रहे हैं। ‘आयएस-खोरासन’ नामक आतंकी संगठना ने इन हमलों की जिम्मेदारी स्वीकारी थी। इसके पश्चात आयएस ताज़िक भाषा में कट्टरपंथियों को सरकार के खिलाफ चेतावनी देने की जानकारी सामने आ रही है। इसके लिए आयएस ने ‘अल-आज़िम ताज़िकी’ सोशल मीडिया चैनल शुरु किया है। आयएस को ताज़िकिस्तान के कट्टरपंथियों का साथ मिलने के दावे किए जा रहे हैं।

तेहरीक और आयएस नामक आतंकी संगठनाओं का ताज़िकिस्तान में प्रवेश मध्य एशियाई देशों की सुरक्षा के लिए खतरनाक होने की चिंता व्यक्त की जा रही है। इससे पहले अमेरिका एवं संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत के कारण पडोसी देशों की सुरक्षा खतरे में पड रही है ऐसा इशारा दिया था। तथा, तालिबान की हुकूत के कारण अफगानिस्तान के अन्य आतंकी संगठनाओं का विस्तार होगा और इससे पडोसी देशों को बहुत बडा खतरा होगा, इसका भी अहसास इन खबरों द्वारा कराया गया था।

तो अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता बन रही थी तब रशिया अफगानिस्तान की घटनाओं की ओर बहुत मुस्तैदी से देखा जा रहा है, ऐसा बार-बार स्पष्ट हुआ था। मध्य एशियाई देशों की तरह अफगानिस्तान में कट्टरपंथ एवं अस्थिरता रशिया की सीमा में प्रवेश करेगी, ऐसा भय रशिया को महसूस हो रहा है। इसके लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान से जल्दबाज़ी में सेना वापस बुलाकर इस देश में अराजकता फैलने दी, ऐसा संदेह रशियन माध्यमों ने व्यक्त किया था।

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