समरकंद की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री का चीन को सख्त संदेश

नई दिल्ली – उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित ‘एससीओ’ की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्राध्यक्ष में चर्चा होगी, ऐसे दावे किए जा रहे थे। लेकिन, वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग का औपचारिक स्तर पर हाथ मिलाना भी नहीं हुआ। यह भारत ने चीन के प्रति सख्त विदेश नीति का हिस्सा है क्योंकि, समरकंद की इस बैठक में भारत के प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान चर्चा करने के चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने उत्सुकता दर्शाने के संकेत मिले थे। इसी के लिए लद्दाख के एलएससी पर पिछले दो सालों से बना तनाव कम करने के लिए चीन ने कदम उठाए थे। लेकिन, समरकंद में भारत ने चीन को सख्त संदेश दिया।

समरकंदलद्दाख के एलएसी से चीन उचित समय पर पीछे नहीं हटा तो साल १९६२ के युद्ध के बाद भारत का विश्वास जीतने के लिए चीन ने जो कुछ किया था वह सबकुछ खोने का खतरा है, यह चेतावनी विदेशमंत्री जयशंकर ने दी थी। उनके यह शब्द समरकंद की ‘एससीओ’ बैठक में सच्चाई में उतरते दिखाई दिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग की द्विपक्षीय चर्चा तो दूर की बात है, उन्होंने औपचारिक स्तर पर हस्तांदोलन भी नहीं किया। चीन के प्रति भारत ने अपनाई हुई कड़ी नीति का यह नतीजा है, ऐसा विश्लेषकों का कहना है। चीन ने लद्दाख के एलएसी से सेना पीछे हटाने के बाद भी भारत की नीति में बदलाव नहीं हुआ हैं, इस पर विश्लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

रशिया-भारत-चीन यानी ‘आरआईसी’ देश साथ आने के बाद विकास की बड़ी संभावना सामने आएगी, ऐसा बयान भारत में नियुक्त रशिया के राजदूत ने किया था। अपने इन सहयोगी देशों को करीब लाने की कोशिश भी रशिया ने की। लेकिन, बार-बार विश्वासघात करनेवाले

पर भारत इसके आगे विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं, यह स्पष्ट संदेश प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एससीओ’ की बैठक में दिया। हमेशा भारत की आलोचना करने वाले चीन के माध्यमों ने भारत ने अपनाई इस सख्त नीति को अनदेखा किया दिख रहा है।

चीन को भारत के साथ व्यापारी और राजनीतिक सहयोग की उम्मीद है लेकिन, इसके लिए भारत के हित को नुकसान पहुँचाने की नीति छोड़ने के लिए चीन तैयार नहीं है। चीन ने एक ही दिन पहले ‘लश्कर-ए-तोयबा’ के आतंकी साजिद मीर पर हो रही सुरक्षा परिषद की कार्रवाई रुकवाई थी। इसके लिए चीन ने तकनीकी कारण बताया था। ऐसी उकसानेवाली हरकतों के कारण भारत को सबक सिखाने से चीन को यकिनन संतोष होगा, लेकिन, चीन के व्यापक हितों पर इससे बुरा असर पडने लगा है। विश्व में पांचवें क्रमांक की अर्थव्यवस्था बने भारत के साथ सभी स्तरों पर सहयोग स्थापित करने के लिए विश्वभर के प्रमुख देशों के बीच स्पर्धा शुरू हुई है। ऐसी स्थिति में चीन के लिए भारत का असहयोग आनेवाले दिनों में महंगा साबित हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.