रशिया की मध्यस्थता से आर्मेनिया-अज़रबैजान ने किया शांति समझौता – रशियन शांति सैनिकों की तैनाती भी होगी

मास्को/येरेवान/बाकु – बीते ४४ दिनों से जारी आर्मेनिया-अज़रबैजान युद्ध आखिरकार थमने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन की मध्यस्थता से आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच शांति समझौता होने की जानकारी साझा की गई है। इस समझौते पर तीनों देशों ने हस्ताक्षर किए हैं तथा आर्मेनिया और अज़रबैजान के राष्ट्रप्रमुख ने इस समझौते की खबर की पुष्टि की है। इस समझौते के समाचार के बाद अज़रबैजान में जल्लोष शुरू हुआ है और आर्मेनिया में सरकार के विरोध में प्रदर्शन शुरू हुए हैं।

Armenia-Azerbaijan-peace-dealमध्य एशिया के आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच सितंबर महीने के अन्त में युद्ध शुरू हुआ था। नागोर्नो-कैराबख प्रांत के नियंत्रण के मुद्दे पर शुरू हुए इस संघर्ष में तुर्की ने अज़रबैजान के पक्ष में प्रवेश किया था। रशिया ने आर्मेनिया का समर्थन किया है, फिर भी इस युद्ध में सहायता प्रदान करने से रशियन नेतृत्व ने इन्कार किया था। तुर्की का पूरी तरह से समर्थन प्राप्त करनेवाले अज़रबैजान ने इस युद्ध में अच्छी सफलता प्राप्त की थी। अगले कुछ दिनों में यह देश नागोर्नो-कॅराबख पर कब्जा करेगा, ऐसे दावें भी किए जा रहे थे। इस युद्ध को रोकने के लिए युद्धविराम करने के उद्देश्‍य से पहले की गईं तीन कोशिशें भी नाकाम हुई थीं।

Armenia-Azerbaijan-peace-dealइस पृष्ठभूमि पर, रशियन की मध्यस्थता से हुआ शांति समझौता ध्यान आकर्षित करता है। इस समझौते के अनुसार, सोमवार तक अज़रबैजान ने जीता हुआ क्षेत्र उसी के कब्जे में रहेगा। इसके अलावा कुछ अहम क्षेत्र आर्मेनिया से अज़रबैजान को दिया जा रहा है। इसके साथ ही आर्मेनिया और नागोर्नो-कैराबख को जोड़नेवाले क्षेत्र में रशियन शांति सैनिकों का दल तैनात किया जाएगा। इस क्षेत्र में रशिया के करीबन दो हज़ार सैनिक पाँच वर्ष के लिए तैनात रहेंगे। इस युद्ध में अज़रबैजान ने कब्जा किए क्षेत्र के अलावा, शेष नागोर्नो-कैराबख प्रांत की स्थिति ‘जैसे थे’ रखी जाएगी।

रशियन मध्यस्थता से हुआ समझौता और रशियन सेना की नागोर्नो-कैराबख में हुई तैनाती, इनकी वजह से आर्मेनिया-अज़रबैजान युद्ध का लाभ उठाकर अपना प्रभाव बढ़ाने के तुर्की के इरादे फिलहाल मिट्टी में मिलते दिखाई दे रहे हैं। साथ ही, रशिया ने आर्मेनिया और अज़रबैजान इन दोनों देशों पर अपनी पकड़ मज़बूत करने में सफलता प्राप्त की है, यह दावा विश्‍लेषक कर रहे हैं।

Armenia-Azerbaijan-peace-dealवर्ष १९९१ में सोवियत युनियन से आज़ाद हुए आर्मेनिया और अज़रबैजान में वर्ष १९८० के दशक से लगातार ‘नागोर्नो-कैराबख’ पर कब्ज़ा करने के मुद्दे पर संघर्ष की घटनाएँ हो रहीं थीं। नागोर्नो-कैराबख में आर्मेनियन्स की संख्या अधिक होने के बावजूद जागतिक स्तर पर यह क्षेत्र अज़रबैजान के हिस्से के तौर पर पहचाना जाता है। इस प्रांत की स्वायत्त सरकार ने अज़रबैजान का नियंत्रण स्वीकारने से इन्कार किया है और आर्मेनिया ने इसका पूरी तरह से समर्थन किया था। अज़रबैजान एक इस्लामी देश है और वहाँ पर तुर्कीवंशियों की संख्या काफ़ी ज्यादा है। करीबन एक करोड़ से भी अधिक जनसंख्या का यह देश ईंधनों से भरा हुआ क्षेत्र समझा जाता है। रशिया से युरोप एवं तुर्की में जानेवाली कुछ ईंधन पाईपलाईन्स भी अज़रबैजान से गुज़रतीं हैं और इसी कारण यह क्षेत्र सामरिक नज़रिये से अहम समझा जाता है।

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