चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ को होने वाला विरोध बढने लगा है

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वॉशिंग्टन/बीजिंग – चीन की राजधानी में अफ़्रीकी देशों के साथ दो दिनों की परिषद शुरू हो रही है, ऐसे में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) योजना को होने वाला प्रखर विरोध शिखर तक पहुंचा है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और अभ्यासगुटों ने ओबीओआर को बढ़ता विरोध और उसके कर्जे के फंदे का मुद्दा आक्रामक तरीके से आगे लाया है और चीन को उसके समर्थन के लिए कोशिश करनी पड़ रही है। इसी पृष्ठभूमि पर चीन का पडौसी देश म्यानमार ने ओबीओआर के हिस्से वाले अरबों डॉलर्स की योजना के बारे में चर्चा करके उसमें से चीन के निवेश के हिस्से को कम करने के लिए मजबूर किया है।

शी जिनपिंग ने सन २०१३ में ओबीओआर की घोषणा की थी। यह योजना मतलब चीन की बढती वर्चस्ववादी महत्वाकांक्षा का प्रतिक है, ऐसा माना जा रहा था। एक लाख करोड़ डॉलर्स से अधिक निवेश और दुनिया के विविध हिस्सों के ५० से अधिक देशों के सहभाग वाली यह योजना वैश्विक स्तर पर चीन का प्रभाव प्रस्थापित करने वाला निर्णायक मोड़ साबित होगा, ऐसी भविष्यवाणी भी की गई थी।

लेकिन पाँच सालों बाद जिनपिंग की महत्वाकांक्षा वाले ओबीओआर का भवितव्य संकट में आने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। अमरिका, यूरोप और आशिया की मीडिया, राजनीतिक नेता और गुट साथ ही अभ्यास समूहों ने चीन की महत्वाकांक्षा के पीछे की भूमिका और कार्यान्वयन पर ही सवाल खड़े किए हैं। अमरिका के ‘सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट’ इस अभ्यास समूह ने एक रिपोर्ट में ओबीओआर का हिस्से वाले लगभग आठ देशों को चीन के कर्जे का शिकंजा कसने वाला निवेश बर्दाश्त नहीं होगा, ऐसी चेतावनी दी है।

इसमें पाकिस्तान, मालदीव, लाऔस, जिबौती, मंगोलिया, ताजीकिस्तान, किरगिझिस्तान और मॉन्टेंगरो का का समावेश है। लाओस जैसे देश में ओबीओआर के अंतर्गत चल रही रेल परियोजना की कीमत साढ़े छः अरब डॉलर्स से अधिक है। यह आंकड़ा लाओस के जीडीपी के कुल ५० प्रतिशत है। अफ्रीका के जिबौती में ओबीओआर योजना शुरू होने के बाद दो सालों में उस देश के कर्जे का आंकड़ा जीडीपी के ८५ प्रतिशत तक जा पहुंचा है।

ओबीओआर योजना में प्रमुख सहभागी देश पाकिस्तान में इसके पहले ही चीन के निवेश को लेकर विरोध तीव्र हुआ है। पाकिस्तान की ऊर्जा परियोजना में चीन ने किए निवेश पर लगभग ३४ प्रतिशत लाभ मिलने वाला है, ऐसी जानकारी एक अमरिकी दैनिक में प्रसिद्ध हुई थी। पिछले महीने में ही सत्ता पर आई नई सरकार के लिए यह और ‘चाइना-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर’ इस ओबीओआर अंतर्गत परियोजना से जुडी बातें मुसीबत हो सकती हैं।

ऐसे में मलेशिया, थाईलैंड, म्यानमार जैसे देशों की तरफ से ओबीओआर को लगे झटके चीन की सत्ताधारी राजवट के लिए नई चुनौती साबित हो सकती है। मलेशिया के प्रधानमंत्री ने २० अरब डॉलर्स की परियोजनाओं को सीधे सीधे रद्द करके चीन को झटका दिया है। उसके बाद थाईलैंड ने ओबीओआर अंतर्गत शुरू परियोजनाओं के लिये नई शर्तें लगाई हैं।

म्यानमार ने ओबीओआर का हिस्से वाले बंदरगाह परियोजनाओं की व्याप्ति कम करने के लिए चर्चा शुरू की है और सात अरब डॉलर्स की योजना के बजाय एक अरब डॉलर्स के निवेश को ही मान्यता देने के संकेत दिये हैं। भारत का पडौसी देश श्रीलंका का हंबंटोटा का उदहारण चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ इस महत्वाकांक्षी नीति का काला पक्ष के तौर पर अधोरेखित करता है। इसमें एक अरब डॉलर्स से अधिक कर्जे के बदले में चीन ने यह बंदरगाह और इसके पास की १५ हजार एकर जमीन ९९ सालों के लिए कब्जे में ली है।

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