पंतप्रधान मोदी और राष्ट्राध्यक्ष मॅक्रॉन की चर्चा में द्विपक्षीय सहयोग की व्याप्ति बढ़ाने पर भारत और फ्रान्स का एकमत

पॅरिस – जागतिक हवामानबदलाव के विरोध में सहयोग, रक्षा, परमाणुऊर्जा सागरी क्षेत्र से जुड़ा अर्थकारण और दोनों देशों की जनता में संवाद बढ़ाने का निश्चय भारत और फ्रान्स ने किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष इमॅन्युअल मॅक्रॉन के बीच संपन्न हुई द्विपक्षीय चर्चा के बाद यह जानकारी साझा की गयी। युक्रेन का युद्ध तुरन्त रोकने पर भी दोनों नेताओं का एकमत हुआ है। लेकिन अमरीका और अन्य युरोपीय फ़्र्शों की तरह फ्रान्स ने भारत-रशिया संबंधों के मुद्दे पर भारत को ‘नसीहत’ देना टाला। यह बात दोनों देशों के बीच के सामरिक सहयोग को अधोरेखांकित करनेवाली साबित होती है।

अपने युरोप दौरे का अंतिम चरण होनेवाले फ्रान्स की प्रधानमंत्री मोदी ने भेंट की। इस भेंट के दौरान दोनों देशों के सामरिक साझेदारी का महत्त्व अधोरेखांकित करनेवाले कुछ मुद्दे स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और परमाणु ईंधन सप्लायर गुट की भारत की सदस्यता को फ्रान्स ने समर्थन दिया है। साथ ही, जागतिक हवामानबदलाव के विरोध में भारत के साथ अपनी साझेदारी पहले से भी ज़्यादा मज़बूत बनने की बात फ्रान्स ने कही है। उसी के साथ, परमाणुऊर्जा, रक्षा, अंतरिक्ष तथा सागरी क्षेत्र से जुड़े अर्थकारण के मोरचे पर भारत के साथ बन रहे अपने सहयोग को फ्रान्स विशेष महत्त्व दे रहा है, ऐसा दोनों देशों के संयुक्त निवेदन से स्पष्ट हुआ है।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा को प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्राध्यक्ष मॅक्रॉन के संयुक्त निवेदन में दिया गया महत्त्व ग़ौर फ़रमा रहा है। चीन की वर्चस्ववादी  नीतियों के कारण इस क्षेत्र में फ्रान्स के हितसंबंध ख़तरे में पड़ गये हैं। ऐसी परिस्थिति में ऑस्ट्रेलिया ने पनडुब्बियों का कॉन्ट्रैक्ट फ्रान्स से छीनकर अमरीका को दिया होने के कारण, फ्रान्स के इन देशों के साथ भी संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का बहुत ही अहम देश होनेवाले भारत के साथ बन रहे सहयोग को फ्रान्स अधिक अहमियत देता हुआ दिख रहा है। फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष मक्रॉन की प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई द्विपक्षीय चर्चा में इसका प्रतिबिंब उभरा है।

युक्रेन का युद्ध रोकने के लिए फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष ने रशिया के राष्ट्राध्यक्ष पुतिन के साथ कई बार चर्चा की थी। रशिया के संदर्भ में अमरीका और नाटो ने अपनाई नीतियों से फ्रान्स सहमत नहीं है। फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने इस मुद्दे पर अमरीका और नाटो की आलोचना की थी। ऐसी परिस्थिति में रशिया का मित्रदेश होनेवाले भारत के साथ फ्रान्स का सहयोग अहम साबित हो रहा है। द्विपक्षीय चर्चा में, युक्रेन को लेकर फ्रान्स की भूमिका भारत मे कुछ ख़ास अलग नहीं है, यह बात भी सामने आयी है। इससे यही दिख रहा है कि दोनों देशों का सामरिक सहयोग अधिक ही दृढ़ बना है। युक्रेन का युद्ध जल्द से जल्द ख़त्म हों, ऐसा आवाहन प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्राध्यक्ष मॅक्रॉन के संयुक्त निवेदन में किया गया है।

संवेदनशील तथा महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने की भारत की योजना से फ्रान्स सहयोग करेगा, ऐसी घोषणा भी प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे में की गयी है। साथ ही, अफ़गानिस्तान का अन्य देशों में आतंक फ़ैलाने के लिए इस्तेमाल करना बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, यह भी इस संयुक्त निवेदन में जताया गया है। इसी बीच, प्रधानमंत्री मोदी का यह युरोप दौरा बहुत सफल साबित हुआ है, ऐसा रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने कहा है। इससे भारत के युरोपीय देशों के साथ संबंध अधिक ही दृढ़ होंगे, ऐसा भरोसा रक्षामंत्री ने ज़ाहिर किया। युरोपीय देशों के हितसंबंध चीन की वर्चस्ववादी नीतियों के कारण ख़तरे में पड़ गये हैं, ऐसे में  भारत का युरोपीय देशों के साथ यह सहयोग सामरिक तथा आर्थिक दृष्टि से निर्णायक साबित हो सकता है। ख़ासकर हाल में युरोपीय महासंघ का नेतृत्त्व कर रहे फ्रान्स के साथ भारत का सामरिक सहयोग भारत के लिए युरोप के द्वार खुले करनेवाला है, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.