रशिया-यूक्रेन युद्ध से निर्माण हो रही अनाज की किल्लत के कारण यूरोप में शरणार्थियों के नए झुंड़ घुसेंगे – ‘फ्रंटेक्स’ की चेतावनी

वार्सा – रशिया-यूक्रेन युद्ध की वजह से अनाज़ एवं धान के निर्यात पर बुरा असर पड़ा है और अफ्रीका एवं खाड़ी के कई देशों में अनाज़ की किल्लत महसूस होने लगी है। इस किल्लत की तीव्रता बढ़ रही है और इसके कारण अगले दिनों में यूरोप में फिर से शरणार्थियों के नए झुंड़ प्रवेश करेंगे, ऐसी चेतावनी ‘फ्रंटेक्स’ एजेन्सी की प्रमुख ऐजा कल्नाजा ने दी। पिछले महीने अफ्रीका से स्पेन जा रहे शरणार्थियों की संख्या काफी बढ़ने की जानकारी सामने आयी थी।

रशिया और यूक्रेन का ज़िक्र विश्व के ‘ब्रेडबास्केट’ के तौर पर किया जाता है, गेहूं, धान, मक्कई, सूरजमुखी के उत्पादन में यह देश सबसे आगे हैं। वैश्विक स्तर पर हो रहा धान में से कुल १४ प्रतिशत निर्यात रशिया और यूक्रेन से होता है। रशिया-यूक्रेन युद्ध की वजह से दोनों देशों के कृषि उत्पादन पर बड़ा असर हुआ है। रशिया पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से इस देश से हो रहा अनाज़ के निर्यात पर असर पडा है।

यूक्रेन पर किए गए हमलों की वजह से इस देश के खेतों का भारी नुकसान हुआ है। इसी बीच यूक्रेन के कुछ हिस्से पर रशिया का कब्ज़ा होने से वहां से होनेवाले अनाज़ का निर्यात भी रोक दिया गया है। रशिया ने यूक्रेन के बंदरगाहों पर कब्ज़ा करने से वहां से हो रहा लगभग नौ करोड़ टन अनाज़ का निर्यात रुका हुआ है, ऐसा दावा यूक्रेन सरकार ने किया है।

अफ्रीका एवं खाड़ी के अधिकांश देश रशिया और यूक्रेन से हो रहा अनाज़ के निर्यात पर निर्भर हैं। लेकिन, यह स्रोत बंद होने से कई देशों में अनाज़ की गंभीर किल्लत निर्माण हुई है। इस वजह से अनाज़ की कीमतों में भी भारी उछाल आया है और भुखमरी एवं अन्य संकटों की वजह से नागरिकों ने भारी मात्रा में स्थानांतरण शुरू किया है। अफ्रीका और खाड़ी देशों के नागरिकों के झुंड़ फिर से यूरोपिय देशों की ओर जा रहे हैं, ऐसे संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

पिछले दशक में सीरिया समेत खाड़ी में हुए अन्य संघर्ष की वजह से लाखों शरणार्थियों के झुंड़ यूरोप में घूसे थे। इस वजह से यूरोप को राजनीतिक, समाजिक एवं आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा था। फिलहाल रशिया-यूक्रेन युद्ध की वजह से ५० लाख से अधिक यूक्रेन के नागरिकों ने शराणर्थियों के तौर पर यूरोपिय देशों में आश्रय लिया है। युद्ध लंबा चला तो यह संख्या बढ़ने के आसार नहीं है। इसमें अफ्रिका और खाड़ी देशों के झुंड़ों की संख्या बढ़ने पर यूरोपिय देशों के सामने चुनौतियाँ अधिक तीव्र होंगी, ऐसा ड़र व्यक्त किया जा रहा है।

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