चीन की वायुसेना की क्षमता प्रायोगिक स्तर की – भारत के पूर्व वायुसेनाप्रमुख बी.एस.धनोआ

नई दिल्ली – लद्दाख के हवाई क्षेत्र में भारत और चीन के बीच संघर्ष हो सकता है। लेकिन, चीन की वायुसेना की क्षमता अभी किसी भी युद्ध में साबित नहीं हुई है। चीन की यह क्षमता सिर्फ प्रायोगिक स्तर की ही है, ऐसा बयान भारत के पूर्व वायुसेना प्रमुख बी.एस.धनोआ ने किया है। दूसरे शब्दों में, प्रत्यक्ष संघर्ष होने पर चीन की वायुसेना भारत के सामने टिक नहीं पाएगी, यही बात पूर्व वायुसेना प्रमुख बयान कर रहे हैं। इससे पहले कुछ विश्‍लेषकों ने भी इस बात पर ध्यान आकर्षित किया था और इनमें कुछ पश्‍चिमी ज़िम्मेदार विश्‍लेषकों का भी समावेश है।

india-chinaलद्दाख की ‘एलएसी’ पर भारतीय वायुसेना की स्थिति काफी मज़बूत है। ऐसे में भारतीय वायुसेना ने इस क्षेत्र में अपनी क्षमता काफी तेज़ की है और वहां की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर भारतीय वायुसेना वर्चस्व बनाए हुए है, यह ऐलान भारतीय वायुसेना प्रमुख आर.के.एस.भदौरिया ने किया था। इसके आगे जाकर पूर्व वायुसेना प्रमुख धनोआ ने यह बयान किया है कि, लद्दाख के हवाई क्षेत्र में चीन के सामने सामान एवं आवश्‍यक सामग्री की आपूर्ति करने की समस्या खड़ी हो सकती है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि चीन की वायुसेना को प्रत्यक्ष युद्ध का अनुभव नहीं है, इस बात का सख्त अहसास भी पूर्व वायुसेना प्रमुख ने कराया।

कई दशक पहले हुए कोरियन युद्ध में चीन की वायुसेना ने हमले किए थे। इसके बाद चीन की वायुसेना को युद्ध का अनुभव नहीं है। इस वजह से चीन की वायुसेना की क्षमता अभी प्रायोगिक स्तर पर ही है। इसकी कसौटी एवं परख नहीं हुई है, यह बात भी धनोआ ने स्पष्ट की। हाथी के खाने के और दिखाने के दांत अलग होते हैं, ऐसा बयान करके चीन का सामर्थ्य यानी खोखली बातें होने की फटकार पूर्व वायुसेना प्रमुख ने लगाई है।

लद्दाख की एलएसी पर चीन सिर्फ युद्ध का बवाल करके दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इससे अधिक चीन अलग कुछ करने की संभावना ना होने का अनुमान पूर्व वायुसेना प्रमुख ने व्यक्त किया है। कागज़ पर रखे जा रहे बल-आबल का विचार करें तो चीन की वायुसेना की ताकत भारत से अधिक दिखती है। लेकिन, असल युद्ध में स्थिति काफी अलग होती है और ऐसे समय पर कई बातें प्रभाव बनाती हैं, ऐसा कहकर पूर्व वायुसेना प्रमुख ने इस मोर्चे पर भारत बेहतर साबित होगा, यह विश्‍वास व्यक्त किया। इसके साथ ही लद्दाख की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के करीब मौजूद चीन के हवाई अड्डे एक-दूसरे से काफी दूरी पर हैं। इनमें से कुछ अड्डों के बीच पूरे चारसौ किलोमीटर की दूरी है। लेकिन, भारत के हवाई अड्डे एक-दूसरे से मात्रा १०० किलोमीटर की दूरी पर हैं, इस बात की याद भी धनोआ ने दिलाई।

चीन की लष्करी नीति कुछ दशकों पहले तय हुई है और इस पर सोवियत रशिया की सामरिक नीति का प्रभाव है। इसमें रॉकेट्स और तोपों के हमलों पर अधिक जोर दिया जाता है, इस ओर भी धनोआ ने ध्यान आकर्षित किया। इसी बीच, चीन ने इससे पहले अपने हवाई सामर्थ्य को लेकर किए दावे पूर्व वायुसेना प्रमुख धनोआ ने ठुकराए थे।

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