कल्पक वैज्ञानिक संकल्पनाओं के जनक आर्किमिडिज़ (ख्रिस्तपूर्व २८७ से २१२)

प्रबल रोमन सेना पर प्राप्त विजय का एक मनुष्य ने किया हुआ यह जीता-जागता वर्णन है। ईसापूर्व समय के जेता माने जानेवाले रोमन सैनिकों को शहर के सीमा पर ही रोकनेवाले प्रतिभासंपन्न संशोधक का नाम था ‘आर्किमिडिज़’।
Archimedes - आर्किमिडिज़

अप्रगत काल में केवल अपने सूझबूझ के बलबूते पर अपना विशेष स्थान निर्माण करनेवाले आर्किमिडिज का जन्म इटली के सिसिली नामक प्रांत में हुआ था। खगोलशास्त्रज्ञ कहलाये जानेवाले आर्किमिडिज के पिता ने उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए इजिप्त के अलेक्झांड्रीया नामक शहर में भेजा था।

गणित, भौतिकशास्त्र, अभियांत्रिकी आदि विषयों की चाह रखनेवाले आर्किमिडिज ने दर्शनशास्त्र की उपाधि प्राप्त की।
शिक्षा समाप्त करने के पश्‍चात् सिसिली में लौटकर आर्किमिडिज ने अल्पावधि में ही सिसिली में एक विद्वान संशोधक के रुप में ख्याति प्राप्त की। उस काल में गणित विषय शुद्ध एवं तात्विक स्वरूप का होने के साथ साथ उसका उपयोग केवल विश्‍वरचना एवं वैज्ञानिक अध्ययन हेतु किया जाता था। आर्किमिडिज के पहले होनेवाले युक्लिड, पायथागोरस और थेल्स जैसे गणितज्ञों ने मानो उस प्रकार का एक नियम ही बना रखा था। लेकिन आर्किमिडिज को उनकी यह भूमिका नहीं जँची और उन्होंने रोजमर्रा के व्यवहार में उसका उपयोग किस प्रकार से किया जा सकता है इस लक्ष्य को सामने रखकर अपने संशोधन की शुरुआत की।

अपने संशोधन के बल पर ‘मुझे खड़ा रहने के लिए स्थान दो, मैं पूरी दुनिया को हिला दूँगा’ ऐसी घोषणा आर्किमिडिज ने की थी। आरंभिक समय में हास्यापद लगनेवाली इस घोषणा की सिरॅकस के तत्कालीन हिरो राजा ने परीक्षा लेने का निश्‍चय किया। उन्होंने आर्किमिडिज को निमंत्रण भेजकर भारी भरकम वस्तु उठाकर दिखलाने की आज्ञा दी। आर्किमिडिज ने राजा की इस चुनौती का स्वीकार कर सिरॅकस बंदरगाह में माल एवं प्रवासियों से भरे एक जहाज का चुनाव किया। उन्होंने एक लंबे रस्से एवं पड़ावों के समूहों की अपने सिद्धांतानुसार रचना करके उस जहाज को समुद्र में से उठाकर दूसरे स्थान पर कर दिया। आर्किमिडिज द्वारा उपयोग में लायी गई पद्धति आगे चलकर विज्ञान जगत में ‘मेकॅनिकल पुली सिस्टीम’ इस नाम से रुढ़ हो गई।

यह एवं इस प्रकार की अनेक घटनाओं ने गणित एवं विज्ञान इन दो विषयों को व्यावहारिक तौर पर एक साथ लाने के लिए आर्किमिडिज अथक संशोधन करते रहे। अपने संशोधन का लाभ दूसरों को भी हो इसके लिए वे विभिन्न प्रयोग एवं उनमें से सिद्ध किए गए तत्त्वों के बारे में लिखते भी रहे। लिखते समय आकृतियों का किया गया उपयोग इन सब के आधार पर आर्किमिडिज के द्वारा किए गए संशोधन का अंदाजा लगाना आसान होगा।

अपने सिद्धांत का अथवा ज्ञान का उपयोग सभी क्षेत्रों के लोग कर सके इसके लिए आर्किमिडिज प्रयत्नशील रहे। अपने शहर पर रोमन सेना के द्वारा किये गये हमले को उन्होंने ‘सूर्यकिरण’ एवं ‘आईना’ इन दो चीजों की सहायता से लौटा देने में यश प्राप्त किया था। शहर की चहारदीवारी पर बिठाये गए आईनों पर पड़नेवाली सूर्यकिरणें समुद्र में होनेवाली जहाजों पर परिवर्तित होती थी। इन परिवर्तित किरणों की उष्णता इतनी प्रचंड थीं कि इससे जहाजें जल जाती थीं। कुछ समय पश्‍चात् तो सिरॅकस के समुद्र में आनेवाली किसी भी जहाज में आईना अथवा रस्सी दिखाई देते ही वे जहाजें जिस स्थिति में हुआ करती थीं, बिलकुल वैसे ही और वहीं से वापस लौट जाने की घटनाएँ भी घटित हुई हैं। इतना भय विदेशी शासकों को हो चुका था। उस काल में इस युक्ति को ‘आर्किमिडिज हिट रे’ अथवा ‘आर्किमिडिज डेथ रे’ इस नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई थी।

जहाज के प्रयोग से प्रभावित हिरो राजा ने आर्किमिडिज पर एक विशेष कार्य की जिम्मेदारी सौंपी। उस काल में हिरो राजा ने एक प्रसिद्ध सुनार से अपने लिए एक विशेष सोने का मुकुट बनवाया था। लेकिन वह मुकुट सौ फीसदी सोने का ही है अथवा उसमें कुछ मिलावट भी की गयी है, यह बात राजा जानना चाहते थे। आर्किमिडिज को इस कार्य की विशेष जिम्मेदारी सौंपते हुए राजा ने एक शर्त भी रखी थी और वह यह थी कि इस मुकुट की कही पर भी जरासी भी तोड़-फोड़ नहीं होनी चाहिए। आनेवाले कुछ दिनों तक आर्किमिडिज केवल इसी प्रश्‍न के झमेले में फँस गए थे।

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