१९८८ के नरसंहार मामले में ईरान के नियुक्त राष्ट्राध्यक्ष इब्राहिम रईसी की जाँच करें – संयुक्त राष्ट्र संगठन के अफसरों की माँग

जिनेवा/तेहरान – ईरान में वर्ष १९८८ में किए गए नरसंहार के मामले में ईरान के मौजूदा राष्ट्राध्यक्ष इब्राहिम रईसी की जाँच करें, ऐसी माँग संयुक्त राष्ट्र संगठन के वरिष्ठ अधिकारी ने की है। संयुक्त राष्ट्र संगठन के मानव अधिकार आयोग में ‘इन्वेस्टिगेटर’ के तौर पर कार्यरत जावेद रहमान ने यह माँग करने के साथ ही इस नरसंहार में मारे गए लोगों की कबरों को नष्ट करने की कोशिश जारी होने का आरोप भी लगाया है। रहमान की इस माँग की वजह से ईरान की हुकूमत मुश्‍किलों से घिरे जाने की संभावना जताई जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र संगठन में ‘इन्वेस्टिगेटर’ के तौर पर कार्यरत जावेद रहमान ने एक वृत्तसंस्था को दिए साक्षात्कार के दौरान रईसी की जाँच करने की माँग रखी। ‘बीते कई वर्षों से हम और हमारे दफ्तर ने साक्षात्कार एवं अन्य माध्यमों से सबूत इकठ्ठे किए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघठन का मानव अधिकार आयोग या अन्य कोई भी यंत्रणा निष्पक्ष जाँच करती है तो हम यह सभी सबूत उन्हें देने के लिए तैयार हैं। वर्ष १९८८ में हुए नरसंहार के मामले में अलग अलग लोगों की भूमिकाओं की जाँच करने की ज़रूरत है। रईसी नियुक्त राष्ट्राध्यक्ष होते हुए ही यह प्रक्रिया होना आवश्‍यक है। हमें विश्‍वास है इस जाँच के लिए यही समय उचित है’, ऐसा रहमान ने कहा है। 

इस तरह की जाँच ईरान के ही हित में रहेगी, यह दावा संयुक्त राष्ट्र संगठन के अफसर ने दिया। नियुक्त राष्ट्राध्यक्ष रईसी की इस नरसंहार में अहम भूमिका थी, यह दावा भी उन्होंने किया। वर्ष १९८८ में ईरान के उस समय के सर्वोच्च धर्मगुरू अयातुल्लाह खोमेनी के निर्देश से हज़ारों लोगों की हत्या की गई थी। उस समय रईसी राजधानी तेहरान में बतौर न्यायाधीश कार्यरत थे। उन्होंने कई लोगों की हत्या के आदेश जारी किए थे, यह समझा जा रहा है।

रहमान ने रईसी की जाँच करने की माँग करने के साथ ही इस नरसंहार में मारे गए लोगों की कबरें नष्ट करने की कोशिश जारी होने का आरोप भी लगाया है। अपने दफ्तर ने इस मुद्दे पर ईरान से संपर्क करने की बात भी उन्होंने कही। इस मुद्दे पर हमारी मुहिम आगे भी जारी रहेगी, ऐसा रहमान ने इस साक्षात्कार के दौरान कहा है।

ईरान के नियुक्त राष्ट्राध्यक्ष रईसी ने वर्ष १९८८ की घटनाओं का समर्थन किया है और न्यायाधीश के तौर पर जनता की सुरक्षा के लिए किए गए निर्णयों पर तहेदिल से धन्यवाद करना होगा, ऐसा बयान किया है। अलग अलग मानव अधिकार संगठनों की रपटों की अनुसार वर्ष १९८८ के नरसंहार में पांच हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे।

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