नये नक़्शे को लेकर नेपाल की के. पी. ओली सरकार को ज़ोरदार झटका – विरोधकों ने ही विधेयक को रोका

नई दिल्ली,  (वृत्तसंस्था) – नेपाल की के. पी. शर्मा ओली सरकार ने, लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा प्रदेश अपने क्षेत्र में दिखानेवाले विवादग्रस्त नक़्शे को स्थगिती दी है। भारत ने इस नक़्शे पर सख़्त ऐतराज़ जताया था और भारत की अखंडितता और सार्वभूमता का नेपाल सम्मान करें, ऐसा अनुरोधपूर्वक कहा था। नेपाल के मंत्रिमंडल ने इस नक़्शे को मंज़ुरी दी थी। लेकिन इसके लिए संसद में संविधानदुरुस्ती विधेयक प्रस्तुत करने से पहले ही नेपाल सरकार को उसे ख़ारिज करना पड़ा। नेपाल की विरोधी पार्टी ने और कुछ अन्य सियासी पार्टियों ने नेपाल सरकार को जल्दबाज़ी ना करने की सलाह दी। नेपाल ने इस नक़्शे के संदर्भ में विधेयक को दी स्थगिति, यह भारत की राजनैतिक विजय मानी जा रही है।

लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा ये भाग अपने नक़्शे में दिखाते हुए, दो हफ़्ते पहले नेपाल ने नया नक़्शा जारी किया था। भारत ने लिपुलेख तक कैलास मानसरोवर लिंक रोड शुरू करने पर नेपाल ने उसपर ऐतराज़ जताया था। भारत ने बनाया रास्ता अपने क्षेत्र से होकर जा रहा होने का दावा किया था। साथ ही, नेपाल ने उसके बाद भारतीय सीमा रेखा को समांतर रस्ता बनाने की शुरुआत की थी। लेकिन नेपाल को विवाद खड़ा करने के लिए चीन द्वारा उक़साया जा रहा है, ऐसा विश्लेषकों ने कहा था।

लेकिन अब नेपाल सरकार ने नर्म रवैया अपनाया दिख रहा है। नेपाल सरकार को यह विधेयक मंज़ूर करने के लिए दोनों सभागृह में दो-तिहाई मतों की आवश्यकता है। के. पी. ओली की सरकार के पास हालाँकि वरिष्ठ सभागृह में दो-तिहाई मत हैं, फिर भी कनिष्ठ सभागृह में अन्य पार्टियों के सहयोग की आवश्यकता है। नेपाल की प्रमुख विरोधी पार्टी होनेवाली काँग्रेस ने ओली सरकार को सब्र करने की सलाह सर्वदलीय बैठक में दी। साथ ही, इसके लिए समय की भी माँग की है।

नेपाल के भारत से सटे तराई क्षेत्र की मधेसी पार्टियों ने, इसके साथ उनकी माँगें भी पूरी करने की शर्त रख दी। क्योंकि नेपाल सरकार उनकी माँगों को नज़रअन्दाज़ करती है ऐसा इन पार्टियों का और मधेशी संगठनों का आरोप है। उसीके साथ, अन्य भी कुछ पार्टियों ने, इस मामले में वे हालाँकि सरकार के साथ हैं, लेकिन माँगें मंज़ूर होने तक वे साथ नहीं देंगी, ऐसा स्पष्ट किया है।

इसके अलावा, नेपाली जनता भी भारत के साथ भाईचारे के संबंध चाहती है। इस कारण, नेपाल सरकार ने नक़्शाविषयक यह विधेयक संसद की कामकाज़ सूचि में से पीछे ले लिया। इसके पीछे भारत की कूटनीति प्रभावी साबित हुई, ऐसा कहा जाता है। इस कारण, इसकी ओर बतौर ‘भारत की राजनैतिक विजय’ देखा जा रहा है।

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