ली द फॉरेस्ट (१८७३-१९६१)

392_deforest1हलदी, बासमती और नीम ये पदार्थ भारत वर्ष में कई वर्षों से परंपरानुसार उपयोग में लाए जाते हैं। परंतु पिछले कुछ दशकों से ये पदार्थ भारत के ‘बुद्धिसंपदा हक’ (पेटंट) हैं, यह सिद्ध करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े और इन पदार्थों पर भारत का अधिकार है, इस बात को पूरे विश्‍व में करने के लिए अनेक संघर्ष करने पड़े। पिछले दो शतकों में अनेक वैज्ञानिकों ने असंख्य खोजें की। किंतु खोज करने के बाद उसका श्रेय सभी संशोधकों को नहीं मिल सका।

ऐसे युग में सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में २०० से अधिक पेटंटस के नाम पर ली द फॉरेस्ट इस संशोधक को ‘फादर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एज’ के नाम से पहचाना जाता है। आज हम घर में रहते हुए जो भी रेडियो के कार्यक्रम सहजता से सुन सकत हैं उसका श्रेय ली द फॉरेस्ट इस संशोधक को जाता है। इतना ही नहीं तो ‘चलचित्र (चित्रपट) को आवाज देने की’ विवादग्रस्त खोज भी फॉरेस्ट ने ही की है, ऐसा लोगों का मानना है।

अनेक अपयशी उद्योग, कोर्ट कचहरी के चक्कर, पेटंट्स प्राप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न और अस्थिर वैवाहिक जीवन इन सारी बातों से ली द फॉरेस्ट का जीवन घिरा हुआ था। हमारा बेटा धर्मोपदेशक बनेगा ऐसी अपेक्षा करने वाले दम्पति के घर ली का जन्म हुआ। ली का शालेय जीवन भी अत्यंत कष्टप्रद था। धर्मोपदेशक बनाने के लिए उनके पिता ने उन्हें विशेष शाला में प्रवेश दिलाया। किंतु ली फॉरेस्ट को वह शाला जरा भी अच्छी नहीं लगी।

कुछ विचित्र वस्तु तैयार करके उन्हें बेचकर उसके द्वारा ली ने प्रसिद्धि प्राप्त करने का प्रयत्न किया। किंतु उनके ये सारे प्रयत्न असफल  रहे। फिर  अपनी यांत्रिक विषयी रुचि के लिए ली ने १८९३ में प्रसिद्ध विज्ञान संस्था के रूप में नामवंत ‘शेफील्ड साइंटिफिक स्कूल’ इस महाविद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया। प्राप्त शिष्यवृत्ति व छोटे मोठे उद्योग धंधे द्वारा प्राप्त रकम से ली फॉरेस्ट ने अपना महाविद्यालयीन शिक्षण पूर्ण किमत!

phonofilm_350pxमहाविद्यालयीन शिक्षण के दरम्यान हर्टझ् व मार्कोनी इनके रेडियो लहरें (ध्वनि) के संशोधन से ली बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने ‘हर्टझ् लहरीयों’ पर अभ्यास करके अपना पहला संशोधनात्मक प्रंबध प्रसिद्ध किया और येल विद्यापीठ से डॉक्टरेट की डीग्री प्राप्त की। ‘रेडिओ’ के संदर्भ में उस युग में लिखा गया पहला प्रंबध माना गया।

उसके पश्‍चात् ली ने कुछ समय ‘वेस्टर्न इलेक्ट्रीक’ जैसी प्रायव्हेट कंपनी में काम किया। सन् १९०२ में ली फॉरेस्ट ने अब्राहम व्हाईट नाम के निवेशक के सलाह नुसार अपने पहली कंपनी की स्थापना की। ‘डी फॉरेस्ट वायरलेस टेलीग्राफ कंपनी’ इस नाम से शुरु की गई कंपनी को उस युग के अमेरिका के युद्ध विभाग और नौदल जैसे प्रतिष्ठित ग्राहक भी मिल गए। किंतु व्यावसायिक दृष्टिकोण के अभाव और गलत तरह के लोगों पर विश्‍वास रखने के कारण सिर्फ  तीन वर्षो में ही यह कंपनी बंद करनी पड़ी।

अपने पहले व्यावसायिक असफलता से न डगमगाते हुए ली ने अपना ध्यान अपने संशोधन पर ही केंद्रित किया। उस युग में जॉन फ्लेमिंग नाम के संशोधक ने दो इलेक्ट्रोड की सहायता से रेडियो की ध्वनी लहरी स्वीकारनेवाली एक ट्यूब। तैयार की थी किंतु वह अधिक यशस्वी नहीं हुई थी। कुछ तो नया करना है इस उद्देश्य को लेकर ली ने इस ट्यूब पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया।

कितना भी सूक्ष्म रेडियों ध्वनि स्वीकृत करके वे अच्छी तरह सुनाई दे इसके लिए ली ने स्वयं विकसित किया हुआ एक नवीन भाग (ग्रीड) फ्लेमिंग की ट्यूब को जोड़कर सभी कमियों को सुधारकर ‘‘आडियन’’ नाम की ट्यूब विश्‍व के सामने प्रस्तुत की। सन् १९०७  के जनवरी माह में आई यह नई ट्यूब केवल रेडियो तंत्रज्ञान ही नहीं बल्कि संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में नवीन क्रांति लेकर आई।

प्रथम ‘एटी अँड टी’ और बाद में ‘वेस्टर्न इलेक्ट्रिक’ जैसी दूरसंचार क्षेत्र के बहुराष्ट्रीय प्रायव्हेट कंपनी ने ‘ली’द्वारा ऑडियन हक्क की खरीदी की। ‘एटी अ‍ॅण्ड टी’ ने दूरध्वनी यंत्रणा में सुधार करने के लिए और ‘वेस्टर्न इलेक्ट्रीक’ ने नभोवाणी प्रक्षेपण के लिए इस ट्यूब का उपयोग किया। उसी दरम्यान ली की उद्योगी वृत्ति पुन: तेजी से बढ़ गई। फिर  से कुछ विनाशकों की सहायता से उन्होंने ‘डी फॉरेस्ट रेडियो टेलीफोन कंपनी’ की स्थापना की। पुन: पिछली बार की तरह यह कंपनी भी तीन से चार वर्ष में डूब गई।

उसके पश्‍चात् आर्थिक परिस्थिति खराब होने की वजह से ली ने फिर  से एक प्रायव्हेट कंपनी में काम करने की शुरुआत की। किंतु खाली समय में संशोधन का कार्य शुरु ही था। सन १९१४ यह वर्ष ली फॉरेस्ट के लिए बड़ा ही महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। ऑडियन ट्यूब के ‘रिझनरेटिव्ह’ गुणधर्म के संदर्भ में ली और एडविन आर्मस्ट्राँग इन दोनों संशोधकों के बीच वाद-विवाद होने लगा। यह प्रकरण कोर्ट में पहुँच गया। लगभग दो दशकों के संघर्ष के बाद सन १९३४ में न्यायालय ने ली की तरफ से फैसला सुनाया।

अपना संशोधन सामान्य जनता तक पहुँचाने के लिए ली ने अधिक परिश्रम किए। विभिन्न सभागृह में जाकर स्वयं के आविष्कारों संबंधी जानकारी देनेवाले कार्यक्रम प्रस्तुत किए और रेडियो स्टेशन बनाने के लिए अनेक प्रयत्न किए। रेडियो के प्राप्त आकर्षित ली ने अपनी उम्र के अंतिम ३० वर्ष हॉलिवूड (फिल्म जगत) की माया नगरी में रहकर बिताए।

चित्रपट के अभिनेता एवं अभिनेत्रियों से भरे एवं प्रभावित हॉलिवूड में भी ली फॉरेस्ट ने अपने संशोधन का कार्य शुरु रखा। किंतु उसमें रेडियो विषयक संशोधन का समावेश नहीं था। ली ने उस समय नवीन आने वाले चित्रपट उद्योग के प्राप्ति अपना ध्यान केंद्रित किया। उस युग के मूक चित्रपट को बोलने वाला तंत्र ली ने ही पहली बार विकसित किया।

‘फोनोफिल्म’ यह उस युग के मूक फिल्मों को आवाज देने वाले यंत्र का संशोधन हॉलिवूड के बड़े-बड़े स्टुडिओ में अस्वीकार कर दिया गया। किंतु इस संशोधन की आवश्यकता को बाद में हॉलिवूड को स्वीकार ही पड़ा।

सन १९५९ में अ‍ॅकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स के द्वारा ली फॉरेस्ट को विशेष ऑस्कर पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। उनके ऑस्कर पुरस्कार पर यह वाक्य अंकित किया गया था- ‘अ‍ॅकेडमी ऑनररी अ‍ॅवॉर्ड टू ली फॉरेस्ट फॉर हिज पायोनियर इन्व्हेंशन विच ब्रॉट साऊंड टू द मोशन पिक्चर’।

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