डोकलाम की वजह से भारत की विश्वासार्हता बढ़ी चीन के भूतपूर्व भारतीय राजदूतों का दावा

बीजिंग: ‘अपने छोटे पडौसी देशों के इलाकों पर अपना ही अधिकार है, ऐसा दावा करके एकतरफा कार्रवाई करने की चीन को जैसे आदत ही पड़ी है। लेकिन डोकलाम में भारत और भूटान की ओर से चीन को कड़वा जवाब मिला है। इसके परिणाम होने ही वाले हैं। इस वजह से भारत की विश्वासार्हता बढ़ गई है और चीन के छोटे पडौसी देशों को नया विश्वास मिल रहा है’, ऐसा चीन के भूतपूर्व भारतीय राजदूत अशोक कांथा ने कहा है।

विश्वासार्हता

डोकलाम विवाद सुलझ गया है और भारत ने उपस्थित किया हुआ मुद्दा मान्य करके चीन ने इस समस्या पर समझौता किया है, यह बात स्पष्ट हुई है। लेकिन चीन इस मामले में खुद की जीत हुई हुई है ऐसा भ्रम निर्माण कर रहा है। चीन के विदेश मंत्री वैंग ई ने ‘डोकलाम’ मुद्दे को लेकर भारत ने उचित सबक लिया होगा, ऐसा दावा ठोका है। आने वाले समय में भारत फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेगा, ऐसा विश्वास भी चीन के विदेश मंत्री ने व्यक्त किया है। चीन की ओर से किए जा रहे यह दावे, अपनी जनता को बहकने के लिए हैं, भारत खुद डोकलाम से पिछे हटा है यह चीनी जनता को समझाने के लिए चीन का विदेश मंत्रालय और सरकारी माध्यम काम कर रहे हैं। उसी दौरान बेझिझक अपनी राय देने के लिए मशहूर विश्वासार्ह भारतीय विश्लेषक डोकलाम में भारत को राजनितिक सफलता मिलने का सबुत दे रहे हैं।

चीन के भूतपूर्व भारतीय राजदूत और ‘इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइनीज स्टडीज’ के (आयसीएस) के संचालक अशोक कांथा ने भी ‘डोकलाम’ मामले में भारत ने अपनाई भूमिका की तारीफ की है। ‘चीन की ओर से डाले जा रहे दबाव के आगे न झुकने का समझदारी भरा निर्णय लिया है। पिछले कुछ सालों से चीन अपने छोटे पडौसी देशों की जमीन पर अधिकार बताकर एकतरफा कार्रवाई करता आ रहा है। चीन को यह आदत पड़ी थी। लेकिन डोकलाम में वैसा हुआ नहीं। भारत और भूटान ने डोकलाम मामले में कड़ी भूमिका लेकर चीन को बहुत बड़ा झटका दिया है’, ऐसा अशोक कांथा ने कहा है।

‘भारत की इस भूमिका के परिणाम दिखने ही वाले हैं। भारत ने इस समस्या पर चीन का दबाव लेकर अपने कदम पीछे लिए होते, तो छोटे पडौसी देशों को चीन के खिलाफ खड़ा रहना मुश्किल बन जाता। लेकिन भारत ने कठोर भूमिका अपनाकर भारत की विश्वासार्हता बढाई है’, ऐसा दावा कांथा ने किया है। चाहे कुछ भी हो जाए, चीन डोकलाम मामले में युद्ध भड़कने नहीं देगा, यह भारत का अंदाजा सच साबित हुआ है, इसकी कांथा ने तारीफ की है।

उसी दौरान ब्रिक्स परिषद के पहले चीन को यह विवाद सुलझाना ही पड़ा। क्योंकि डोकलाम का विवाद लेकर ब्रिक्स परिषद सफल करके दिखाना चीन के लिए नामुमकिन था, इस बात की तरफ भी कांथा ने ध्यान खींच लिया है। इसीलिए भारत डोकलाम में पीछे हटे बिना चर्चा न करने की भूमिका लेनेवाले चीन को अपनी भूमिका बदलकर इस समस्या पर चर्चा करनी पड़ी, इस बात को भी कांथा ने स्पष्ट किया है।

दौरान, अन्य विश्लेषकों ने भी डोकलाम विवाद में भारत की जीत होने का निरिक्षण दर्ज किया है। इसमें पश्चिमी विश्लेषकों का भी समावेश है। इस वजह से अस्वस्थ चीन ‘डोकलाम’ विवाद में अपनी जीत होने का संकेत देने की कोशिश कर रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने डोकलाम समस्या सुलझने की घोषणा करते समय किए हुए विधान इसी बात की पुष्टि करते हैं। साथ ही चीन के विदेश मंत्री वैंग ई भी भारत ने डोकलाम विवाद से सबक लिया होगा, ऐसी अपेक्षा व्यक्त करके चीन की जनता को बहकानेकी बहुत कोशिश कर रहे हैं।

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