चीन का बढ़ता वर्चस्व ‘नाटो’ देशों की सुरक्षा के लिए चुनौती – नाटोप्रमुख जेन्स स्टॉल्टनबर्ग

ब्रुसेल्स – चीन का बढ़ता वर्चस्व नाटो सदस्य देशों की सुरक्षा के लिए सर्वाधिक अहम चुनौती साबित हो रही है, ऐसी चेतावनी नाटो के प्रमुख जेन्स स्टॉल्टनबर्ग ने दी। मंगलवार को ‘नाटो २०३०’ नामक रिपोर्ट प्रकाशित हो रही है और इस पृष्ठभूमि पर नाटो प्रमुख ने दी हुई यह चेतावनी ग़ौरतलब साबित हो रही है। नाटो द्वारा प्रकाशित होनेवाली नयी रिपोर्ट में भी चीन से होनेवाले ख़तरे का उल्लेख होकर, उसे रोकने के लिए आक्रामक भूमिका आवश्यक होने की सिफ़ारिश की गयी है, ऐसा सूत्रों द्वारा बताया गया। नाटो में नियुक्त अमरीका की दूत के बेली हचिसन ने भी, चीन व्यापार, रक्षा तथा अंतरिक्षक्षेत्र में तेज़ी से गतिविधियाँ कर रहा है यह बताकर, चीन के ख़तरे का एहसास करा दिया है।

china-natoचीन द्वारा नये एवं प्रगत शस्त्रास्त्रों में भारी निवेश किया जा रहा है। आर्क्टिक से लेकर अफ़्रिका तक यह देश धीरे धीरे नाटो सदस्य देशों की सीमाओं के नज़दीक अपना अस्तित्व दिखा रहा है। चीन द्वारा अपनी बुनियादी सुविधाओं में तथा संवेदनशील क्षेत्र में भारी निवेश कर रहा है। यह सब करते समय चीन मानवाधिकारों का आदर नहीं करता और नाटो सदस्य देशों के मूल्यों पर भी विश्‍वास नहीं रखता, इसका एहसास रखना चाहिए। चीन द्वारा लगातार अन्य देशों को धमकाने की कोशिश भी की जाती है। हमें चाहिए कि नाटो के सदस्य सहयोगी देशों का तथा समविचारी देशों का एक मोरचा बनाकर हम चीन के इस ख़तरे का एकतापूर्वक मुक़ाबला करें’, ऐसी चेतावनी नाटो के प्रमुख जेन्स स्टॉल्टनबर्ग ने दी।

स्टॉल्टनबर्ग के साथ ही अमरीका के नाटो में नियुक्त दूत हचिसन ने भी चीन से होनेवाले ख़तरे की ओर ग़ौर फ़रमाया। युद्धपोत, पनडुब्बियाँ तथा अन्य प्रगत यंत्रणाओं की सहायता से चीन अपना वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, यह बात अमरिकी दूत ने जताई। उसी समय, चीन के लष्कर द्वारा अंतरिक्षक्षेत्र में बड़ीं गतिविधियाँ चालू होने का दावा भी हचिसन ने किया। आर्थिक क्षेत्र में चीन द्वारा शिकारी नीतियों का इस्तेमाल किया जा रहा होकर, उसके बलबूते पर चीन ने युरोप में बड़े पैमाने पर बंदरगाह तथा अन्य मालमत्ताएँ कब्ज़े में कर लीं हुईं दिखाई दे रहीं हैं, इसकी याद भी अमरिकी दूत ने इस समय दिलाई। सागरी क्षेत्र में भी चीन अन्य देशों की मुक्त आवाजाही को रोकने की कोशिश कर रहा है, ऐसा आरोप अमरीका के दूत हचिसन ने किया।

china-natoव्यापार युद्ध तथा कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर अमरीका ने चीनविरोधी राजनयिक संघर्ष की धार अधिक तेज़ की है। उसके लिए जागतिक स्तर पर व्यापक मोरचा बनाने के लिए गतिविधियाँ शुरू कीं हैं। कुछ महीने पहले अमरीका के वरिष्ठ अधिकारी ने चीन को रोकने के लिए ‘इंडो-पैसिफिक’ में नाटो की तरह ही लष्करी मोरचा बनाने के संकेत भी दिए थे। नाटो सदस्य देश होनेवाले युरोपीय देश भी चीन के खिलाफ़ आक्रामक रवैया अपनाएँ इसके लिए अमरीका लगातार कोशिशें कर रही है। नाटो के नेतृत्व ने भी इसकी दखल लेना शुरू किया होकर, पिछले दो महीनों में नाटो के प्रमुख जेन्स स्टॉल्टनबर्ग द्वारा लगातार चीन से होनेवाले ख़तरों को लेकर चेतावनियाँ दीं ज रहीं हैं।

सितम्बर महीने में, ‘सेंटर फॉर युरोपियन पॉलिसी ऍनॅलिसिस’ इस अभ्यासगुट ने आयोजित किये एक कार्यक्रम में स्टॉल्टनबर्ग ने यह जताया था कि दुनिया में रक्षा पर सर्वाधिक खर्च करनेवाले देशों में चीन दूसरें नंबर पर है, इसलिए नाटो को चीन के संदर्भ में ठोंस दृष्टिकोण रखना चाहिए। वहीं, अक्तूबर महीने में युरोप में हुई एक बैठक में, चीन के उदय के कारण जागतिक सत्ताप्रतिस्पर्धा का संतुलन बदल रहा होकर, नाटो को उसकी दखल लेना ज़रूरी है, ऐसा नाटो प्रमुख ने बताया था।

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