चीन के साथ तनाव को देखते हुए सेना को ४० हजार करोड़ रुपयों की शस्त्र खरीदारी का अधिकार

नई दिल्ली, दि.१३: देश के सामने खड़ी रक्षा समस्याओं का विचार करते हुए सरकार ने सेना को ४० हजार करोड़ रुपयों तक शस्त्र और युद्ध सामग्री खरीदारी का अधिकार दिया है।अचानक संघर्ष की स्थिति निर्माण होने पर उससे निपटने के लिए सेना को यह विशेष अधिकार दिया गया  है।डोकलाम में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ करने के बाद चीन भारत को युद्ध की धमकियाँ दे रहा है।उसी समय आतंकवादियों को प्रोत्साहित करने की नीति को पाकिस्तान ने अभी भी जारी रखा है।इस पृष्ठभूमि पर केंद्र सरकार ने सेना को दिया हुआ यह अधिकार बहुत ही अहम् माना जा रहा है।

युद्ध सामग्री

चीन की सरकारी समाचार एजेंसीज ने भारत को सन १९६२ के युद्ध में मिली हार की फिर से याद दिलाई है।चीन की तरफ से भारत को दिया जाने वाला सन्देश बिलकुल स्पष्ट है।डोकलाम से सेना को वापस लिया जाए या सन १९६२ की तरह बुरी हार से निपटने के लिए तैयार हो जाएँ, इस तरह की धमकियाँ चीन की सरकारी समाचार एजेंसीज और अख़बार दे रहे हैं।गुरुवार को भी इस तरह की ख़बरों को बड़ी हेडलाइनों में छापा गया है।इससे चीन युद्ध की चुनौती देने की कोशिश कर रहा है, इस बात को ध्यान में रखते हुए भारत को भी अपनी रक्षासामग्री में बढ़ोत्तरी करने का निर्णय लेना आवश्यक हो गया है।

इस पृष्ठभूमि पर केंद्र सरकार ने तक़रीबन ४० हजार करोड़ रूपए मूल्य तक के शस्त्र, गोला बारूद और यंत्रों की सीधे खरीदारी करने की सेना को अनुमति दी है।इसके लिए मंत्रिमंडल की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।इससे पहले भी सेना को इस तरह के अधिकार दिए गए थे।लेकिन इसकी मर्यादा १२ हजार करोड़ थी।इस मर्यादा को भी उरी में सेना पर हुए आतंकवादी हमले के बाद बढाया गया था।उरी के इस आतंकवादी हमले के बाद किए गए लेखा परीक्षा के बाद, अचानक निर्माण होने वाली संघर्ष स्थितिसे निपटने के लिए,इस प्रकार के प्रावधान की आवश्यकता महसूस हुई थी।

निर्णय के अनुसार १० प्रकार की शस्त्र प्रणालियाँ और ४६ प्रकार के शस्त्रास्त्र खरीदारी के व्यवहार करने का अधिकार सेना को मिला है।इसके अलावा और २० प्रकार के शस्त्रास्त्र और ६ प्रकार की सुरंग खरीदारी के अधिकार सेना को देने का प्रस्ताव है, ऐसी जानकारी वरिष्ठ अधिकारी ने दी है। इस कारण सेना की रक्षा सिद्धता और अकस्मात्संघर्ष से निपटने की क्षमता बढ़ने का विश्वास व्यक्त किया जा रहा है।

इससे पहले भारतीय सेना प्रमुख ने आलोचना की थी, कि रक्षा सिद्धता के मामले में भारत पीछे है।इस मामले में हो रही देरी पर पहले के सेना प्रमुख ने नाराजगी जताकर राजनीतिक नेतृत्व की आलोचना की थी।

अगर देश पर अचानक हमला हुआ तो उससे निपटने के लिए सेना के पास उतना गोला बारूद नहीं है, इस समस्या की तीव्रता को तत्कालीन सेना प्रमुख ने सामने लाया था।लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए, सेना अपनी जान की बाज़ी लगाकर देश की रक्षा करेगी, यह बात भी सेना प्रमुख ने कही थी।

सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए जरुरी युद्ध सामग्री की और रक्षाविषयक यंत्रों की खरीदारी के व्यवहार में हो रही देरी,अक्षम्य होने की आलोचना सभी रक्षा दल के प्रमुखों की ओर से की जार ही थी।महालेखापाल रिपोर्ट में इस बात पर जमकर आलोचना की जा रही थीऔर इस वजह से देश की रक्षा सिद्धता पर विपरीत परिणाम होने की बातें भी कही जा रही थी।फिर भी इस लाल फीता का व्यवहार न सुधरने की नाराजगी, भारत के सामरिक विश्लेषकों ने व्यक्त की थी।

भारत को रक्षा के विषय में सहायता करने के लिए उत्सुक देशों की ओर से भी,इस देरी पर नाराजगी व्यक्त की जा रही थी।

इस पृष्ठभूमि पर केंद्र सरकार ने सेना को दिया हुआ यह अधिकार बहुत ही अहम् माना जा रहा है। इससे भारत को युद्ध की धमकी देने वाले चीन को भी करारा जवाब मिल गया है।

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