समर्थ इतिहास-२०

समर्थ इतिहास-२०

अगस्त्य ऋषि के जीवन में उनके द्वारा दंडकारण्य में किया गया निवास यह एक विलक्षण खंड है। उस काल में दंडकारण्य में सुसंस्कृत एवं नीतिमान समाज का बड़े पैमाने पर बसेरा था। वाकाटक, मधुमंत, शैवल ऐसे तीन सुसंस्कृत राज्य दंडकारण्य में थे। कृष्णा नदी के किनारे तक यह दंडकारण्य फैला हुआ था और इसका कुछ […]

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समर्थ इतिहास-१७

समर्थ इतिहास-१७

महर्षि अगस्त्य चिकित्साशास्त्र में भी अत्यंत निपुण थे और अनुसंधान करने की उनकी प्रवृत्ति के कारण अनेक अनुसंधान कर वे चिकित्साशास्त्र को प्रगतिपथ पर ले गये। ऋग्वेद में इसका पहला संदर्भ प्राप्त होता हैे (ऋग्वेद १/११८/८)। ‘खेल` नामक सम्राट ने इनके चरणों में अपनी निष्ठा अर्पण की और इन्हें अपने धर्मगुरु का स्थान दिया। आगे […]

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समर्थ इतिहास -१५

समर्थ इतिहास -१५

तामिळहम्‌‍ (तमिलनाडू + केरल) इस प्रदेश में अगस्त्य ऋषि ने प्रवेश किया, उस समय सूर्यपूजन तो था ही; परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि यहाँ पर लिंगपूजन यह ‘भगवान शिव` का पूजन था। भगवान शिव ही सबसे श्रेष्ठ आराध्य देवता थे और अभिषेक, फूल चढ़ाना, नैवेद्य अर्पण करना और आरती करना ये उपचार शिवपूजन […]

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समर्थ इतिहास-१४

समर्थ इतिहास-१४

अगस्त्य ऋषि ने दण्डकारण्य में रहनेवाले उनके आश्रमों की ज़िम्मेदारी सुतीक्ष्ण नामक प्रमुख शिष्य को सौंपी और ‘नक्कीरर` नामक राजकीय अधिकारी के साथ उन्होंने विंध्याचल पर चढ़ना शुरू किया; परन्तु संपूर्ण विंध्याचल घने जंगलों से व्याप्त था। सूरज की छोटी सी किरन तक को अंदर आने से प्रतिबंध करनेवाले प्रचंड बड़े और अकराल-विकराल पेड़ और […]

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समर्थ इतिहास-१३

समर्थ इतिहास-१३

अगस्त्य ऋषि के दौर से पहले यानी अतिप्राचीन कालखंड में ऑस्ट्रेलिया से दक्षिण अफ़्रीका तक एक अतिप्रचंड भूभाग अस्तित्व में था और यह भूभाग आज के दक्षिण भारत के साथ एकसंघ था। इस भूभाग को पाश्चात्य अनुसंधानकर्ताओं ने ‘लेमूरीया` यह नाम दिया है। इस पूरे भूभाग में द्रमिल संस्कृति के मानवसमूह वास्तव्य कर रहे थे। […]

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समर्थ इतिहास-११ (अखंड भारत के आद्य जनक – महर्षि अगस्ति – अगस्त्य)

समर्थ इतिहास-११ (अखंड भारत के आद्य जनक – महर्षि अगस्ति – अगस्त्य)

महर्षि अगस्ति से मेरी पहली मुलाकात हुई, रामचरित में और वहाँ निर्माण हुआ स्नेह आगे चलकर बढ़ता ही गया। चारों वेद और पुराण तथा दक्षिण भारत की लोककथाएँ, प्रथाएँ एवं लोकगीत, साथ ही महर्षि अगस्ति के मंदिर इनके एकत्रित तेज से, अनंत की प्राप्ति करनेवाले इन ऋषिश्रेष्ठ की एक प्रतिमा बनती गयी। इन्होंने क्या कुछ […]

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समर्थ इतिहास-१२

समर्थ इतिहास-१२

‘अगस्ति’ यह इनका मूल नाम नहीं है। इनका मूल नाम ‘मान्य मांदार्य’ यह है। ‘अगं स्त्यायति इति’, पर्वत (विंध्य) के विस्तार को प्रतिबंध करनेवाला, यह ‘अगस्ति’ नाम की उपपत्ति (स्पष्टीकरण) है (अगस्ति – अगस्त्य)। ‘अगस्त्य’ यह गौरवशाली नाम उन्हें, उनके द्वारा उनके जीवन में किये गये एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य के कारण प्राप्त हुआ। तमिल […]

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