ऑस्ट्रेलिया में जारी विवाद की पृष्ठभूमि पर, अमरिकी संसद में गुगल और फेसबुक के विरोध में विधेयक आएगा

वॉशिंग्टन – फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया के विरोध में किए इकतरफा प्रतिबंध के फैसले के विरोध में आन्तर्राष्ट्रीय स्तर से कड़ी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अमरिका और ब्रिटेन समेत युरोपिय देशों ने फेसबुक के साथ अन्य ‘बिग टेक’ कंपनियों पर कार्रवाई करने की जोरदार गतिविधियां शुरू की होकर, अमेरिका के संसद में जल्द ही संदर्भ में विधेयक दाखिल होने के संकेत मिले हैं। अमरीका की संसदीय समिति की प्रमुख होने वाले केन बक ने इसकी जानकारी दी।

‘स्थानीय स्तर पर अखबार अमरीकी जनता को जानकारी की आपूर्ति करने में बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन बिग टेक कंपनियों के बढ़ते खतरे के कारण कई अमेरिकी अखबार कुचले गए हैं। गुगल और फेसबुक ने वृत्तपत्र उद्योग ही नेस्तनाबूद कर दिया है । अमेरिकी संसद में आने वाला नया विधेयक, अस्तित्व बनाए रखने के लिए जान तोड़ कोशिश करनेवाले छोटे और स्थानीय अखबारों के लिए नवसंजीवनी देने वाला साबित होगा’, ऐसा अमरिका की ‘हाऊस ज्युडिशिअरी कमिटी’ के प्रमुख और रिपब्लिकन पार्टी के सांसद केन बक ने बताया।

अमरिकी संसद ने पिछले कुछ सालों में आईटी क्षेत्र की ‘बिग टेक’ के रूप में जानी जाने वालीं अग्रसर कंपनियों के विरोध में आक्रामक भूमिका अपनाई है। इन कंपनियों द्वारा एकाधिकारशाही और वर्चस्ववादी नीति अपनाकर प्रतिस्पर्धियों को खत्म कर दिया जाता है, ऐसा आरोप अमेरिकी संसद में तैयार की रिपोर्ट में किया गया था। अमरीका की संसद ने गुगल, फेसबुक, ऍप्पल, ऍमेझॉन, ट्विटर और मायक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के प्रमुख अधिकारियों की सुनवाई भी ली थीं।

‘बिग टेक’ कंपनियों को विभिन्न मामलों में अरबों डॉलर का जुर्माना भी सुनाया गया है। आर्थिक ताकत के बलबूते पर आईटी समेत कई क्षेत्रों में वर्चस्व जतानी वाली इन कंपनियों का विघटन करने का प्रस्ताव भी अमेरिकी सांसदों ने रखा है। नया विधेयक भी ‘बिग टेक’ के विरोध में जारी मुहिम का अहम चरण माना जाता है। इस विधेयक के द्वारा गुगल तथा फेसबुक जैसी कंपनियों को उस वेबसाइट पर जारी होने वाली खबरों तथा लिखो के लिए संबंधित कंपनियों को पैसे देने पड़नेवाले हैं।

इससे पहले फ्रान्स, जर्मनी तथा ब्राजिल जैसे देशों में गूगल तथा फेसबुक ने इस तरह के व्यवहारों के लिए समझौता किया होने की बात सामने आई है। इस कारण अमरीका में भी इन कंपनियों को, स्थानीय माध्यम कंपनियों के साथ मजबूरन समझौता करना पड़ सकता है, ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं ।

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