युद्ध सीमा से समाज तक आ पहुँचा है – राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल का इशारा

पुणे – ‘बीते हुए दौर की तरह अब युद्ध केवल सीमा पर लड़ा नहीं जाता बल्कि, बदलते समय के अनुसार युद्ध का स्वरूप बदलकर अब नागरी समाज में युद्ध भड़काना और इसके ज़रिये अपना राजनीतिक और लष्करी उद्देश्‍य प्राप्त करना फायदेमंद हुआ है। जनता का स्वास्थ्य, उनकी क्षेम कुशलता और सुरक्षा एवं जनता का अपनी सरकार पर होनेवाले भरोसे को नुकसान पहुँचाकर देश की इच्छाशक्ति पर प्रहार करनेवाली नई युद्धनीति विकसित हुई है’, ऐसा कहकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने देश के सामने सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का अहसास कराया।

Dowal-Community-War‘नैशनल सिक्युरिटी प्रिपेअर्डनेस इन द एज ऑफ डिज़ास्टर्स ऐण्ड पैन्डेमिक्स’ विषय पर ‘पुणे डायलॉग ऑन नैशनल सिक्युरिटी-पीडीएनएस २०२१’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में डोवल बोल रहे थे। वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने इस दौरान देश के सामने खड़ी हुई चुनौतियों का स्पष्ट शब्दों में अहसास कराया। कोरोना की महामारी और इसके जैसी राष्ट्रीय विपदाओं की वजह से देश के मनोबल पर घातक परिणाम हो सकते हैं, इस ओर डोवल ने ध्यान आकर्षित किया। ‘कोरोना की महामारी और नैसर्गिक विपदाओं की वजह से निर्माण होनेवाले सामाजिक असंतुलन की वजह से राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक प्रगति और देश के अंदरुनि और बाहरी चुनौतियों का सामना करने की देश की क्षमता प्रभावित होती है। यह देश के सामने खड़े हुए नए खतरे है। इससे अलग अलग स्तरों पर प्रचंड़ मात्रा में संभ्रम बढ़ता है’, इस बात पर डोवल ने ध्यान आकर्षित किया।

‘विषाणुओं का हथियार की तरह इस्तेमाल करके जैविक युद्ध शुरू करने के घातक प्रकार चिंता बढ़ाते हैं। इसके खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर क्षमता बढ़ाना आवश्‍यक हो गया है। इसी वजह से ‘बायो-डिफेन्स’, ‘बायो-सेफ्टी’, ‘बायो-सिक्युरिटी’ यानी जैविक सुरक्षा एवं सुरक्षा के लिए व्यापक व्यवस्था का निर्माण करना अनिवार्य है। साथ ही कोरोना की महामारी से उभर रहे खतरों का पहले से विचार करने की एवं उसका मुकाबला करने की तैयारी पहले से करने की आवश्‍यकता भी सामने आयी है’, ऐसा कहकर डोवल ने आगे के समय में भी कोरोना जैसी महामारी का संकट फिर से उभर सकता है, ऐसा इशारा दिया।

सुरक्षा संबंधी स्तर पर विश्‍वभर में हो रहे बदलाव का अहसास हम सबको होने लगा है। सीमा पर होनेवाले युद्धों से अब नागरी सामाज में संघर्ष भड़काने की युद्धनीति विकसित हुई है। सूचना और प्रौद्योगिकी की क्रांती के युग में दुष्प्रचार और दुष्ट उद्देश्‍य से फैलाई जा रही गलत जानकारी से अपनी जनता की सुरक्षा करना बहुत जरुरी हो गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी नीति तय करते समय इन सभी बातों को ध्यान रखकर इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना कठिन हो बैठा है’, यह भी डोवल ने कहा।

मौसम का बदलाव, देश के सामने खड़ा हुआ और एक खतरा है और इसका स्वरूप उम्मीद से परे होने की बात पर डोवल ने ध्यान आकर्षित किया। ‘इस वजह से देश के स्रोत प्रभावित हो सकते हैं। अनाज की किल्लत निर्माण हो सकती है। इससे अंदरुनि संघर्ष भड़क सकता है। मौसम के बदलाव के प्रभाव की वजह से तटीय इलाकों की जनता शहरों की ओर जाएगी। पहले से बढ़ रही जनसंख्या के भार से झूझने वाले शहरों की व्यवस्था इससे प्रभावित हो सकती है, इससे तीव्र संघर्ष भड़क सकता है’, इस बात पर भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ध्यान आकर्षित किया।

भारत को जैविक युद्ध से प्रचार युद्ध का खतरा होता है और इनका इस्तेमाल करके देश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश विदेशी ताकतें कर रही हैं, इस बात पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने चुनिंदा शब्दों में ध्यान आकर्षित किया। भारत की राजनीति और सामाजिक स्तर की व्यवस्था बिगाड़ने की साज़िश करके शत्रुदेश भारत की प्रगति रोकने की तैयारी में होने का इशारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने दिया है। इसकी वजह से आधुनिक समय का युद्ध सीमा पर नहीं, बल्कि देश के अंदर लड़ना आवश्‍यक है, इस बात का स्पष्ट अहसास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने देशवासियों को कराया है।

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