अफ़गानिस्तान मुद्दे पर रशिया, चीन, ईरान और पाकिस्तान ने की विशेष बैठक – सुरक्षा को लेकर हुई चर्चा

समरकंद – अफ़गानिस्तान की स्थिरता और आतंकवादी संगठनों के जारी हमलों के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए उज़बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में विशेष बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक के लिए रशिया, चीन, ईरान के विदेश मंत्री और पाकिस्तान के उप-विदेश मंत्री उपस्थित थे। अफ़गानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने के लिए और मानवीय संकट टालने के लिए पहल करने का ऐलान किया गया। इसके साथ ही अफ़गानिस्तान का इस्तेमाल भू-राजनीति शत्रुता के लिए किया ना जाए, ऐसी भूमिका रशिया ने इस दौरान अपनाई।

गुरुवार को समरकंद में आयोजित बैठक के लिए रशिया के विदेश मंत्री सर्जेई लैवरोव, चीन के विदेश मंत्री किन गैन्ग, ईरान के विदेश मंत्री हुसेन आमीर-अब्दोल्लाहियान और पाकिस्तान की उप-विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार की मौजूद थे। अफ़गानिस्तान में तालिबान की हुकूमत स्थापित होने के बाद इन चार देशों की हुई यह दूसरी बैठक है। इस अवसर पर रशिया ने अफ़गानिस्तान की स्थिरता और सुरक्षा का मुद्दा उठाया। साथ ही अफ़गानिस्तान में सर्वसमावेशक सरकार स्थापित हो, यह मांग भी रशिया ने की।

वर्ष २०२१ के अगस्त महीने में तालिबान ने अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करके वहां अपनी हुकूमत स्थापित की थी। साथ ही अधिकांश देशों ने अफ़गानिस्तान में स्थित अपने दूतावास बंद दिए थे। लेकिन, तालिबान ने इस देश पर कब्ज़ा करने के बाद भी अफ़गानिस्तान में अपने दूतावास शुरू रखनेवाले चुनिंदा देशों में रशिया और चीन का समावेश था। इसके पीछे विभिन्न कारण थे।

अफ़गानिस्तान की सीमा पूर्व सोवियत देशों से जुड़ी हैं। इस वजह से अफ़गानिस्तान में फैला आतंकवाद इन पड़ोसी देशों में फैलता हैं तो वह अपने देश में पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगेगा, इसका अहसास रशिया को था। ऐसी स्थिति में अफ़गानिस्तान में अपना दूतावास शुरू रखकर रशिया ने तालिबान से मेल-जोल करने की कोशिश शुरू की थी।

ऐसे में अमरीका की वापसी के बाद अफ़गानिस्तान पर अपना प्रभाव बढ़ाकर वहां से अरबों डॉलर्स के खनिज संपत्ति का खनन करने की तैयारी चीन ने रखी थी। इस वजह से अफ़गानिस्तान से अमरीका के पीछे हटने के बाद चीन ने इस देश में अपना दूतावास शुरू रखा। इसके साथ ही वहां के खनिजों का खनन करने के लिए चीन ने तालिबान के साथ कई समझौते किए। इसके लिए चीन ने अफ़गानिस्तान में अरबों डॉलर्स निवेश करने की तैयारी भी जुटाई है।

रशिया-चीन की तरह पाकिस्तान ने अफ़गानिस्तान में अपना दूतावास शुरू रखा था। साथ ही अफ़गानिस्तान में तालिबानी हुकूमत स्थापित होने के बाद पाकिस्तान ने जल्लोष भी किया था। पिछले कुछ साल अपने नियंत्रण में रहे तालिबान को मोहरा बनाकर अफ़गानिस्तान को अपने नियंत्रण में लाने के सपने पाकिस्तान ने देखें थे। लेकिन, पिछले डेढ़ सालों में पाकिस्तान के सपने हवां हुए हैं।

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