ईंधन कारोबार में डॉलर का इस्तेमाल कम होने पर अमरिकी अर्थव्यवस्था के लिए होगा गंभीर खतरा – अमरिकी आर्थिक विशेषज्ञ एवं पूर्व वरिष्ठ अधिकारी की चेतावनी

वॉशिंग्टन – विश्व के अधिक से अधिक देश ईंधन कारोबार में डॉलर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और यह अमरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा गंभीर खतरा है, ऐसा इशारा आर्थिक विशेषज्ञ पॉल क्रेग रॉबर्टस्‌‍ ने दिया। पॉल क्रेग रॉबटर्स्‌‍ अमरीका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में बतौर आर्थिक सलाहकार के पद पर थे। इसकी वजह से उनका यह बयान ध्यान आकर्षित कर रहा है। पिछले महीने सौदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जदान ने दावोस परिषद में अपना देश ईंधन कारोबार के लिए अमरिकी डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं का इस्तेमाल कर सकता है, ऐसे संकेत दिए थे। इसका दाखिला देकर रॉबर्टस्‌‍ ने अमरिकी डॉलर और अर्थव्यवस्था के खतरे का अहसास कराया।

कुछ दिन पहले प्रसिद्ध हुए एक लेख में रॉबर्टस्‌‍ ने पेट्रो-डॉलर का अन्त काफी खतरनाक प्रभाव डालेगा, ऐसा इशारा दिया। ईंधन कारोबार में डॉलर का इस्तेमाल खत्म हुआ तो डॉलर के मूल्य में गिरावट आ सकती है और इससे अमरीका में महंगाई और ब्याजदरों पर बड़ा असर पडेगा, इसका अहसास उन्होंने कराया। सौदी के वित्त मंत्री का बयान अमरिकी वित्तसंस्थाओं के प्रभाव एवं अमरीका के सामर्थ्य के लिए बड़ा खतरा होगा, ऐसा इशारा आर्थिक विशेषज्ञ रॉबर्टस्‌‍ ने दिया।

‘पिछले पांच दशकों से पेट्रो-डॉलर के इस्तेमाल ने अमरिकी डॉलर के मूल्य को आधार दिया है। और इससे अमरीका का बजट एवं वित्तीय घाटा नहीं हुआ है। पेट्रो-डॉलर की वजह से ही अमरिकी डॉलर को विश्व के प्रमुख मुद्रा का स्थान अब भी कायम है’, इस ओर पॉल ने ध्यान आकर्षित किया। लेकिन, पिछले कुछ सालों में अमरीका ने विश्व के प्रमुख मुद्रा डॉलर का इस्तेमाल गलत ढ़ंग से किया है, ऐसी आलोचना भी उन्होंने की।

पिछली सदी में अमरिकी डॉलर को अंतरराष्ट्रीय स्तर के आरक्षित मुद्रा के तौर पर मंजूरी देने में सौदी समेत खाड़ी देशों ने शुरू किए ईंधन कारोबार का प्रमुख योगदान था। ईंधन उत्पादक देशों ने डॉलर के ज़रिए कारोबार करने से इसका इस्तेमाल बढ़ा और इसे सर्वमान्य मुद्रा का स्थान मिला था। लेकिन, पिछले कुछ सालों में चीन भी युआन को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मुद्रा बनाने की कड़ी कोशिश कर रहा है और विश्व के कई देशों के साथ इसके लिए समझौते भी किए हैं। खाड़ी देशों ने युआन का इस्तेमाल शुरू किया तो वैश्विक स्तर पर इसे स्वीकृति प्राप्त होगी और इसका इस्तेमाल काफी बढ़ सकता है।

पिछले महीने यूरोप के एक प्रमुख विश्लेषक ने इस मुद्दे पर चेतावनी भी दी थी। चीन और खाड़ी देशों के सहयोग से नई वैश्विक ईंधन व्यवस्था रूप ले रही है और साल २०२३ इसमें अहम चरण साबित होगा, ऐसा ‘क्रेडिट सूस’ के प्रमुख विश्लेषक झोल्टन बॉझ्सर ने इशारा दिया था।

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