अमरीका के साथ पश्चिमी देशों का दबाव ठुकराकर ‘ओपेक’ के ईंधन उत्पादन में नाम मात्र बढ़ोतरी

वियना – ईंधन उत्पादक देशों के प्रमुख ‘ओपेक’ संगठन और अन्य उत्पादक देशों की बैठक में सितंबर से ईंधन उत्पादन एक लाख बैरल्स से बढ़ाने का निर्णय किया गया। इससे पहले ‘ओपेक प्लस’ देशों के उत्पादन की बढ़ोतरी की तुलना में ओपेक की यह बढ़ोतरी काफी कम है, जुलाई और अगस्त में ओपेक प्लस देशों ने छह लाख बैल्स उत्पादन बढ़ाया था। बड़ी बढ़ोतरी के लिए ईंधन उत्पादक देश अतिरिक्त ईंधन क्षमता पर्याप्त मात्रा में नहीं रखते, यह कारण इन देशों ने बताया है। विश्व के प्रमुख ईंधन उत्पादक देश रशिया के संबंधों में तनाव ना बने इसके लिए ओपेक ने भारी मात्रा मं ईंधन उत्पादन नहीं बढ़ाया है, यह दावा विश्लेषक कर रहे हैं।

रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर रशिया से ईंधन आपूर्ति कम हो रही है। पश्चिमी देशों ने हम पर प्रतिबंध लगाए या दर नियंत्रित करने की कोशिश की तो हम कच्चे तेल और नैसर्गिक ईंधन वायु का निर्यात रोक देंगे, यह इशारा भी रशिया ने दिया था। रशिया की यह चेतावनी सच्चाई में उतरती है तो ईंधन बाज़ार में बड़ी उथल-पुथल होगी और कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल २०० से ३०० डॉलर्स तक उछल सकती हैं। इस संभावना को ध्यान में रखते हुए पश्चिमी देशों ने ‘ओपेक’ को ईंधन सप्लाई बढ़ाने की गुहार लगाई थी।

अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन के साथ प्रमुख यूरोपिय देशों ने इसकी पहल की थी। बायडेन के खाड़ी दौरे में सौदी अरब ने ईंधन उत्पादन बढ़ाने का वादा किया, ऐसे दावे अमरिकी प्रशासन ने किए थे। यूरोपिय नेताओं ने खाड़ी और अफ्रीकी देशों ने ईंधन सप्लाई बढ़ाने का वादा किया है, ऐसा कहा था। लेकिन, बुधवार को हुई बैठक का निर्णय इन बयानों को काट रहा है। अमरीका और यूरोपिय देशों में ईंधन की कीमतें बड़ी उछाल पर हैं और महंगाई पर इसका असर बढ़ने लगा है। इस मुद्दे पर जनता में असंतोष की भावना है और करीबी समय में इसके राजनीतिक परिणाम सामने आने का ड़र विश्लेशक व्यक्त कर रहे हैं।

अमरीका और यूरोप समेत अन्य पश्चिमी देशों ने रशिया के ईंधन क्षेत्र पर भारी मात्रा में प्रतिबंध लगाए हैं। यूरोपिय देशों ने अगले कुछ सालों में रशिया से ईंधन का आयात ना करने के महत्वाकांक्षी इरादे भी घोषित किए हैं। लेकिन, भविष्य की योजना का ऐलान कर रहे यूरोपिय देशों को मौजूदा समय में ईंधन की सप्लाई और बढ़ती कीमतों की समस्या का हल निकालना मुमकिन नहीं हुआ हैं। इसके लिए खाड़ी और अफ्रीकी देशों से बिनती करनी पड़ रही है। बुधवार की बैठक में ‘ओपेक’ के निर्णय से यूरोपिय देशों की बिनती को ज्यादा रिस्पान्स प्राप्त ना होता दिख रहा है।

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