जम्मू-कश्मीर के पंपोर में जारी मुठभेड खत्म; ‘लश्कर-ए-तोयबा’ के दो आतंकी ढेर

श्रीनगर, दि. १२ (वृत्तसंस्था) – ५८ घंटे के बाद जम्मू-कश्मीर के पंपोर में जारी मुठभेड खत्म हुई है और दोनों आतंकवादियों को मार गिराया गया है| सेना के जवानों ने किसी भी प्रकार का ख़तरा मोल न लेते हुए इस मुहीम की कार्यवाही की होने के कारण यह मुठभेड लंबे समय तक चली, ऐसा कहा जा रहा है| पिछले १५ दिनों में जम्मू-कश्मीर में हुआ यह चौथा बड़ा हमला है| इस वजह से सर्जिकल स्ट्राईक का बदला लेने के लिए आतंकी जान की बाजी लगा रहे है, ऐसा दिखायी दे रहा है| लेकिन सेना की सतर्कता की वजह से आतंकीवादियों के हमले नाकाम हुए है| पंपोर में मारे गए आतंकी ‘लश्कर-ए-तोयबा’ के हैं, ऐसा सामने आया है|

पंपोरसोमवार को सुबह पंपोर में ‘इडीआय’ इस सरकारी विभाग के कार्यालय की ईमारत पर आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था| इस मुठभेड के जारी रहते हुए लष्कर का एक जवान घायल हुआ था| लेकिन उसके बाद सेना का कोई भी नुकसान नहीं हुआ है| बुधवार दोपहर को दोनों आतंकियों को मार गिराने के बाद यह ‘ऑपरेशन’ खत्म हुआ| सेना के ‘पॅरा कमांडो’ के जवानों ने इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम दिया| सन २००३ के बाद सेना की छावनी पर हुए हमले के बाद ७२ घंटे मुठभेड चली थी| इसके बाद पंपोर में हुई मुठभेड, यह सबसे ज़्यादा देर चली मुठभेड है|

इस साल के फरवरी महीने में भी इसी ईमारत में घुसकर आतंकवादियों ने यहाँ के कर्मचारियों को बंधक बनाने की कोशिश की थी| उसी समय हुई मुठभेड में दो अधिकारियों के साथ, सेना के पाँच जवान शहीद हुए थे और १३ लोग घायल हुए थे| यह मुठभेड भी दो दिन जारी थी| इस मुठभेड में चार आतंकवादियों को मार गिराया था| फरवरी में हुई भुठभेड की तरह इस बार रक्षादल का नुकसान ना हों इस उद्देश्य से, बिना खतरा लेते हुए सेना ने इस ‘ऑपरेशन’ को अंजाम दिया गया, ऐसी जानकारी कमांडिंग ऑफ़िसर मेजर जनरल अशोक नरुला ने दी|

आतंकवादियों ने जानबुझकर इस समय भी इसी ईमारत का चयन किया, ऐसा सेना ने कहा| यह ईमारत काफी बड़ी है| शौचालय मिलाकर इस इमारत में १२० कमरें हैं| इसके कारण आतंकवादियों को छिपने के लिए काफी जगह है| फ़रवरी में हुए हमले की तरह इस बार भी सुरक्षादल का ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान करने के लिए आतंकवादियों ने इस ईमारत का सहारा लिया था| साथ ही, मुठभेड को अधिक अवधि तक चलाते हुए, पूरी दुनिया का ध्यान खींचने की साज़िश इसके पीछे थी, ऐसी आशंका मेजर जनरल नेरुला ने जताई थी| लेकिन आतंकी इस कोशिश में नाक़ामयाब हुए हैं| क्योंकि यह मुठभेड ज़्यादा देर तक चलने के बावजूद भी  सेना पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं था| साथ ही, दुनिया में भी इस मुठभेड को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया गया|

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