स्वच्छ ऊर्जा के लिए भारत और अमेरिका का ‘क्लिन एनर्जी अजेंडा २०३०’

नई दिल्ली – सन २०३० तक भारत ने लगभग ४५० गिगावॅटस् इतनी मात्रा में अक्षय ऊर्जा का निर्माण करने का ध्येय सामने रखा है। यह बात भारत की, स्वच्छ ऊर्जा के मोरचे पर की प्रतिबद्धता को सिद्ध कर रही है। विकास की निरंतरता कायम रखते समय सामने आ रही चुनौतियों के बाद भी, भारत अपने निर्धार पर अडिग रहा है, इसपर प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया का गौर फरमाया। ‘युएस-इंडिया क्लिन एनर्जी अजेंडा २०३० पार्टनरशिप’ का ऐलान करते समय प्रधानमंत्री मोदी ने यह जानकारी दी। अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन ने पर्यावरणविषयक परिषद का आयोजन किया था। वर्चुअल माध्यम से संपन्न हुई इस परिषद में ४० देशों के नेता उपस्थित थे।

‘युएस-इंडिया क्लिन एनर्जी अजेंडा २०३०’ के अनुसार, ऊर्जा के स्वच्छ विकल्पों के लिए अमरीका भारत के साथ सहयोग करनेवाली है। इसके ज़रिए भारत और अमरीका, ऊर्जा के पर्यावरणपूरक विकल्प, उससे संबंधित तंत्रज्ञान और निवेश इन्हें बढ़ावा देंगे, ऐसी जानकारी भारत और अमरीका के संयुक्त निवेदन में दी गई। इस समय बात करते हुए, कार्बन का उत्सर्जन कम करने के लिए भारत ने किए प्रयासों की जानकारी प्रधानमंत्री मोदी ने दी। खासकर भारत ने पहल किए ‘ग्लोबल सोलर अलायन्स’ का भी प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से उल्लेख किया।

स्वच्छ, पर्यावरणपूरक ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलें, इसके लिए भारत और अमरीका द्वारा किए जा रहे ये प्रयास दुनिया को दिशा दर्शानेवाले साबित होंगे, ऐसा विश्वास प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्त किया है। वहीं, कार्बन का उत्सर्जन दशकभर की कालावधि में सन २००५ के स्तर पर ले आकर रखने की घोषणा इस समय अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन ने की। इस परिषद में सहभागी हुए अन्य नेताओं ने भी, पर्यावरण की रक्षा का महत्व अधोरेखांकित किया होकर, इसके लिए प्रयास करने की बात मान ली है।

विकासशील देश ऊर्जा के लिए कोयला और अन्य पारंपरिक विकल्पों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करते हैं। इससे पर्यावरण खतरे में आया होने की शिकायत विकसित देशों द्वारा की जाती है। खासकर चीन और भारत इन विकासशील देशों पर दबाव बनाने की कोशिश की ये अमीर देश लगातार करते हैं। उसे कुछ ही दिन पहले भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रत्युत्तर दिया था।

आज तक विकसित देशों ने पर्यावरण की हानि की। अब उसका ठीकरा भारत जैसे विकासशील देश पर फोड़ा जा रहा है। लेकिन भारत इस दबाव का शिकार नहीं बनेगा। बल्कि भारत खुद ही कार्बन का उत्सर्जन नियंत्रण में रखेगा और अपनी जिम्मेदारी निभाएगा, ऐसा जावड़ेकर ने कहा था। इस पृष्ठभूमि पर, पुनः इस्तेमाल किए जा सकनेवाले स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों का महत्व बढ़ा होकर, भारत अनुरोधपूर्वक उस दिशा में प्रयास कर रहा है।

इस पृष्ठभूमि पर, ‘युएस-इंडिया क्लिन एनर्जी अजेंडा २०३० पार्टनरशिप’ का महत्व बढ़ा है। ऊर्जा का निर्माण करने में अमरिकी कंपनियाँ अग्रसर हैं। उसी समय, भारत ऐसा देश है, जिसमें ऊर्जा की माँग लगातार बढ़ रही है। इस कारण अमरीका की ऊर्जा उत्पादक कंपनियाँ भारत की ओर, बहुत बड़े अवसर के रूप में देखती आईं हैं। आनेवाले दौर में दोनों देशों की इस मोरचे पर साझेदारी, इसी कारण बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

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