रणनीतिक मुद्दे पर अमरीका से व्यवहार करते समय भारत सावधानी बरते – पूर्व सेनाप्रमुख जनरल बिक्रम सिंह

मुंबई – करीबी सहयोगी देशों के भी हम भरोसेमंद मित्रदेश होने की बात ताकतवर अमरीका ने आज तक साबित नहीं की है। इसकी वजह से रणनीतिक मुद्दों पर अमरीका के साथ व्यवहार करते समय भारत सरकार को अधिक सावधानी बरतनी पडेगी, ऐसी सलाह पूर्व सेनाप्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने दी। भारत और अमरीका के संबंध हर स्तर पर मज़बूत और व्यापक हो रहे हैं, ऐसे दावे किए जा रहे हैं। इसी बीच पूर्व सेनाप्रमुख का यह इशारा ध्यान आकर्षित कर रहा है।

मुंबई में गुरूवार को आयोजित किए गए ‘एसबीआई बैंकिंग ऐण्ड इकॉनॉमिक कॉनक्लेव’ कार्यक्रम में पूर्व सेनाप्रमुख जनरल बिक्रम सिंह बोल रहे थे। ३१ मई, २०१२ से ३१ जुलाई २०१४ के दौरान भारत के सेनाप्रमुख पद की बागड़ोर जनरल बिक्रम सिंह के हाथों में थी। इस दौरान बोलते समय अमरिकी नीतियों का दाखिला देते हुए पूर्व सेनाप्रमुख ने अमरीका भरोसा करने योग्य सहयोगी देश साबित नहीं हुआ, इसका अहसास कराया। अमरीका ने वियतनाम का युद्ध छेडा, बाद में इस युद्ध से पीछे हटी। इसके बाद अमरीका ने इराक से दो बार सेना को वापस बुलाया। अफ़गानिस्तान से अमरिकी सेना की वापसी बिल्कुल ताज़ी घटना है, ऐसा जनरल बिक्रम सिंह ने कहा।

अमरीका अन्य देशों में सैन्य हस्तक्षेप करने के अभियानों में हमेशा असफल रही है, इसका कारण अमरीका इन कामों को आऊटसोर्स करती रही है, इस पर भी जनरल सिंह ने ध्यान आकर्षित किया। इसलिए अमरीका को अपने करीबी सहयोगी देशों के लिए भरोसेमंद साथीदार नहीं कहा जा सकता। अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड संगठन में भारत का भी समावेश है, यह अच्छी बात है। लेकिन, अमरीका के लौकिक मुद्दों पर गौर करें तो भारत को रणनीतिक स्तर पर अमरीका से व्यवहार करते समय सावधानी बरतनी होगी, ऐसा इशारा एवं सलाह पूर्व सेनाप्रमुख ने दी है।

पूरे विश्व के विश्लेषक भी अमरीका पर इसी तरह के आरोप लगा रहे हैं। खास तौर पर पिछले कुछ महीनों से अमरीका ने अपने करीबी सहयोगी देश इस्रायल, सौदी अरब, यूएई और अन्य खाड़ी देशों के लिए घातक साबित होने वाले निर्णय किए थे। साथ ही यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रशिया पर प्रतिबंध लगाकर अमरीका ने यूरोप के अपने मित्रदेशों को ईंधन की किल्लत का सामना करने के लिए मज़बूर किया है। सर्दियों के मौसम में रशिया से ईंधन की सप्लाइ नहीं हुई तो यूरोपिय देशों की स्थिति बिगड जाएगी, इसकी पूरी जानकारी के बावजूद अमरीका ने यूरोपिय देशों पर रशिया के ईंधन का बहिष्कार करने के लिए दबाव बनाया था।

इसके अलावा जापान जैसे मित्रदेश द्वारा लगातार मांग किए जाने के बावजूद ताइवान की चीन से सुरक्षा करने के लिए अमरीका ने उचित कदम नहीं उठाए। अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन ने सरकार की बागड़ोर संभालते ही अपने देश के करीबी सहयोगी देशों को नुकसान पहुँचाने वाली नीति अपनाई है। अमरीका के भारत से सहयोग का विकल्प ना होने के दावे बायडेन प्रशासन लगातार कर रहा है, लेकिन, वास्तव में बायडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को समय-समय पर सहायता प्रदान करने के निर्णय लिए हैं। एक ओर परमाणु अस्त्रों पर नियंत्रण ना रखनेवाला पाकिस्तान विश्व में सबसे घातक देश होने के दावे कर रहे अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने दूसरी ओर पाकिस्तन के लड़ाकू ‘एफ-१६’ विमानों के लिए पैकेज घोषित किया था। इस वजह से भारत अपनी विदेश नीति का संतुलन कायम रखकर बड़ी सावधानी से अमरीका से व्यवहार करे, यह सलाह सामरिक विश्लेषक पहले से दे रहे हैं। पूर्व सेनाप्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने भी फिर से यह बात भारत सरकार के सामने लाई है और अमरीका की विश्वस्नीयता का सवाल उठाया है।

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