गहरे समुद्र में खनिज संपदा खोजने के लिए गहरे समुद्री क्षेत्र में भारत का पहला मानवी अभियान ‘समुद्रयान’ शुरू – विश्‍व के चुनिंदा देशों की सूचि में भारत का समावेश

india-samudrayaan-1नई दिल्ली/चेन्नई – गहरे समुद्र में खनिज संपदा के खोज़, खनन, सर्वेक्षण एवं अध्ययन के लिए भारत ने ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत शुरू किए पहले मानवी समुद्री अभियान ‘समुद्रयान प्रोजेक्ट’ की शुरूआत हुई है। विज्ञान और तकनीक एवं पृथ्वी विज्ञानमंत्री जितेंद्र सिंह ने इस अभियान की जानकारी सार्वजनिक की। ‘समुद्रयान’ अभियान के शुभारंभ के साथ ही ऐसी क्षमता वाले विश्‍व के चुनिंदा देशों की सूचि में भारत को स्थान प्राप्त हुआ है। अमरीका, जापान, रशिया, फ्रान्स और चीन की कक्षा में भारत दाखिल हुआ है और एक ओर भारत गगनयान के माध्यम से अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर अंतरिक्ष में छलांग लगाएगा और दूसरी ओर ‘समुद्रयान’ अभियान के तहत समुद्र के गर्भ में प्रवेश करके खोजे करेगा, ऐसा जितेंद्र सिंह ने कहा है।

जून में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘डीप ओशन मिशन’ नामक महत्वाकांक्षी समुद्री अभियान को मंजूरी प्रदान की थी। इसके तहत गहरे समुद्र में छह हज़ार मीटर की गहराई तक मानव को पहुँचाने की क्षमता वाले ‘वेहिकल’ का निर्माण करना एवं गहरे समुद्री अभियान के लिए आधुनिक उपकरणों का निर्माण करने के साथ ही खनन के लिए आवश्‍यक तकनीक का विकास करना भी इस ‘डीप ओशन मिशन’ का एक हिस्सा है। इसी ‘डीप ओशन मिशन’ के पहले मानवी समुद्री अनुसंधान अभियान ‘समुद्रयान’ की शुरूआत हुई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘नैशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी’ (एनआयओटी) ने गहरे समुद्र तक जाने की क्षमता के ‘वेहीकल’ का निर्माण किया है। इस ‘वेहिकल’ के लिए ‘मत्स्य ६०००’ यह सांकेतिक नाम दिया गया है।

india-samudrayaan-2‘समुद्रयान प्रोजेक्ट’ के तहत ३५० करोड़ रुपयों के लागत से बनाए इस ‘वेहिकल’ का परीक्षण तीन दिन पहले ही तमिलनाडू के समुद्र में किया गया। इस दौरान समुद्र में ६०० मीटर गहराई तक इस वेहिकल को ले जाया गया था। ‘मत्स्य ६०००’ के निर्माण में टायटॅनियम के संमिश्र धातू का इस्तेमाल किया गया हैं। पांच टन भार के इस वेहिकल का यह पहला परीक्षण था। अगले चरण के परीक्षण के दौरान यह ‘वेहिकल’ क्रू सदस्यों के साथ समुद्र की गहराई में प्रवेश करेगा। इस परीक्षण के दौरान वर्णित वेहिकल में बैठकर गहरें समुद्र में जानेवाले वैज्ञानिकों की सुविधा, जीवनरक्षक प्रणाली, रक्षा प्रणाली उचित तरीके से कार्यरत होते या नहीं, यह देखा जाएगा, ऐसा ‘एनआयओटी’ के संचालक जी.ए.रामदास ने कहा।

‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इस्रो) की सहायता से ‘एनआयओटी’ ने ‘मत्स्य ६०००’ का निर्माण किया है। गहरे समुद्र में अधिक व्यापक अनुसंधान के लिए आवश्‍यक तकनीक विकसित करने के लिए ‘डीआरडीओ’, ‘इस्रो’ और ‘कौन्सिल फॉर सायंटिफिक ॲण्ड इंडस्ट्रियल रिसर्च’ (सीएसआयआर) की सहायता ली जा रही है। समुद्री गर्भ में प्रचंड़ मात्रा में खनिज भंड़ार छुपे हुए हैं। भारतीय समुद्री सीमा में भी इस तरह के प्रचंड़ खनिज भंड़ार मौजूद होंगे, ऐसा अनुमान है। लेकिन, भारत ने अब तक इन खनिज भंड़ारों की खोज और खनन की ओर ध्यान नहीं दिया गया था।

india-samudrayaan-3भारतीय समुद्री सीमा के १ हज़ार से ५,५०० मीटर तक की गहराई में भारी मात्रा में ‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ मौजूद होने का अनुमान हैं। निकेल, तांबा, कोबाल्ट, मैगनीज, लोह जैसें खनिजों से भरें पत्थरों को ‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ कहा जाता हैं। इसका खनन करना इस अभियान के कारण भारत के लिए मुमकिन होगा, ऐसा बयान केंद्रीयमंत्री जितेंद्र सिंह ने किया। ‘पॉलिमेटैलिक नोड्यूल्स’ बाहर निकालकर इनमें छिपे खनिजों का इस्तेमाल अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्मार्टफोन्स में किया जाएगा। इस वजह से इन खनिजों के आयात के बड़े खर्च बचेंगे। अर्थव्यवस्था को गति प्राप्त होगी। इसके अलावा गहरे समुद्र में अन्य कीमती खनिजों के भंड़ार बरामद होने की संभावना भी जताई जा रही है। इस पृष्ठभूमि पर भारत के पहले गहरे समुद्री मानवी अभियान ‘समुद्रयान’ की शुरूआत होने की खबर की अहमियत बढ़ती है।

इसी बीच, संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘इंटरनैशनल सी बेड अथॉरिटी’ (आयएसए) ने भारत को मध्य हिंद महासागर के ७५ हज़ार चौरस किलोमीटर क्षेत्र में ‘पॉलिमेटैलिक नोड्यूल्स’ का खनन और खोज करने की अनुमति प्रदान की है। इसकी पहली अनुमति २००२ में ही प्राप्त हुई थी। परंतु इस संदर्भ कोई काम नहीं हुआ। इस पृष्ठभूमि पर वर्ष २०१६ में भारत ने ‘आयएसए’ के साथ फिर से १५ वर्षों का समझौता किया। इसके बाद भारत सरकार ने ‘डीप सी मिशन’ शुरू करने का निर्णय किया था।

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