‘लोन मोरेटोरियम’ का अवधि बढ़ाना नामुमकिन – आरबीआय का सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिज्ञापत्र

नई दिल्ली – कोरोना वायरस के कारण उभरे संकट में कर्ज की किश्‍तें चुकाने में दी गई सहुलियत अधिक बढ़ाना संभव नहीं है, यह बात ‘रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया’ (आरबीआय) ने सर्वोच्च न्यायालय में स्पष्ट की। ‘लोन मोरेटोरियम’ की अवधि के मुद्दे पर आरबीआय ने न्यायालय में प्रतिज्ञापत्र पेश किया है। इसमें आरबीआय ने अपनी भूमिका स्पष्ट की।

कोरोना वायरस के संकट के दौरान केंद्र सरकार ने तीन महीनों के लिए कर्ज की किश्‍तें चुकाने से राहत देने के लिए ‘लोन मोरेटोरियम’ की सुविधा उपलब्ध कराई थी। इसके बाद इस सुविधा की अवधि छह महीने किया गया। लेकिन, अब कोरोना से झटका महसूस करनेवाले क्षेत्रों को अधिक राहत देना संभव ना होने की बात ‘आरबीआय’ ने कही है। इस सुविधा की अवधि छह महीनों से अधिक समय के लिए बढ़ाई गई तो आर्थिक अनुशासन बिगड़ेगा। इससे अर्थव्यवस्था में कर्ज निर्माण करने की प्रक्रिया पर विपरित असर होगा, यह बयान आरबीआय ने अदालत के सामने किया।

दो करोड़ रुपयों तक के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने के अलावा अन्य कोई सहुलियत प्रदान करने पर देश की अर्थव्यवस्था पर और कुल बैंकिंग क्षेत्र पर विपरित असर पड सकता है, यह बात भी आरबीआय ने स्पष्ट की। ५ अक्तुबर के दिन हुई सुनवाई में अदालत ने सरकार को के.वी.कामत समिती ने कर्ज की पुनर्रचना करने से संबंधित सुविधाओं को लेकर दिए सुझाव पर दुबारा विचार करने को कहा था। इस पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना जवाब रखा। विशेषज्ञों की समिती ने दिए गए कर्ज के भुगतान के सिफारिशों पर विचार किया गया है। बैंक और आर्थिक संस्थाओं को जरूरत पड़ने पर कर्ज की पुनर्रचना करने के निर्देश सरकार ने दिए हैं, यह बात सरकार ने कही।

इसी बीच इस मुद्दे पर १३ अक्तुबर को अगली सुनवाई होगी। आरबीआय ने अपने प्रतिज्ञापत्र में ‘लोन मोरेटोरियम’ का अवधि अधिक बढ़ाना मुमकिन ना होने की बात कहने से अगली सुनवाई की ओर सभी की नज़रें लगी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.