अफगानिस्तान के लिए अड्डा नकारनेवाले पाकिस्तान को अमरीका का पहला झटका

वॉशिंग्टन – चाहे कुछ भी हो, अफगानिस्तान में तालिबान पर हमले करने के लिए पाकिस्तान अमरीका को अड्डा नहीं देगा, ऐसा प्रधानमंत्री इम्रान खान ने संसद में डटकर कहा था। पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने उसका ज़ोरदार स्वागत भी किया। लेकिन इस आक्रामकता की कीमत चुकानी पड़ेगी, ऐसी चेतावनी पाकिस्तान के कुछ मैच्योर पत्रकार और विश्लेषक दे रहे हैं। इस ‘कीमत’ की पहली झलक पाकिस्तान को देखने को मिली है। ‘चाईल्ड लेबर प्रिव्हेन्शन ऍक्ट’ में पाकिस्तान का समावेश करके अमरीका ने पाकिस्तान को पहला झटका दिया।  

१८ साल से कम उम्र के युवाओं का जवान के रूप में इस्तेमाल करनेवाले देशों की सूची में पाकिस्तान का समावेश करके, अमरीका के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान को पहली फटकार लगाई। प्रधानमंत्री इम्रान खान ने पाकिस्तान की संसद में अमरीकाविरोधी भाषण करके शाबाशी प्राप्त करने के एक ही दिन बाद अमरीका ने यह कार्रवाई की है। अफगानिस्तान, यमन, इराक, ईरान, दक्षिण सुदान इन देशों के साथ, अब पाकिस्तान और तुर्की का भी इस सूची में समावेश करने का अमरीका का फैसला रणनीतिक होने के दावे पाकिस्तान के पत्रकार कर रहे हैं।

आनेवाले समय में पाकिस्तान अमरीका से ऐसी ही अथवा इससे भी अधिक कड़ी कार्रवाई का सामना करने की तैयारी करें, क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने खुद ही अमरीका को उकसाया है, ऐसा इन पत्रकारों ने कहा है। ‘अफगानिस्तान के बारे में फैसला करते समय पाकिस्तान की सरकार ने सारी बातें ध्यान में नहीं लीं हैं। लष्करी अड्डे के लिए अमरीका को मना करते समय, पाकिस्तान चीन के गुट में सहभागी हुआ है, ऐसा संदेश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अमरीका समेत पश्चिमी देशों को दिया। उसकी कुछ भी आवश्यकता नहीं थी’, ऐसा इन पाकिस्तानी पत्रकारों का कहना है।

चीन ज़्यादा से ज़्यादा पाकिस्तान को कर्जा देगा, राजनीतिक स्तर पर सहयोग भी करेगा। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, जागतिक बैंक समेत अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर अमरीका का वर्चस्व है। उसका इस्तेमाल करके अमरीका पाकिस्तान को आसानी से परेशान कर सकती है, इसका विचार ही पाकिस्तान की सरकार ने नहीं किया है। प्रधानमंत्री इम्रान खान को तो इसका एहसास ही नहीं। इस कारण पाकिस्तान के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा हुआ है, इस पर पाकिस्तान के पत्रकार और विश्लेषक गौर फरमा रहे हैं।

अमरीका की विख्यात विश्‍लेषिका लिसा कर्टिस ने भी यह जताया कि अब अमरीका-पाकिस्तान संबंध पहले जैसे होना मुश्किल है। पाकिस्तान ने अगर अपनी आतंकवाद विषयक तथा चीन और भारत विषयक भूमिका नहीं बदली, तो अमरीका-पाकिस्तान संबंध पहले जैसे सुचारू हो ही नहीं सकते, ऐसा कर्टिस ने स्पष्ट किया।

‘युएस पाकिस्तान रिलेशन्स आफ्टर युएस विड्रॉल फ्रॉम अफगानिस्तान’ इस विषय पर आयोजित किए परिसंवाद को लिसा कर्टिस संबोधित कर रहीं थीं। अफगानिस्तान में पाकिस्तान तालिबान की सहायता नहीं कर रहा है, ऐसे दावे पाकिस्तान खुलेआम कर रहा है। लेकिन दरअसल पाकिस्तान तालिबान को हर संभव सहायता प्रदान कर रहा है। वैसा करना पाकिस्तान के हित में नहीं है, क्योंकि तालिबान अफ़गानिस्तान में सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान में भी उसकी गूँजें सुनाई देंगी और कट्टरपंथी पाकिस्तान पर ही हमले करेंगे, ऐसी चेतावनी कर्टिस ने दी है।

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