यूरोपीय महासंघ के प्रमुख जंकर की यूरोपीय देशों में दक्षिण पंथी समूहों के बढ़ते प्रभाव पर चिंता

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व्हिएन्ना – बेताल लोकप्रियतावादी नीतियां और संकुचित राष्ट्रवाद का स्वीकार करने वाले दक्षिण पंथी समूहों को यूरोपीय देशों में समर्थन बढ़ रहा है, ऐसी चिंता महासंघ के प्रमुख जीन क्लाउड जंकर ने व्यक्त की है। यूरोपीय देशों में शरणार्थियों के बढ़ते समूह, इस्लामीकरण और आतंकवादी हमले जैसे मुद्दों पर दक्षिण पंथी गुटों ने आक्रामक भूमिका अपनाई है।इस वजह से अगले साल होने वाले यूरोपीय संसद के चुनाव में दक्षिण पंथी गुटों की पार्टियों को बड़ा समर्थन मिलने के संकेत मिल रहे हैं।यह ध्यान में रखा जाए तो जंकर ने व्यक्त की हुई चिंता ध्यान आकर्षित करती है।

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‘यूरोपीय देशों में लोकप्रियतावादी नीतियाँ और संकुचित राष्ट्रवाद को मिलने वाला समर्थन बढ़ने लगा है। इस वजह से दक्षिण पंथी गुटों का प्रभाव आसानी से बढने का खतरा अधिक बढ़ गया है।लेकिन वक्त अभी भी गया नहीं है।बढ़ने वाले खतरे को हम सबने रोकना चाहिए’, ऐसा आवाहन यूरोपियन कमिशन के प्रमुख जंकर ने किया है। जंकर ने वर्तमान स्थिति की तुलना यूरोप में १९२० और ३० के दशक में हिटलर के बढ़ते वर्चस्व से की है।

जंकर ने यूरोपीय महासंघ का विरोध करने वाले गुटों को कट्टर दक्षिण पंथी गुटों से अलग करने की कोशिश भी की है। ‘दक्षिण पंथी गुटों में ऐसे कई लोग हैं जिनका यूरोप को विरोध नहीं है, लेकिन उन्हें इसके बारे में कुछ आशंकाएं हैं और वह उचित हैं।उनका समाधान करने के लिए चर्चा और विवाद होना आवश्यक है।लोगों को सताने वाली चिंताओं को नजरअंदाज करने के बजाय उनके साथ विचारों का आदानप्रदान करनी चाहिए’, ऐसी जंकर ने सलाह दी है।

व्हिएन्ना के कार्यक्रम में जंकर ने व्यक्त की हुई चिंता के पीछे पिछले साल भर में महासंघ के प्रमुख सदस्य देशों में हुए चुनाव और उनके परिणाम यह प्रमुख कारण हैं। पिछले साल भर में यूरोप में जर्मनी, फ़्रांस, इटली, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, हंगेरी, नेदरलैंड इन प्रमुख देशों में चुनाव हुए हैं। इसमें से इटली, ऑस्ट्रिया, हंगेरी इन देशों में शरणार्थी और इस्लामीकरण को विरोध करने वाले दक्षिण पंथी समूह सत्ता पर आए हैं। जर्मनी, फ़्रांस, स्वीडन और नेदरलंड इन देशों में दक्षिण पंथी गुटों को बड़ी सफलता मिली है।

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कट्टर राष्ट्रवाद और लोकप्रिय नीतियों को स्वीकार करने वाले इन गुटों के इस सफलता ने, यूरोप में शरणार्थियों के साथ साथ उदारमतवादी नीतियों का पुरस्कार करने वाले प्रस्थापित राजनीतिक गुटों को जबरदस्त झटका लगा है। यूरोपीय महासंघ पर वर्चस्व प्राप्त करने वाले जर्मनी, फ़्रांस और इटली में दक्षिण पंथी गुटों की सफलता से यूरोप में अब तक लागू की जाने वाली नीतियां और फैसलों को चुनौती मिली है। अमरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की राष्ट्रध्यक्ष पद पर हुआ चुनाव और ब्रेक्झिट यह घटक भी यूरोप में राजनीतिक बदलाव में निर्णायक योगदान देने वाला साबित हुआ है।

इस पृष्ठभूमि पर शरणार्थियों के समूह और महासंघ की दबाव की नीति इन मुद्दों पर राष्ट्रवादी विचारों के समूह एक होने की प्रक्रिया शुरू हुई है।सन २०१९ में यूरोपीय संसद के चुनाव होने वाले हैं और यह चुनाव दक्षिण पंथी राष्ट्रवादी समूहों का प्रमुख निशाना बना है।यूरोप के बहुतांश देशों से इन गुटों को मिलने वाला समर्थन प्रस्थापित राजनीतिक पार्टियों और समूहों के लिए सरदर्द साबित हुआ है।इस वजह से प्रस्थापित समूहों की तरफ से भी एक जैसी सोच वाले समूहों को एक होने का आवाहन किया जा रहा है और जंकर का वक्तव्य इसीका ही हिस्सा है।

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