रक्त एवं रक्तघटक – ३९

आज तक हमने रक्ताभिसरण के बारे में यानी शरीर में रक्त के प्रवास के बारे में जानकारी प्राप्त की। हृदय के कार्यों की जानकारी प्राप्त की। हृदय की बीमारियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। हमारे शरीर की सभी पेशियों के कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए उचित मात्रा में प्राणवायु की आपूर्ति आवश्यक होती है। अन्य प्रकार के अन्नघटकों की आवश्यकता होती है। इन सभी की आपूर्ति हमारा रक्त करता है। रक्ताभिसरण संस्था रक्त के पूरे शरीर में अच्छी तरह पहुँचाने का कार्य करती है। इसकी जानकारी हमने प्राप्त की। प्राणवायु, अन्नघटक जिस माध्यम से पेशियों तक पहुँचते हैं, वह माध्यम है रक्त। आज से हम इसके बारे में जानकारी हासिल करेंगे।

‘रक्त’ एक ऐसा शब्द है जिससे अपनी अनेक भाव-भावनायें जुड़ी हुयी होती हैं। प्रेम, करूणा, रिश्ते, अपनत्व, त्याग, बलिदान, निष़्ठा, हिंसा, क्रौर्य इत्यादि। ‘अरे, खून का रिश्ता है हमारा!’ ‘खून के रिश्ते की अपेक्षा प्रेम का रिश्ता। मित्रता का रिश्ता ही मुसीबत में सहायता के लिये दौडकर आता है।’

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।’ यह नेताजी सुभाषचंद्र बोस का प्रसिद्ध व्यक्तव्य। इस प्रकार से रक्त के उल्लेख वाले अनेकों वाक्य, अनेक प्रसंग, सभी के जीवन में आते रहते हैं। चाहे कोई भी युद्ध हो, हिंसा, दंगे, मारामारी हो, वे सब रक्तरंजित ही होते हैं। कभी-कभी सिंदूर की जगह रक्त इस्तेमाल करने की घटनाओं का हम अनुभव करते हैं। रक्त से प्रेमपत्र लिखनेवाले प्रेमवीर हम देखते हैं। शिवनेरी किले पर रोहिडेश्वर मन्दिर में शिवलिंग पर रक्त का अभिषेक करके स्वराज्य की शपथ लेनेवाले शिवाजी महाराज और उनके प्रिय बहादुरों की कहानियाँ हमें ज्ञान ही हैं।

प्राणवायु की आपूर्ति

रक्त का प्रतिबिंब हमारे जीवन में, साहित्य में व अन्य स्थानों हम बारम्बार देखते हैं। परन्तु रक्त तो हमारी धमनियों में लगातार बहता ही रहता है, फिर यह रक्त वास्तव में भला है क्या? अब हमें इस बारे में जानकारी प्राप्त करनी है।

हमारे शरीर के रक्त को वैद्यकीय परिभाषा में Haemolymphoid System (हिमोलिंफॉइड सिस्टम) कहा जाता है। इसके नाम से ही पता चलता है कि इस संस्था के यानि रक्त के दो घटक होते हैं। हीम (Heam) और लिंफ (Lymph) नामक दो घटक। इस हिमोलिंफॉइड सिस्टीम को रक्त और रक्त घटक ऐसे दो सुंदर नाम हम देते हैं। हमारा रक्त अनेक प्रकार की पेशियों एवं पेशीसमूहों का बना होता है। परन्तु इस विविधता में भी समानता है, एकता है। इन सभी घटकों की निर्मिति और उनके कार्यों की एक मजबूत शृंखला हैं। इतना ही नहीं बल्कि उनकी निर्मिति और कार्य भी एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इन दोनों घटकों में अन्य कौन से घटक होते हैं, अब हम यह देखेंगे।

१) हीमल (Haemal) घटक :-
इसकी निर्मिति हमारी हड्डियों की अस्थि मज्जा से (Bone marrow) होती हैं। इसके उपघटक निम्नलिखित होते हैं –

अ) लाल रक्त पेशी : इन्हें Red cells अथवा Erthrocytes कहते हैं। इसके मुख्य कार्य हैं, प्राणवायु को फेफड़ों से लेकर शरीर की ओर वहन करना और थोड़ी मात्रा में कार्बन डायऑक्साईड का वहन करना।

ब) सफेद पेशी : इन्हें Leucocytes कहते हैं। इनमें न्युटोफिल्स, इओसिनो फिल्स, मोनोसाइट्स, बेसोफिल्स् इ. प्रकार की ये पेशियां होती हैं। ये पेशियां हमारे शरीर की पहली सुरक्षा रेखा व प्रतिकार यन्त्रणा हैं। शरीर के रक्त में घुसनेवाली प्रत्येक Harmful चीज़ों का प्रतिकार व शरीर की रक्षा ये पेशियां करती हैं।

क) प्लॅटलेट्स : शरीर के रक्त को जमाने का यानी रक्तस्राव को रोकने का कार्य ये पेशियां करती हैं।

इन तीन घटकों में से लाल पेशियाँ और प्लॅटलेट्स हमेशा रक्त में ही रहती हैं, परन्तु सफेद पेशियाँ रक्त से पेशीबाह्य द्राव में और फिर रक्त में आवश्यकतानुसार प्रवास करती हैं।

२) लिंफॉइड (Lymphoid) घटक :
ये तीन पेशियाँ भी सफेद पेशियां ही होती हैं। इन्हें लिंफॉसाइट्स कहते हैं। इनकी निर्मिति दो स्थानों पर होती हैं। अस्थिमज्जा और अस्थिमज्जा के बाहर शरीर के अन्य अवयवों में ये पेशियां तैयार होती हैं। थायमस, लिंफ नोड्स, प्लीहा (Spleen) इत्यादि स्थानों में इनकी निर्मिति होती है। ये पेशियां भी बचाव एवं प्रतिकार का काम करती हैं। रक्त के अलावा लिंफ द्राव में भी ये पेशियां पायी जाती हैं। ये पेशियां भी अपनी ज़रूरत के अनुसार रक्त में से अंदर-बाहर करती रहती हैं।

(क्रमश:)

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