हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – ३६

‘हृदय’ हमारे शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अवयव है। हम हृदय के रक्ताभिसरण का अध्ययन कर रहे हैं। अब हम यह देखेंगे कि हृदय को होनेवाली रक्त आपूर्ति और हृदय विकार इनका क्या संबंध हैं।

हृदय की बीमारियाँ यानी हृदयविकार अनेक प्रकार के होते हैं। परन्तु सर्वसामान्य रूप से हम जिसे हृदय विकार कहते हैं वो हृदय के रक्ताभिसरण से संबंधित होता है। बैद्यकीय भाषा में इसे खीलहशाळल Ischemic Heart Disease कहते हैं।

बढ़ती उम्र में यह विकार होता है। पहले चालीस अथवा पचास की उम्र के बाद होनेवाला यह विकार आजकल बीस-तीस वर्ष उम्र के युवकों में भी पाया जाता है। प्रतिवर्ष इस प्रकार के विकार से ग्रसित लोगों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है।

रक्त आपूर्ति

Ischemic Heart Disease के बारे में आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके नाम में ही इस विकार का कारण निहित है। जब किसी अवयव अथवा पेशी समूह में रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है तो उसे Ischemic (इस्चिमिया अथवा इस्किमिया) कहते हैं। रक्त की आपूर्ति ऐसे स्तर तक कम अथवा पूरी तरह बंद होना आवश्यक होता है, जिससे कि उस अवयव में अथवा पेशी में बीमारी या विकार का निर्माण होता है। इस से उस पेशी को गंभीर स्वरूप की जख्म अथवा धक्का पहुँचता है। ऐसी बीमारी को Ischemic Disease कहते हैं। इस्चिमिक हृदय विकार यानी हृदय की ऐसी बीमारी, जिसमें हृदय के कुछ हिस्से अथवा संपूर्ण हृदय में रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है या पूरी तरह बंद हो जाती है। रक्त की आपूर्ति बंद हो जाने के कारण हृदय के स्नायुओं को यानी स्नायुपेशियों को होनेवाली प्राणवायु व अन्न घटकों की आपूर्ति बंद पड़ जाती है। ऐसी परिस्थिति में भी ये स्नायुपेशियां अपनी अ‍ॅडिनोसिन का इस्तेमाल करके अपना कार्य शुरु रखती हैं। परन्तु इसकी एक तय सीमा है। यदि इन स्नायु पेशियों में रक्त की आपूर्ति तीस मिनट से ज्यादा बंद रहती है तो इन पेशियों में अ‍ॅडिनोसिन का भंडारण ५०% तक कम हो जाता है। उसी समय नये अ‍ॅडिनोसिन बनने की क्रिया शुरु रहती है। परन्तु इस क्रिया में प्रति घंटा सिर्फ २% अ‍ॅडिनोसिन तैयार होती हैं। अ‍ॅडिनोसिन के इस्तेमाल की मात्रा ज्यादा तथा नयी बनने की मात्रा बिल्कुल कम होती हैं। इस परिस्थिति में तीस मिनट के अंदर रक्त की आपूर्ति शुरु होने पर हृदय की पेशियां उन्हें लगे धक्के से अपने-आप को संभाल सकती हैं। परन्तु यदि रक्त की आपूर्ति तीस मिनट से ज्यादा समय तक बंद रहती है तो हृदय की पेशियां हमेशा के लिए निष्क्रिय अथवा मृत हो जाती हैं। जब किसी व्यक्ति को हृदय विकार का झटका लगता है तो उसका कारण हृदय में रक्त की आपूर्ति का कम होना या बंद होना होता है। हृदय की पेशियां कितनी मात्रा में मृत होती हैं इस पर उस व्यक्ति की बीमारी की गंभीरता निर्भर होती है। हृदय विकार के झटके के दौरान हृदय की पेशीयों के बड़ी मात्रा में मृत होने पर व्यक्ति के जीवन को धोखा हो सकता है। यह टालने के लिये उपचार के दौरान रक्त की आपूर्ति यानी करोनरी आरटरीज में रूकावट को तात्काल दूर करना महत्वपूर्ण होता हैं। यदि हृदय की पेशियों का नुकसान रोकने में उपचार यशस्वी होता है तब भी थोड़ी पेशियां तो मृत होती ही हैं। इसका हृदय की पंपिंग पर स्थायी परिणाम होता है। हृदय की पंपिंग वर्ष-प्रतिवर्ष क्षीण होती जाती है और कालांतर में यह प्राणघातक हो सकता है।

करोनरी आरटरीज़ में रक्तप्रवाह में बाधा आने से जो हृदय विकार का झटका आता है (इसे डॉक्टर लोग मायोकार्डिअल इनफार्कशन कहते हैं)। इसमें दो प्रकार से जीवन को धोखा संभावित होता है। एक यानी झटका लगने के समय अथवा बाद में हृदय की पंपिंग क्षीण हो जाने पर जीवन को धोखा संभव होता है। हृदय में रक्त की आपूर्ति क्षीण होने के कौन से कारण हैं? इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है करोनरी आरटरीज की क़ठोरता अथवा आथेरोस्क्लेरोसिस (Atheroscierosis)। अथेरोस्क्लेरोसिस का वास्तविक अर्थ क्या है, यह संक्षेप मे जानते हैं।

कुछ व्यक्तियों में उनके गुणसूत्रों (Genes) में ऐसे कुछ ‘कोडींग’ होते हैं कि उनकी आरटरीज में यह विकार आसनी से हो जाता है। इसे Genetic Predisposition कहते हैं। वहीं, अन्य व्यक्तियों में उस व्यक्ति की जीवनशैली और आहार कारणीभूत साबित होता है। ऐसा आहार जिस से रक्त में कोलेस्टेरॉल बढ़ता हैं और व्यायाम का अभाव इत्यादि बातें आरटरीज को नुकसान पहुँचाती हैं।

रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्टेरॉल और अन्य स्निग्धांश आरटरीज के सबएन्डोथेलिअल लेयर में जमा किये जाते हैं। इसकी मात्रा बढ़ने के बाद उस भंडारण में फायब्र्रोसाइटल पेशी घुस जाती है। आगे चलकर उस भाग में कॅलशिअम डिपॉझिट होता है। इस पूरी प्रक्रिया को कॅलिसिफिकेशन कहते हैं। आरटरीज के एन्डोयेलिअम के नीचे जगह-जगह पर तैयार हो गया यह कॅलशिअम-कोलेस्टेरॉल का भंडारण आरटरीज के रिक्त स्थानों में घुसने लगता है। फलस्वरूप रक्त के प्रवाह में रुकावट उत्पन्न होती हैं। रक्तवाहनियों के रिक्त स्थानों पर घुसनेवाले इस भंडारण को ‘अथेरास्क्लेरॉटिक प्लाक’ कहते हैं। करोनरी रक्तवाहनियों में ऐसे प्लॉक्स् उनके शुरु के कुछ सेंटीमीटर भाग में ज्यादा से ज्यादा दिखायी देते हैं।

यदि किसी व्यक्ति में अथेरोस्क्लेरोसिस का Genetic Predisposition नहीं होगा तो उस व्यक्ति में उनका बनना या न बनना सर्वस्वी उस व्यक्ति पर निर्भर होता है यानी उस व्यक्ति के आहार-विहार, आचार-विचार पर निर्भर होता है।

(क्रमश:-)

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