अस्थिसंस्था भाग – ८

Astisanstha

अस्थिसंस्था के बारे में अध्ययन करते करते हम अपने सिर तक आ गये हैं। हमारा सिर, हमारे सिर की अस्थियाँ (खोपड़ी) ये हमारे शरीर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। हमारे शरीर का कौन सा अवयव श्रेष्ष्ठ और कौन सा अवयव कनिष्ठ है, इस पर विवाद करना व्यर्थ है। हमारा प्रत्येक अवयव अपने स्थान पर श्रेष्ठ ही है। सामने आयी हुयी परिस्थिती में उचित समय पर उचित अवयवों का उपयोग हम कैसे करते हैं, यह महत्त्वपूर्ण हैं। यह सब चाहे जितना भी सत्य क्यों न हो फिर भी हमारे सिर का महत्त्व अलग ही है।

पृष्ठवंशीय प्राणी अर्थात जिन्हें पीठ की हड्डी है ऐसे प्राणी जैसे-जैसे उत्क्रांत होते गये वैसे-वैसे उनको सिर का आकार व आकारमान दोनो बदलते गये। यहाँ तक कि मानवों में भी सिर के आकार में बदलाव होता गया। अश्मयुगीन निअँडरथाल मनुष्य और आज का प्रगतिशील मनुष्य के सिर के आकार में भी काफी अंतर है। ये सभी बदलाव उन-उन प्राणियों के मष्तिष्क जैसे-जैसे विकसित होता गया वैसे वैसे उसे समर्पक अथवा अनुरूप बदल सिर की हड्डियों में होता गया। उत्क्रांति में हमसे सबसे करीब का प्राणी अर्थात चिंपाझी बंदर। इसके मष्तिष्क का वजन होता है ४०० से ५०० ग्राम। हमारे मष्तिष्क का वजन होता है १२०० से १३५० ग्राम। अर्थात चिंपाझी के मष्सिष्क की तुलना में तीन गुना ज्यादा। इसी अनुपात में हमारे सिर का आकार होता है।

अभी अभी जन्में बच्चे को हम सबने देखा है। उनके सिर पर मध्यभाग में मृदुभाग होता है। इसे हम बच्चो का तालू कहते हैं। कभी-कभी सिर के पीछे की ओर भी एक तालू होता है। (प्रत्येक बच्चे को जन्म से पहले होता ही है, परन्तु बहुधा बच्चे के जन्म के पहले वह भर जाता है।) बच्चे के सिर की अस्थियां जन्म के समय पूरी तरह एक दूसरे से जुड़ी हुयी नहीं होती है। इन हड्डियों में रिक्क्त स्थान अर्थात बच्चे का तालू। नवजात अर्भक का मष्तिष्क पूरी तरह विकसित नहीं होता। उसकी बुद्धि व विकास अगले डेढ़ से दो वर्षो तक लगातार होता रहता है। इसके साथ ही सिर की वृद्धि भी होती जाती है। खाली तालू के कारण यह संभव होता है। उपरोक्त सभी बातों से हमारे ध्यान में आयेगा कि सिर व मष्तिष्क का अन्योन्य संबंध हैं। बाह्य अपघात से मष्तिष्क का रक्षण करने तक ही सिर की कवटी का कार्य मर्यादित नहीं हैं। इसके पहले बताये गये अनुसार मष्तिष्क के विकास में इसका योगदान है। सिर की हड्डियों के खोखले स्थान पर मष्तिष्क के ऊपर का आवरण, मष्तिष्क का रक्तप्रवाह, रक्तवाहनियां सभी को शरीर से अलग एक कोने में रखने का काम सिर की कवटी (खोपड़ी) करती है।

इसके अलावा भी खोपड़ी के कुछ अन्य विशेषतायें हैं। हमारी पाँचों ज्ञानेंद्रियां सिर की खोपड़ी में होती हैं। श्रवण, दृष्टी, गंध, स्पर्श सभी चीजे इस खोपड़ी में ही है। हमारे शरीर को प्रतिदिन अन्न की आवश्यकता पड़ती है। हमारा मुँह अथवा मुख भी इस खोपड़ी के सामने ही होता है। इसके कारण ही अन्न का भक्षण करना आसान हो जाता है। इस प्रकार के अनेकों महत्त्वपूर्ण कार्यों को एकसाथ करनेवाला यह शरीर का एकमेव भाग है।

हमारी खोपड़ी की सभी अस्थियाँ अचल अथवा स्थिर होते हैं। उसमें किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं होती। इसका अपवाद भी सिर्फ जबड़े के नीचे की हड्डियाँ हैं। जबड़े के नीचे की हड्डी को मॅडपिल अस्थि कहते हैं। यहीं इतना हलचल करती है। इसकी हलचल के कारण ही हम जबड़े को खोल – बंद कर सकते हैं। तथा मुँह के अन्न को चबा सकते हैं। हमारी खोपड़ी के कुल छ: बाजू हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं –

१)खोपड़ी का ऊपरी हिस्सा (Norma Verticaus)
२)खोपड़ी का निचला हिस्सा (Norma Basalis)
३)खोपड़ी का पिछला हिस्सा (Norma Occipitalis)
४)खोपड़ी के सामने का हिस्सा (Norma Frontalis)
५) व ६) खोपड़ी के दोनों बगल के हिस्से (Norma lataralis)

खोपड़ी के सामने का भाग मुख्यत: फ्रंटल अस्थिक्षेत्र का बना होता है। इसके अलावा जबड़ों के ऊपर का हाड – मॅक्झिलरी अस्थि और जबड़ों के नीचे का भाग मँडिब्युलर अस्थि का बना होता हैं। खोपड़ी के इस भाग में आँखों के दो गढ्ढ़े (orbital cavities), नाक की दो छेद (Nasal Cavities) और मुँह की cavity (mouth cavity) इस तरह कुल ५ cavities होती हैं।

खोपड़ी के पीछे का भाग पूरी तरह ऑक्सिपिटल अस्थि का बना हुआ होता है।

खोपड़ी के दोनों बाजूओं के ऊपर के भाग में पॅरायटल अस्थि होती हैं तथा निचले भाग में टेंपोरल अस्थि होती हैं। टेंपोरल अस्थि में कान का अंदरुनी हिस्सा होता है।

खोपड़ी के ऊपर के भाग में सामने की ओर फ्रंटल अस्थि, मध्यभाग में परायटल अस्थि तथा पीछे ऑक्सिपिटल अस्थि होती हैं। फ्रंटल अस्थि व पॅरायटल अस्थि के जोड को कॉरोनल जोड़ कहते हैं। दो पॅरायटल अस्थियों के बीच जोड़ को सजिटल अस्थि कहते हैं।

पॅरायटल अस्थि और ऑक्सिपिटल अस्थि के जोड़ को लँबेडॉइड जोड़ (lambadoid suture) कहते हैं।

खोपड़ी के नीचे के भाग में अनेकों छोटी-बड़ी अस्थियां होती हैं। सामने के भाग में मुँह का तालु (palate) होता है तथा पीछे की ओर ऑक्सिपिटल अस्थि होती है। खोपड़ी के नीचे की ओर एक बड़ा छेद होता है जिसे फोरमेन मॅग्नम कहते हैं। इस मॅग्नम फोरमेन में से हमारा मज्जारज्जू मष्तिष्क से शुरु होकर खोपड़ी से बाहर निकलता है तथा नीचे पीठ की मणिकाओं के खोखले भाग में घुसता है।

इनके अलावा भी खोपड़ी की अस्थियों के बारे में अन्य अनेक हड्डियां होती हैं, जैसे कि स्फिनॉइड, व्होमर आदि। अगले लेख में खोपड़ी की अस्थियों के बारे में अन्य जानकारी प्राप्त करेंगे। (क्रमश:)

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