उर्जा संकट की वजह से २५ प्रतिशत जर्मन कंपनियां देश छोड़ने की तैयारी में – फेडरलेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज्‌‍ के प्रमुख की चेतावनी

बर्लिन – रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि से निर्माण हुए उर्जा संकट की वजह से जर्मनी की २५ प्रतिशत कंपनियां देश छोड़ने की तैयारी में होने की गंभीर चेतावनी उद्योग क्षेत्र के शिखर संगठन ‘फेडरेशन ऑफ जर्मन इंजस्ट्रीज्‌‍’ के प्रमुख ने दी। जर्मनी के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है और जर्मन सरकार ही ‘डि-इंडस्ट्रियलाइजेशन’ अपनाने की तैयारी में दिखाई दे रही है, यह आरोप भी इस बीच लगाया जा रहा है। ऐसे में यूरोप का ‘एनर्जी क्राइसिस’ अगले दो से तीन साल तक कायम रह सकता है, यह इशारा विश्व की प्रमुख इंधन कंपनी ‘वाईटल’ ने दिया है।

‘ईंधन की कीमत में उछाल और कमज़ोर होती अर्थव्यवस्था की वजह सी जर्मनी को भारी नुकसान पहुँच रहा है। अन्य विदेशी कंपनियां और उद्योगों की तुलना में जर्मनी की कंपनियां अधिक दबाव में आ रही हैं। जर्मनी के औद्योगिकीकरण का मोडेल बड़े संकट का सामना कर रहा है। देश की २५ प्रतिशत कंपनियां अपना उत्पादन अन्य देशों में शुरू करने का सोच रही हैं’, यह इशारा ‘फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज्‌‍’ की प्रमुख तान्जा गॉनर ने दिया।

जर्मनी के ‘केमिकल इंडस्ट्री असोसिएशन’ ने भी इस बयान की पुष्टि की। ‘ईंधन पर निर्भर जर्मन रासायनिक उद्योग को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ईंधन की बढ़ती कीमतों के सामने यह कंपनियां बेबस हैं। बढ़ती कीमतें काबू में नहीं आईं तो इसका मतलब जर्मन सरकार ही औद्योगिकीकरण की प्रक्रीया रोकने की नीति अपनाती हैं, यही होगा। जर्मनी का रासायनिक उद्योग ढ़ह जाता है तो इसका अन्य उद्योगों पर तीव्र असर पडेगा। उत्पादन केंद्र के तौर पर प्राप्त किया गया जर्मनी का स्थान खत्म हो जाएगा’, ऐसा इशारा ‘केमिकल इंडस्ट्री असोसिएशन’ के ‘सीईओ’ वोल्फगैंग एन्ट्रप ने दिया।

कोरोना की महामारी, वैश्विक सप्लाई चेन में बाधाएं और उर्जा संकट की वजह से यूरोप के औद्योगिक क्षेत्र का पिछले साल से बड़ा नुकसान होता देखा गया है। ऐसे में अमरीका ने स्थानीय स्तर पर उद्योगों के लिए घोषित की हुई आर्थिक सहायता की वजह से यूरोपिय कंपनियों के लिए मुकाबला कठिन होता जा रहा है। यूरोप में ईंधन की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और कई देशों में उर्जा के इस्तेमाल पर पाबंदी भी लगाई जा रही है। इसकी वजह से कई फैक्टरीज़ बंद होने की कगार पर हैं। जर्मनी यूरोप का उत्पादक केंद्र माना जाता है। इसी देश की कंपनियां मुश्किल में फंसती हैं तो इसके गंभीर परिणाम यूरोपिय अर्थव्यवस्था पर हो सकते हैं। इसकी वजह से जर्मन उद्योग क्षेत्र के प्रमुख अधिकारियों का इशारा ध्यान आकर्षित कर रहा है।

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